Monday 31 October 2022

छठ का पर्व

महाभारत काल में कुन्ती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से इस पर्व को बिहार व पूर्बी उत्तर प्रदेश में दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और आज यह पर्व बिहार ही नहीं पूरे विश्व में बड़े धूम -धाम से मनाया जाता है । जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुये इन्हे साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुये मां गंगा - यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे मनाया जाता था । यह पर्व पहले बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे मनाया जाता था लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहां भी रहते हैं वहां इस पर्व को उसी श्रद्वा और भक्ति से मनाते हैं । 

छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. पहला दिन नहाय खायदूसरा दिन  खरना  तीसरा दिन अर्घ्य और चौथा दिन उषा अर्घ्य मनाया जाता है .इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धर्म स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजास्थल) व प्राकृतिक जलराशि के समक्ष मनाया जाता है । तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिये महिलाये कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं जहां पूजा स्थल होता है वहां नहा धो कर ही जाते हैं यही नही तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं । 

पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ाने के लिये सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर ,इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर कहते हैं जिसमें मोयन डाल कर बनाते हैं ), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल , इस पर चढ़ाने के लिये लाल/ पीला रंग का कपड़ा एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि । पहले दिन महिलायें अपने बाल धो कर चावल , लौकी और चने की दाल खायेंगी और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करेंगीं ।

छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत ( उपवास ) रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर बनायेंगें और देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिटटी के बर्तन ) में बखीर रखेगें बखीर से ही हवन करेंगें तथा बाद में प्रसाद के रूप में बखीर खायेंगें व सगे सम्बन्धियों में बाटेंगें ।

तीसरे यानि छठ के दिन 24 घंटे का व्रत रखेगें जिसमें पानी भी नहीं पीयेंगें सारे दिन पूजा की तैयारी करेंगें और पूजा के लिये एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी जिसे दौरी कहते हैं में पूजा का सभी सामान डाल कर देवकरी में रखेंगें । देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक कैनोपी बनायेंगें और उसके नीचे एक मिटटी का बड़ा बर्तन , दीपक , तथा मिटटी के हाथी बना कर रखा जायेगा और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है । वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े से लपेट कर पांच प्रकार के फल पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी पर ले जाता है  इसे किसी द्वारा अपवित्र न कर दिया जाय इसलिये इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं । पुरूष , महिलायें , बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढ़लने से पहले नदी के किनारे सोहर गाते हुये जाते हैं :-

काचि ही बांस कै बहिगीं लचकत जाय,भरिहवा जै होउं कवनरम ,भार घाटे पंहुचायI 

बाटै जै पूछेले बटोहिया ई भार केकरै घरै जाय  ,आंख तोरे फूटै रे बटोहियां जंगरा लागै तोरे घूम ,छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा ई भार छठी घाटे जायI

नदी किनारे जा कर नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं । उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिये सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्ध देते हैं और पांच बार परिक्रमा करते हैं । सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुये घर आ जाते हें और देवकरी में रख देते हैं । रात को पूजा करते हैं । कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्वालु अलसुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं । पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिटटी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है सूर्य देव की इन्तजार में महिलायें हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करते हैं । जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोंगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलायें अर्घ देना शुरू कर देती हैं शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अर्घ दिया जाता है । इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुये पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं । घर पंहुच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलायें प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है । 

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिये छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिये कोशी भरी जाती है इसके लिये छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिटटी का बड़ा घड़ा जिस पर छः दिये होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता हैI कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है ।

रात छठिया मईया गवनै अईली आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली 

बिलम्बली - बिलम्बली कवन राम के अंगना 

जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां 

छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बइव चेन्न्ई जैसे महानगरों में समुद्र किनारे जन सैलाब दिख्खई देता है पिछले कई वर्षों से प्रशासन को इसके आयोजन के लिये विशेष प्रबन्ध करने पड़ते हैं । इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पंहुचने का पूरा प्रयास करेगा । देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले लोग अपने -अपने स्थान पर इस पर्व को धूम धाम से मनाते हैं । पटना में अब कई लोगों ने नये प्रयोग किये जिसमें अपने छत पर छोटे स्वीमिंग पूल में खड़े हो कर यह पूजा की उनका कहना था कि गंगा घाट पर इतनी भीड़ होती है कि आने जाने में कठिनाई होती है और सुचिता का पूरा ध्यान नहीं रखा जा सकता । लोगों का मानना है कि अपने घर में सफाई का ध्यान रख कर इस पर्व को मनाया जा सकता है ।

कोरोना के कारण पिछले दो वर्ष बहुत तनावपूर्ण रहे लेकिन इस वर्ष सभी लोग बहुत हर्षौल्लास के साथ इसे मन रहे हैं. आप सभी को छठ पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें. 

केरवा जय फरेलर घावद से - ओपर सुग्गा मड़राय 

मारै लै कवन राम - ढेला से सुग्गा गिरे मुरझाय 

सुगिया जै रोवे लै बियोग से जन तुही सुग्गा मारा हमार 

गरज गरज के बरसै ओरियां ओरियां मधु चूवैं

ताहि ओरियां भिजै लै कौन राम कौन देवी के अचरन भीजै

गोदिया भिजै लै कौन  बाबू इसे हवै छठी मईया कै पूजवा 

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