Sunday 3 April 2016

बेटियॉ - तुम्हारा जीवन अनमोल- एक पिता की व्यथा

मैं एक बेटी का पिता हूँ
मेरी इकलौती बेटी जिसको अभी अभी चिता के हवाले कर आया हूँ
चारो तरफ अंधेरा छा गया है ,कुछ बाकी नहीं बचा
सारे अरमान तुम्हारी चिता की भेंट चढ गए
तुम्हारे जन्म पर इतना खुश था आज मौत पर खत्म
तुम्हारी हर ईच्छाओ का सम्मान किया
तुम्हे पूरी आजादी दी
अपना मुकाम हासिल करने के लिए
वह तुमने किया भी
खुश था तुम्हें सफलता प्राप्त करते हुए देखते
पर ऐसा क्या हुआ जो मेरा प्रेम कम पड गया
तुमने उसके लिए जान दे दी जो कुछ नहीं था
मैं तो तुम्हारा जनक था बेटी
कुछ तो कहा होता ,क्या विश्वास नहीं था अपने पिता पर
या अपने पर
मैंने तो तुमको कभी कमजोर होना नहीं सिखाया था
परिस्थितियों को मात करने की शिक्षा दी थी
वह कैसा प्रेम जो व्यक्ति को मौत की तरफ ढकेल दे
तुमको मरते समय भी उसकी याद थी
पर एक बार मुझे याद किया होता
जो तुम्हारे लिए यमराज से भी लड जाता
पर तुमने तो यह मौका नहीं दिया
आज सोच रहा हूं ,कहीं मेरी ही तो कोई गलती नहीं
मैंने तुम्हें क्यों हर छूट दी
अगर नहीं दिया होता तो शायद तुम हमारे बीच होती
जब तुमको जुझारू आंनदी का किरदार निभाते देखता तो छाती गर्व से चौडी हो जाती
पर आज लगता है वह तो केवल अभिनय था
तुम तो बहुत भावुक और कमजोर थी
तुम तो चली गई पर हमें तो जीते जी मार दिया
सिसकने के लिए जिंदगी भर छोड दिया
अपनी मौत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया
हर पिता और हर बेटी के लिए

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