Friday 14 June 2024

रहना नहीं देश बिराना है

बोझ बन जाते हैं रिश्ते भी
मतलब निकल जाने के बाद 
ढूंढ ढूंढ कर कमी निकालते हैं 
जो शायद पहले नजर नहीं आयी 
अब आ रही है
कोई बहाना तो चाहिए 
तोड़ सकना मुश्किल 
जोड़ना है नहीं 
जोड़- तोड़ के चक्कर में 
खुद उलझे रहते हैं 
दूसरों को भी उलझाये रहते हैं 
गाँठ टूट गई है
बांध दिया गया फिर से
वह टूटती रहती है बार बार 
जोड़ते रहते हैं वक्त वक्त पर 
क्या चक्कर है यह 
बहुत बड़ी उलझन है
उलझ उलझ कर रहना है
सुलझाते सुलझाते क्या कुछ बदल गया 
बात फिर भी बनी नहीं 

ठीक ही कहा है कबीर ने
यह संसार कांटे की बगिया 
उलझ- पुलझ मर जाना है 
रहना नहीं देना बिराना है 

No comments:

Post a Comment