Thursday 3 December 2015

भोपाल गैस त्रासदी - वह भयानक रात की सुबह

बात १९८४ की है मैं अपनी नवजात बेटी को लेकर गोरखपुर से मुंबई अपने मायके जा रही थी
कुछ भोर का तीन या चार का समय था
गाडी प्लेटफार्म छोड चुकी थी
कुछ समय के बाद पता चला कि यूनियन कार्बाइड से गैस रिसाव के कारण पूरा भोपाल उसकी चपेट में आ गया है
जहॉ-जहॉ तक वह गैस पहुंची है लोग झुलस रहे हैं
तब मोबाइल का जमाना नहीं था
हर कोई परेशान अपने परिजनों के लिए
सब लोग सही सलामत रहे इसकी प्रार्थना की जाने लगी
सुबह का अखबार डिब्बे में आते ही खरिदने की होड मच गई
दूसरे रेल यात्रियों के घरवाले भी परेशान थे
क्योंकि जहॉ जहॉ धुआं गया था वहॉ तक लोग प्रभावित हुए  थे
हर कोई डरा हुआ था
उसके बाद तो कई दिनों तक अखबार उससे ही भरे रहते थे
कितने लोग मरे
कितने झुलसे और अपंग हुए
कितने अंधे हुए
परिवार के परिवार बकबाद हो गये थे
लोगों के जान माल का नुकसान हुआ था
एक तरह से भोपाल पूरी तरह बर्बाद हो गया था
टेलीविजन और समाचारपत्र आए दिन इससे ही भरे रहते थे
कई सालों तक यह सिलसिला चलता रहा
कभी सुनने में अाता कि सरकार मुआवजा दे रही है
कंपनी पर केस किया गया विदेशी कंपनी थी
आज भी लोग उस मंजर को भूले नहीं है
जो पीडित है उनका हाल तो पूछने लायक ही नहीं
क्या दोष उनका था और आज तक भी न्याय नहीं मिला है जिसके वे भोगी थे
ईश्वर ऐसी आपदा और त्रासदी कभी न दिखाए .

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