Wednesday 27 September 2023

रिश्ते की मजबूरी

मैं सब कुछ जानती हूँ 
सत्य क्या असत्य क्या
न्याय क्या अन्याय क्या
मन में विरोध भी 
फिर भी बेबस और लाचार 
कुछ नहीं कर सकती
लडना भी आता है 
फिर भी लड नहीं सकती
कमजोर नहीं मैं बहुत मजबूत 
जीवन के थपेडों को झेला है
असमर्थ नहीं समर्थ भी
इतना सब होते हुए भी चुप 
उस बात पर चुप जो मुझे अनुचित लगता है
इसका कारण 
मैं रिश्तों में बंधी मजबूर 
यहाँ लगता है 
मैं स्वतंत्र नहीं गुलाम हूँ 
यह रिश्तों का कोमल धागा नहीं 
बल्कि लोहे की मजबूत जंजीर है 
इसने मुझे जकड़ रखा है
इस जंजीर को तोड़ पाना बहुत मुश्किल है
जब रिश्ता हावी होने लगे
दवाब डालने लगे 
तब उसका यही हश्र 
मजबूरी में बंधे रहो
तोड़ कर सब खत्म कर दो ।






No comments:

Post a Comment