Thursday 28 June 2018

कबीर

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़
ताते या चाकी भली पीस खाय संसार

काकर पाथर जोर कर मस्जिद लिया बनाय
ता.चढ़ि मुल्ला बाग दे क्या बहिरा हुआ खुदा

यह कहने की ताकत कबीर मे ही थी
सारे रुढी का खंडन करना यह साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता
वे एक.ऐसा मजबूत पेड थे जो किसी थपेड़ों. से.नहीं डरा
मगहर मे मरना
काशी मे जीवन बिताने के बाद भी
निर्गुण निराकार मे विश्वास
ग्यान के आगे कुछ नहीं
अनुभव ही सबसे बड़ा
तू कहता कागद की लेखी
मैं कहता आँखिन की देखी
महात्मा कबीर से आजकल के महात्माओं को सीखना चाहिए
जो पैसे ,नाम के पीछे भागते हैं
धर्म के नाम पर नाटक करते हैं
स्वयं को भगवान बताते हैं
कबीर जैसे संत की आजकल बहुत जरूरत है

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