Saturday 1 June 2024

घर - घर

हम घर - घर करते रहें 
सोचा था होगा
एक सपनों का घर 
पाई - पाई जोड़ते रहें 
घर बना तो सही
घर में रहना न हो पाया 
 उम्र निकल गई
नयी पीढ़ी आ गई 
उसने अधिकार जमा लिया 
हमें फिर बाहर कर दिया
बरामदे का एक कोना 
आया हमारे हिस्से 
हसरत धरी कि धरी 
सब छूट जाता है
घर - परिवार- संसार 
मोह बंधन में बंध हम बुनते रहते जाल 
मकड़ी जैसे अपने ही बनाएं जाल में 
उलझ- पुलझ रह जाते

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