Monday 30 March 2020

लगता है मुंबई ठहर सी गई

बहुत याद आ रही है
वह सब बातें जो अब नहीं हो रही है
वह आपाधापी वह भागम-भाग
वह लोकल ट्रेन वह बेस्ट की बस
वह दौड़ता - भागता आदमी
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह मरीनड्राइव के नजारे
वह चौपाटी की शाम
वह गलियों में क्रिकेट खेलते लोग
वह भेलपुरी और शेवपुरी का ठेला
वह तीखा बडा - पाव
सब अदृश्य हो गए
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह माॅल में भीड़
वह ट्रेफिक का जाम
वह खाऊगली
वह सब्जी वाले की ठेलागाडी
वह धड धड की निर्माण कार्य की आवाज
वह मजदूरों का रेला
वह गुमटी वाले चाय की चुस्कियां
वह कैफे काफी शाप
सब है नदारद
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह काॅलेज के बच्चों की मस्ती
उनकी हा हा हू हू
वह स्कूल जाते
माँओ द्वारा घिसटते बच्चे
वह ईश्वर का दरबार
जहाँ का दर्शन भी अब दुर्लभ
वह नाना - नानी पार्क
लाठी टेकते बुजुर्ग
वह सडकों पर जाॅगिग करते लोग
अब सब है सुन्न
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह देर रात तक काम
घर आने का समय तय नहीं
अब सब है घर पर पडे
देर सुबह तक सोना
वह सब भूल रहा
अब बस सोना है और खाना है
जो मुंबई वासी को रास नहीं आती
यहाँ काम के सिवाय और कुछ न भाता
सब काम पड गए हैं ठप्प
लगता है मुंबई ठहर सी गई

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