Sunday 29 November 2020

मर्द और ऑसू

मैं रोना चाहता था जी भर कर
पर मुझे रोने नहीं दिया गया
सबके समान मैं भी तो बाहर आया था
माँ के गर्भ से रोते हुए
बस उसके बाद तो रोने ही नहीं दिया गया

छोटा बच्चा था
जब गिरता पडता था
तब कहा जाता था
बहादुर बेटा है
क्या लडकियों की तरह ऑसू बहा रहा है

जब थोड़ा बडा हुआ
कभी माँ - बाप की डाट
कभी टीचर की डांट
तब भी दोस्तों से यह सुनना
अरे । लडकी है क्या
जो ऑसू बहा रहा है

नौकरी की
बातें सुनी
तब भी नहीं
ऑसू को पी जाना था
दूसरों को नहीं दिखाना था

ब्याह हुआ
बिदाई वक्त पत्नी फूट फूट कर रो रही थी
उस वक्त भी मैं संजीदा हुआ
तुरंत संभल उसको संभाला
सबको संभालने और ऑसू पोछने की जिम्मेदारी मेरी
वह माँ हो या पत्नी

बेटी की बिदा की बेला
तब भी न रो सका
तैयारियों में व्यस्त
चिंतित और परेशान
सब ठीक-ठाक निपट जाए
चैन की सांस लूं

रोना भी सबके नसीब में नहीं
हमारे नसीब में तो
हर गम पी जाना
क्योंकि हम मर्द है
धारणा है समाज की
मर्द को दर्द नहीं होता
दर्द  तो हमें भी होता है
ऑसू तो हमारे भी निकलते हैं
पर हम उसे दिखाते नहीं
नहीं तो सुनना पडेगा
मर्द का बच्चा होकर भी
औरत की तरह ऑसू बहा रहा है.

1 comment:

  1. माँ शब्द अपने आप मे बड़ी चिज, क्या कहू इनके बारे में
    जन्म भी माँ के साथ होते जो हमे जन्म देती है

    ओर मृत्यू भी माँ के पास होती जो अपने ऊपर रहने देती है वो माँ भारत माँ है
    मेरी तरफ से एक ही दुआ है की मैं हमेशा माँ के साथ रहू ओर हर किसी को माँ मिले ❤🇮🇳🚩

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