Sunday 25 June 2017

बूंदे भी कुछ कहती है

टप- टप बूंदे गिर रही है
बरखा का आगमन हुआ है इतने इंतजार के बाद
मौसम सुहावना हो रहा है
मनमयूर नाच रहा है
इच्छाएं अंगडाईयॉ ले रही है
सब जगह हरियाली
यह हुआ इस पानी की बूंद की बदौलत
बादल से स्वयं को अलग कर तृप्त कर रही है
पर यह इसका नसीब कि
यह कहॉ गिरेगी
सीप में यह मोती बन जाएगी
नदी में जाकर जीवनदायिनी हो जाएगी
समुद्र में जाकर खारा हो जाएगी और जलती रहेगी
नाला में जाकर तो बदबूदार बन जाएगी
दूर से ही देख लोग नाक- भौं सिकोडेगे
अब यह उसकी नियती है
वह कहॉ गिरती है
भाग्य उसे क्या बना देता है
जन्म तो सबका एक ही साथ हुआ
आसमान से नीचे भी एक साथ आई
आते समय हवा के झोंके के साथ इतराई भी
मौज- मस्ती भी की
कहीं पेडो की खोह में छिपी तो
कहीं पत्तों पर
फूलों की पंखुडियों पर बैठकर नाजुक स्पर्श भी मिला
कुछ ने तो पहाड की शरण भी ली
झर- झर झरते झरने के साथ खिलखिलाई भी
पर अंत में आना तो पडा इस जमी पर
जहॉ मुलाकात हुई वास्तविकता से
जिंदगी कहॉ और कब ले जाय
यह बूंद से ज्यादा किसे पता होगा .

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