Wednesday, 31 January 2024

अपनों के साथ ही जीना

मैं भूलना चाहती हूँ 
सब कुछ 
सबसे छुटकारा पाना चाहती हूँ 
पाना भी चाहती हूँ 
भूलना भी चाहती हूँ 
चाहती भी हूँ 
नहीं भी चाहती हूँ 
यही तो बडा कन्फ्यूजन है
कभी-कभी लगता है 
अब बस
अब बहुत कर लिया
छोड दो
सब अपने आप कर लेंगे 
पर छोड़ा भी नहीं जाता
ये तो मेरी जिंदगी से जुड़े हैं 
उनके बिना तो जिंदगी, जिंदगी नहीं 
जब तक जीवन है 
तब तक तो इन सब से मुक्त होना संभव नहीं 
ये तो जान है मेरी 
प्राण है मेरी 
मेरी आत्मा में ये ही समाएं 
ईश्वर से भी दुआ मांगते हैं तो इनके लिए 
अपनी परेशानी को झेल लेते हैं 
इनकी नहीं 
कहाँ जाएं 
इनके बिना तो स्वर्ग में भी शांति नहीं मिलेंगी 
अपनों के बिना रहना 
यह तो सोचा नहीं 
उनके लिए कुछ करना 
तब खुशी दुगुनी 
माँ जब अपने मुख का कौर 
बाप अपनी पीठ पर बोझ लादते
वह भूख और बोझ महसूस ही नहीं होता
नहीं भूलना बस उनके बारे में सोचना
इनके बिना नहीं रहना ।

Tuesday, 30 January 2024

गांधी भी राम को देखते होंगे

आज बापू भी तो ऊपर से देख रहे होंगे 
अपने राम लला को मंदिर में विराजमान 
जिसने कल्पना ही की हो राम राज की 
जिसके मुख से गोली खाने के बाद जो शब्द निकला
वह था     हे राम
जिसका भजन ही था
रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीताराम 
पांच सौ बरसों की लडाई 
राम को तो लाना वह भी चाहते होंगे 
हिन्दू तो वे भी थे
राम के सिद्धांतों को मानने वाले
हिन्दू कभी बर्बर नहीं हुआ 
हिन्दू ने कभी किसी का धर्म स्थल पर जबरन कब्जा नहीं किया
हिन्दू ने कभी किसी को जबरन धर्म परिवर्तन नहीं कराया
हाँ अपना अधिकार तो लेना ही था 
कायर भी नहीं डरपोक भी नहीं 
असहिष्णु भी नहीं 
लेकिन कब तक 
देश तो अंग्रेजों का नहीं था ना
तब भी हम गुलाम बने रहे
अंग्रेजों भारत छोड़ो 
यह नारा भी इन्हीं महात्मा ने दिया था
आज सच की विजय हुई है
अहिंसा की विजय हुई है
न्याय की विजय हुई है
तभी हमारे राम विराजे हैं 
महात्मा भी ऊपर से देख रहे होंगे 
मुस्करा रहें होंगे 
सबके साथ गा रहे होंगे 
रघुपति राघव राजा राम 
पतित पावन सीताराम 

परीक्षा से डरना क्यों??

मत डरो बच्चों 
यह परीक्षा है
इसे तो देना ही पडेगा 
अभी तो शुरुवात है
पहली सीढ़ी है
ऐसे न जाने कितनी सीढियां चढनी होगी
गिरोगे भी संभलोगे भी
तुम्हारे साथ तब कोई नहीं रहेगा 
अकेले ही सब करना होगा
अभी तो माता-पिता हैं शिक्षक हैं 
कोई बात नहीं 
अंक कम आए
परसन्टेज कम आए 
प्रयास करना काम तुम्हारा
जो होगा देखा जाएगा 
क्यों तनाव पालना
प्रधानमंत्री जी ने सही कहा
हंसो , मित्रों संग बात करो 
जोक्स बोलो
अपनी तुलना किसी से क्यों करना 
तुम तो अपने आप में यूनिक हो
जो तुममें बात वह शायद दूसरों में नहीं 
अभी तो किताब पढकर परीक्षा देना है
अनुभव तो बाकी ही है
धीरे-धीरे होगा
समय से ही सब 

माली सीचत सौ घडा
ऋतु आए फल देत 

मोदी जी ने भी शायद कभी न सोचा होगा
वे भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे 

बस पढते रहो , परीक्षा देते रहो
मंजिल पर पहुंच ही जाओगे 
शिक्षा कभी बेकार नहीं होती ।

