Saturday 20 March 2021

मैं माटी हूँ

पैरों को मिट्टी की आदत नहीं है
यह पैर चले हैं मार्बल पर टाइल्स पर
इसलिए तो मिट्टी भाती नहीं है
वह शहर है
यह गांव है
गाँव की मिट्टी भी बडी जिद्दी है
न चाहते हुए भी गाहे - बगाहे लिपट ही जाती है
मानो कहती हो
कितना भी पीछा छुड़ाओ
मैं छोड़ने वाली नहीं हूँ
जडे तो यहीं हैं
कितना भी उखाड़ो
फिर भी मैं तो पकड़े ही रहूंगी
सच ही तो है
ऊपर से कुछ भी कैसा भी हो
अंदर तो मिट्टी ही है
वह नीचे बैठी है जम कर
तब यह टाइल्स चमक रहे हैं
हमारी जडे भी तो गाँव में ही है
कितना भी बदलाव आ जाएं
कहीं न कहीं मन के किसी कोने में
एक गांव समाया रहता है
जिसकी पूर्ति हम फार्म हाउस , रिसोर्ट से करते हैं
हरियाली की तलाश में
सुकून और शांति की खोज में
शहर की आपाधापी से दूर
माटी से हम कितना भी दूर भागे
वह अपनी महक तो भर ही देती है हममें
वह शहर की चकाचौंध कुछ समय के लिए भूला ही देती है
माटी की सौंधी सौंधी महक खिंचती है
कहती है कब तक दूर रहोंगे मुझसे
मैं तो माटी हूँ
मुझमें ही जन्म
मुझमें ही मृत्यु
मुझसे भाग कर जाना इतना आसान तो नहीं

1 comment:

  1. मैं अपनी मातृभूमि को स्दव प्रेम करते है, ओर लोगो को इसके बारे मे अवगत भी करवाते हैं
    हमे एसे लोगो से मिलने का मोका भी मिलता है जो इस माटी के लिए अपना तन,मन,ओर धन को समर्पित करते हैं, जय श्री राम 🚩
    जय हिंद जय भारत 🇮🇳

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