सारा जहां अपना
समय पर ढूंढा तो
नहीं मिला कोई अपना
बदले - बदले से सब लगे
ढूंढती रही ऑखें भीड़ में
लगा सब है अंजान
हम गफलत में जीते रहें
विष - गरल पीते रहे
मन में भ्रम पालते रहे
तब यह महसूस हुआ
यहां कोई अपना - पराया नहीं
सब झमेला मोह - माया का
सब यही रह जाता है
मुसाफिर अकेला आता है
अकेला ही जाता है
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