हमारे बापू

हम सभी भारतीयों 30 जनवरी का दिन कभी नहीं भूलेगा जब हमने अपने बापू को खोया था।एक पागल हत्यारे ने उस दुबले पतले 79 साल के महामानव की पोपली हंसी को "हे राम" के मंत्र में परिवर्तित कर दिया था।हम साल दर साल साल उसी 'हे राम' को #शहीद दिवस के दिन बहुत शिद्दत से सादर याद करते हैं।  2 अक्टूबर को 1869 को अवतरित मोनिया जो अपने आखिरी दिनों में महात्मा के रूप में हमारे भारत के गुजरे 50 सालों के इतिहास ओढ़े वो बूढ़े बाबा बन चुके थे कि आज जब कोई इतिहासकार लिखता है तो उसे लिखना पड़ता है;@भारत गांधी के पहले ,@भारत गांधी के बाद! आज बापू को को गुजरे लगभग सतहत्तर वर्ष हो चुके हैं,पर वो हमें हर उस अवसर पर याद आते हैं जब भारत या विश्व के में कोई समस्या आती है तो हम सोचने को विवश होते हैं की बापू इन परिस्थितियों में क्या करते। महात्मा की वो जादुई कसौटी आज भी प्रासंगिक हैऔर युगों युगों तक रहेगी भी।
अब प्रश्न यह है कि आम हिदुस्तानी गाँधी को कितना जानता है और इससे भी जरूरी यह है कि कब से जानता है।नायक पूजा की परम्परा हमारे नस नस में है,और उनकी उक्तियों को सूक्तियों की तरह माना जाता है  अतः मैं भी महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को उद्धृत करना चाहूंगा,महात्मा के निधन पर आइंस्टीन का उद्गार"आने वाली पीढ़ियों को इस पर विश्वास नहीं होगा की हाड़ मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति धरती पर चलता फिरता था।" महात्मा के बारे में उस महान जर्मन वैज्ञानिक का एक और उद्धरण "मेरा मानना है कि गाँधी के विचार हमारे समय के सभी राजनीतिक पुरुषों में सबसे अधिक समृद्ध हैं" गाँधी और आइंस्टीन कभी एक दूसरे से मिले नहीं थे उनमें केवल पत्र व्यवहार का ही सम्बन्ध था पर आइंस्टीन अपने कमरे में गांधी की फोटो रखते थे ,आइंस्टीन को जब जब लगा कि विज्ञान की त्रासदी मानवता के लिए संकट बन सकती है तो अहिंसा और सेवा को तरजीह दी और उस वैज्ञानिक ने ये कहा कि अब समय आ गया है कि हम सफलता की तस्बीर की जगह सेवा की तस्बीर लगा दें।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर जो की अमेरिका में  सिविल राइट्स की लड़ाई लड़े थे उन्होंने कहा कि वह महात्मा  ही थे जिन्होंने 
हमे असहयोग और अहिंसा का रास्ता दिखाया और हम सफल हुए।नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों की लड़ाई के दौरान गाँधी के सिद्धान्तों को इस कदर आत्मसात किया कि उन्हें अफ्रीका का गाँधी कहतें हैं। बराक ओबामा से एक बार पूछा गया कि अगर उन्हें ये अवसर मिले की वो अपने इक्षित मृत या जीवित व्यक्ति के साथ डिनर कर सकें तो वो किसका नाम लेंगे तो बराक ओबामा का उत्तर था केवल महात्मा गांधी, प्रख्यात ब्रिटिश गायक जॉन लेनन भी गाँधी से बहुत प्रभावित थे। प्रसिद्ध अफगानी नेता खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गाँधी भी कहा जाता है,उन्होंने गाँधीके आदर्शों को अपना जीवन सूत्र बनाये रखा।महान तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अपने आंदोलन की सैद्धान्तिक ऊर्जा गांधी के विचारों से ही मिली।  म्यांमार में लोकतंत्र को स्थापित करने वाली आंग सान सू के भी प्रेरणा स्त्रोत गांधी ही थे। चार्ली चैपलिन,जार्ज बर्नाड शा,जॉर्ज ऑरवेल,एनी बेसेंट,मीरा बेन आदि सभी बापू के अनुगामी व प्रशसंक थे।
शेख मुजीबुर्रहमान जो बांग्लादेश के संस्थापक थे उन्हें भी बांग्लादेश का गाँधी कहा जाता है। मुम्बई के मणि भवन में रखा हुआ एक पोस्ट कार्ड  महात्मा की  वैश्विक लोकप्रियता का द्योतक है,जो दुनिया के किसी कोने से GANDHI, INDIA लिख कर पोस्ट किया जाता है और गाँधी जी को प्राप्त हो जाता है। गाँधीजी की लोकप्रियता और प्रभाव का ये आलम था कि ब्रिटिश सामाग्री को सारे प्रोटोकॉल तोड़कर उस अधनंगे फ़क़ीर से मिलना पड़ा था। 
ये तो  रही गाँधी की आलमी मक़बूलियत ,अब हम देखते है कि तत्कालीन भारत मे गाँधी अपने जीवनकाल में ही कितने लोकप्रिय या यूं कहें कि एक किंबदंती बन चुके थे।गांधी जी को बापू,महात्मा और राष्ट्रपिता के नाम से भीजाना जाता है।गाँधी जी को बापू नाम ,गाँधीजी को नील की खेती करने वाले किसानो की समस्या के समाधान हेतु  चंपारण ,आमंत्रित करने वाले किसान राज कुमार शुक्ल ने दिया ,1916 में हुए चंपारण आंदोलन ने गाँधीजी की नेतृत्व क्षमता और उनके अस्त्र सत्याग्रहऔर अहिंसा से निल किसानो को शोषण से मुक्ति मिली। यह बापू का दक्षिणअफ्रीका के बाद भारत में  पहला सत्याग्रह था जिसके माध्यम से गाँधी आम जनता से जुड़े। गाँधीजी का दूसरा नाम महात्मा गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने दिया।गाँधी जी को राष्ट्रपिता के नाम से सर्वप्रथम  नेताजी सुभाषचंद्रबोस ने  संबोधित किया जब वह जून 1944 को सिंगापुर रेडियो से राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित कर रहे थे।
