सोचा था होगा
एक सपनों का घर
पाई - पाई जोड़ते रहें
घर बना तो सही
घर में रहना न हो पाया
उम्र निकल गई
नयी पीढ़ी आ गई
उसने अधिकार जमा लिया
हमें फिर बाहर कर दिया
बरामदे का एक कोना
आया हमारे हिस्से
हसरत धरी कि धरी
सब छूट जाता है
घर - परिवार- संसार
मोह बंधन में बंध हम बुनते रहते जाल
मकड़ी जैसे अपने ही बनाएं जाल में
उलझ- पुलझ रह जाते
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