Saturday 24 October 2020

कभी तो रहमत कर

जिंदगी इम्तिहान लेती है
पर कभी-कभी थका देती है
कितनी परीक्षा
परीक्षा पर परीक्षा
साल पर साल
बस अब बस भी कर
अब तो सुकून से जीने दे
कब तक परेशान करेंगी
कब तक रूलाएगी
तेरी भी तो कुछ सीमा होगी
यह तो ज्यादती है
हम परीक्षा पर परीक्षा देते जाएं
तू कुछ न कुछ निकालती जा
तू तो नहीं थकती
परीक्षा देनेवाला अलबत्ता जरूर थक जाता है
मायूस हो जाता है
जीते जी मरणासन्न हो जाता है
तू भेदभाव बहुत करती है
किसी को आसानी से पास कर देती है
किसी को अक्सर नापास करती रहती है
इतना कठिन पेपर निकालती है
कि वह बेचारा बन जाता है
कोशिश करता है सुलझाने की
कुछ सुलझाता है
कुछ छोड़ देता है
कब तक ऐसा खेल खिलाएंगी
कभी तो रहमत कर

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