 गांधी जी ने  लोकप्रियता उनके जीवन काल मे इतनी बढ़ चुकी थी कि उनका नाम लोकगीत,मांगलिक अवसरों पर गाई जाने वाली गालियों का हिस्सा बन चुका था।एक बानगी देखिए(1) मेरो कांग्रेस को राज्य भतईया,गांधी बन के अइयो(2) कभी रुकें न चरखवा की चाल,चरखवा चालू रहे,गान्ही महतमा दूल्हा बनेंगे,जॉर्ज पंचम करेंगे कन्यादान,चरखवा चालू रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हरियाणा में एक नारा बड़ा प्रचलित था-खरा रुपैया चाँदी का,राज महात्मा गाँधी का।
पुरानी फिल्मी गानों के में भी बापूका जिक्र खूब हुआ है,जैसे कवि प्रदीप रचित फ़िल्म जागृति (1954)का गीत दे दी हमे आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, 1960में बनी  गुण हमारे गाँधी फिल्म का गाना-गुण धाम हमारे गाँधी जी,शुभ नाम हमारे गाँधीजी,
1948 में बनी फिल्म,बापू की अमर कहानी का गाना सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापू की अमर कहानी,वो बापू जो पूज्य है इतना जैसे गंगा माँ का पानी,लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म का गाना बंदे में था दम,वंदेमातरम। 1948 की फिल्म खिड़की का गाना-ए हो संवरिया, जो जाओ बजरिया तो लाओ चुनरिया खादी की,जै बोलो महतमा गांधी की।,एक चवन्नी गांधी की,जी बोलो महतमा गान्धी की। यहाँ पर मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहाहूँ,जब मैं लगभग 9 साल का रहा हूँगा तो मेरे प्राइमरी स्कूल में अक्टूबर,1969 में गांधी शती के अवसर पर सभी बच्चों को गांधी जी का एक कैलेंडर साइज फ़ोटो बांटा गया था और सभी बच्चों को महात्मा के विषय मे बताया भी गया था,अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये प्रक्रिया पूरे भारत में पूरी की गई थी।उसके बाद हम गाँधी से दिन ब दिन परिचित होते गए।युवावस्था में "मेरे सत्य के साथ प्रयोग" पढ़ने के बाद ये  परिचय का वृत्त संकुचित होकर कब आस्था में बदल गया पता हि न चला,रोम्यांरोला,लुइस फ़िसर,प्यारे लाल ,राम चन्द्र गुहा की गाँधी खंड 1,गांधी भारत से गांधी से पहले ,भारत गांधी के बाद के बाद अंत में पहला गिरमिटिया पढ़ने के बाद मैं गांधी को जानने के लिए किसी रिचर्ड एटनबरो की गाँधी फ़िल्म का मोहताज नहीं था, और मेरा मानना है कि मेरे जैसे बहुत लोग होंगे। आज मेरा पोता जो महज चार साल का है  ,करेंसी नोट पर गाँधी जी की फोटो देखकर पूछता है कि बाबा ये किसकी फोटो है तो मैं बताता हूं की, बाबू, ये महात्मा गाँधीजी है जो बहुत बड़े थे।
ये सब लिखने का आशय यह है कि रिचर्ड एटनबरो की गाँधी(1982)से पूर्व में भी गाँधी उतने लोकप्रिय थे जितने गाँधी फ़िल्म के पश्चात,गाँधीपर भारत मे भी फिल्में बनी  उनमें से जिनको  मैं याद कर पा रहा हूँ जैसे गाँधी  माय फादर,द मेकिंग ऑफ महात्मा,
हे राम,लगे रहो मुन्ना भाई,रोड टू संगम और मैंने गाँधी को नहीं मारा आदि।गाँधी जनता में जनार्दन देखते थे,वे साध्य की शुचिता के समर्थक थे ।जून1947 में गाँधी कश्मीर गए ,कश्मीर के राजा हरि सिंह ने गांधी को  अपने महल में रहने  के लिए आमंत्रित किया ,गांधी जी का उत्तर था कि आपकी प्रजा का समर्थन आपको नही है,इसलिए मैं आपका आतिथ्य स्वीकार नही करूंगा। ऐसे दृढ ईच्छाशक्ति के धनी थे गाँधी जी ,कोई भी कार्य जो इनके सिद्धान्तों के विरुद्ध होता उसका समर्थन  वो  कभी नहीं करते,चौरीचौरा कांड के बाद असहयोगआंदोलन को ,कांग्रेस के प्रबल विरोध के बावजूद वापस लेना,उनकी अपने सिद्धांतों पर असीम आस्था को दर्शाता है।इसीलिए तो हम सबके थे प्यारे बापू, सारे  जग से न्यारे बापू ।यही बापू चल पड़े जिधर दो डग मग में,चल पड़े कोटि पग उसी ओर।पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।इसी लिए तो श्रेष्ठता का पर्याय ही गाँधी शब्द है। भारत की पहचान ही है-  गंगा,गीताऔर गाँधी 
आज गाँधी बहुत याद आ रहें हैं,क्या आप मानते हैं कि रूसऔर यूक्रेन के युद्ध मे गान्धी मौन रहते ,कदापि नहीं अहिंसा का वो पुजारी आज रूस जाकर पुतिन को युद्ध विराम के लिए मजबूर कर देता।
क्या आज के नेताओं की बोन्साई प्रजाति से गाँधी के बटबृक्ष सरीखे व्यक्तित्व की तुलना हो सकती है अंत मे किसलिए फिर कीजिये गुमगश्ता जन्नत की तलाश,जबकि मिट्टी के खिलौने से बहल जाते है लोग।

