Wednesday 12 October 2022

दीपावली आई है

दीपावली आई है 
साथ में कुछ बीती यादें भी लाई है
चकली  - करंजी 
सेव - चिवडा 
शक्करपारे - लड्डू 
जो बनते थे हर घर में 
पकवानों की खुशबू उठती थी आस - पडोस में 
आदान-प्रदान होता था 
हर घर का अपना स्वाद
बच्चे इंतजार में रहते थे
कब हमको मिलेगा खाने को 
एक उत्सुकता रहती थी
निगाहें ललचाई रहती थी 
दीपावली की सुबह ही नहा - धोकर नए कपड़े पहनते
सबका आशीर्वाद लेते तब जाकर मिलता
कुछ दिन आनन्द के रहते
सुबह- शाम नाश्ते में वही सब
पडोसियों के घर भी साल - मुबारक करने जाते
वहाँ भी यही सब
प्रेम से बिठाते और हम ताव मारते मिष्ठान्न पर
अब तो वह जमाना न रहा
न किसी के पास समय है बनाने का
न रूचि है खाने की
बाजार तो अटे पडे हैं 
जो चाहों वह खरीद लो
घरगुती स्वाद के नाम पर
पर वह स्वाद तो नहीं 
जो घर में बने पकवानों का होता था
वह प्यार की चाशनी से पगे रहते थे
ममता का नमकीन मिला होता था
अब तो बस
 त्योहार के नाम पर खानापूरी करनी है
अब तो पिज्जा और बर्गर का जमाना है
मैगी और पास्ता से प्यार है
तब साल भर में एक बार दीपावली को कपडे 
अब तो कपडों की भरमार है
त्यौहार की उसमें नहीं कोई जरूरत 
लोगों से मिलना - जुलना क्यों 
मन बहलाने को रिसोर्ट है
अब दरवाजे खुले रख कोई इंतजार नहीं करता
अब तो दरवाजों के साथ दिल का दरवाजा भी बंद
बिना बताए जाना नहीं 
उस पर भी प्रतिबंध 
डर लगता है 
समझ नहीं आता 
कौन अपना कौन पराया 
त्यौहार भी अब दिखावा है
उस समय की दीपावली की ज्योत आज भी हदय में झिलमिला रही है
पकवानों का स्वाद अभी भी जीभ पर कायम है
माँ की झिडकी और चुपचाप डब्बे से गुझिया चुराना
कटोरा भर कर सेव और चकली खाना
सबको अपने नए कपड़े दिखाना
उसे पहन इतराना
उन सबकी यादें अभी भी ताजा है
दीपावली आई है 
साथ में कुछ बीती यादें भी लाई है। 

No comments:

Post a Comment