कभी उसके लिए रोया
जन्मते ही रोया
यह जो सिलसिला शुरु हुआ
अब तक चलता ही रहा
कभी खुशी में कभी दुख में
आँख के पानी ने साथ न छोड़ा
बचपन में खिलोनों के लिए रोया
जवानी में भावविभोर हो रोया
कभी प्यार में कभी रोजगार में
बुढ़ापा और बीमारी देख कर रोया
कभी मिलन में कभी बिछुड़न में
कभी अकेले में कभी सबके समक्ष
कभी तकिये में मुख छिपा
कभी किसी के गले लग
सुना है रोना ठीक नहीं
मुझे तो लगता है
जो रोया नहीं
वह खुलकर जीया भी तो नहीं
मन भर रो लो
जी भर हंस लो
जिंदगी को अपने मुताबिक जी लो
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