Wednesday 23 October 2019

मेरा गाँव बहुत प्यारा है

मेरा गाँव बहुत प्यारा है
हरे भरे खडे वृक्ष
लहलहाती फसले
घना फलो से लदा बाग
मिट्टी की सौधी सी महक
छोटी छोटी पगडंडियाँ

खेत में काम करते किसान
दरवाजे पर उपले पाथती महिलाएं
रंभाती गाय
मिमियाती बकरी
बांग देता मुर्गा
चिचियाती चिडिया
उगता और डूबता सूरज
चांद और तारों से सजा आसमान
प्रकृति के हर रूप का आनंद

सब कुछ है
पर साथ में बडा पेट भी है
कुछ जरूरतें भी है
बच्चों के प्रति जिम्मेदारिया है
हारी बीमारी है
पढाई लिखाई और शादी ब्याह है

यह कर्तव्य कैसे पूरा होगा
बिना पैसे के तो नहीं
पैसा कमाने के लिए शहर का रूख
फुटपाथ पर गुजर बसर
गंदगी में रहना
धूल और पेट्रोल का धुआं

गांव प्यारा है
शहर न्यारा है
काम देता है
पैसे देता है
आकाश का तारा भले न दिखे
घर के तारों का जीवनयापन करता है
इसलिए तो मुझे अब मेरा गाँव नहीं
यह शहर प्यारा लगता है
झोपड़ी मेरी कोठी लगती है
पसीने की महक इत्र लगती है

शहर मुझे आलसी नहीं कर्मठ बनाता है
मेरे काम का मेहनताना देता है
मेरा गाँव बडा प्यारा है
पर मेरा शहर बहुत न्यारा है
इसलिए यह भीड़ भी मुझे अपनी लगती है
यह चिल्ल पौ सुरीली लगती है
गांव से ज्यादा शहर मुझे अपना लगता है
मेरा गाँव बहुत प्यारा है
पर शहर के सामने वह हारा है

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