Wednesday 6 November 2024

यह भी सही और वह भी सही

ह्दय शांत था 
लगा जरा पीछे मुड़कर झांक लू 
अचानक मन में द्वंद्व उठा 
लगा शांत झील में कंकड़ पड़ गया हो 
हर बार हारी मैं
हर बार जीती मैं 
हर बार गिरी मैं
हर बार उठी मैं
वह मैं ही तो थी 
जो गिरती - पड़ती संभलती रही 
कभी मायूस हुई 
कभी उदास हुई 
कभी जी भर मुस्कराई 
कभी खिलखिलाती  हंसी 
बस रुकी नहीं चलती रही 
आई हर बाधा को पार करती रही 
आज मुड़कर पीछे देखा 
विश्वास नहीं हुआ 
वह मैं ही थी क्या
कितना कुछ बदल गया 
वक्त के सांचे में सब ढल गया 
उस मोड़ पर आ खड़ी हूँ 
जहाँ कुछ करने से रही 
हम ही नहीं इस कतार में और भी है शामिल 
यह सिलसिला है जिंदगी का 
तभी तो गिला नहीं किसी बात का
जो समझा वह किया 
परिणाम भी तो मुझे ही मिला 
कामयाबी पर पीठ थपथपाई 
नाकामियों पर ऑसू बहाया 
हर तूफान का सामना किया 
अब और तो कुछ बाकी नहीं 
यह भी सही और वह भी सही 

Monday 4 November 2024

मुसाफिर

कहने को तो सब अपने 
सारा जहां अपना 
समय पर ढूंढा तो 
नहीं मिला कोई अपना 
बदले - बदले से सब लगे 
ढूंढती रही ऑखें भीड़ में 
लगा सब है अंजान
हम गफलत में जीते रहें 
विष - गरल पीते रहे 
मन में भ्रम पालते रहे  
तब यह महसूस हुआ 
यहां कोई अपना - पराया नहीं 
सब झमेला मोह - माया का 
सब यही रह जाता है 
मुसाफिर अकेला आता है 
अकेला ही जाता है 

Sunday 3 November 2024

जो रोता नहीं

कभी इसके लिए रोया 
कभी उसके लिए रोया 
जन्मते ही रोया 
यह जो सिलसिला शुरु हुआ 
अब तक चलता ही रहा 
कभी खुशी में कभी दुख में 
आँख के पानी ने साथ न छोड़ा 

बचपन में खिलोनों के लिए रोया
जवानी में भावविभोर हो रोया
कभी प्यार में कभी रोजगार में
बुढ़ापा और बीमारी देख कर रोया
कभी मिलन में कभी बिछुड़न में
कभी अकेले में कभी सबके समक्ष 
कभी तकिये में मुख छिपा 
कभी किसी के गले लग

सुना है रोना ठीक नहीं
मुझे तो लगता है 
जो रोया नहीं 
वह खुलकर जीया भी तो नहीं
मन भर रो लो 
जी भर हंस लो 
जिंदगी को अपने मुताबिक जी लो 

भैया दूज की शुभकामना

मेरा भैया तुझे लंबी उमर मिले 
सारा सुख - वैभव मिले 
तू छोटा ही सही 
है हमारे घर का चिराग 
तू पिता नहीं पर उनसे कम भी नहीं
आस है बहन की 
तेरा - मेरा प्यार बना रहे
मेरा मायका सही - सलामत रहें
यही तो दुआ रहती है हर बहन की

Saturday 2 November 2024

जय श्री जगन्नाथ

भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ी तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है

महाप्रभु का महा रहस्य
सोने की झाड़ू से होती है सफाई......

महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया

हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...

मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...

ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... 

मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? 

कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...

आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...

भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी

आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। 

झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है

दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।

भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा

इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं..
     🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩                                      🙏🙏

Friday 1 November 2024

मैं दीपक

मैं जला रात भर
तब तक जब तक तेल था मुझमें
जी भर जला 
जितना प्रकाश था भरपूर दिया
अब खाली पड़ा हूं
बच्चे शायद एक - दो दिन खेल ले 
बाद में कचरे के ढेर पर
इसका मुझे कोई मलाल नहीं 
जीया तब तक जी भर
अपने जीवन को सार्थक समझ रहा हूं
उजाला देता रहा
अंधेरा दूर भगाता रहा 
खुशियां बांटता रहा 
वैसे भी सबको यहां से कभी न कभी जाना है
मिट्टी में मिलना ही है 
मैं तो मिट्टी से ही बना हूं
किस बात का मलाल
जहाँ से आया वहीं जाना है