               लेखक --- वीर प्रकाश सिंह  

Sunday, 28 January 2024

कल और कल के बीच में आज

जेकर जड कमजोर ओकर पुलई कैसे मजबूत होई
बचपन में माँ से यह बात सुनी थी
जिस पेड़ का जड ही कमजोर हो उसका तना मजबूत कैसे हो सकता है
बहुत समय लग जाता है
कभी-कभी एक जिंदगी गुजर जाती है
सामान्य रास्ते पर आने के लिए 
गरीब का बेटा गरीब ही रहें यह जरूरी नहीं 
लेकिन गरीबी से अमीरी तक का सफर इतना भी आसान नहीं 
शून्य से शुरूवात
अपने बल पर खडा होना
बहुत कुछ खोता है
जीवन ही कहाँ जी पाता है वह
कर्तव्य और जुगाड़ के चक्कर में चकरघिन्नी सा घूमता रहता है
आने वाली पीढ़ी के लिए करना है कुछ 
अपने लिए नहीं 
ऐसी ही सोच में सब गुजर जाता है
कल और कल के चक्कर में आज फँसकर रह जाता है ।

राम मंदिर नहीं है यह भारत की आत्मा है

राम का मंदिर बस मंदिर है भगवान का
यह मत समझो
यह तो गवाह है हमारे धैर्य का 
यह तो विश्वास है सनातन धर्म का
यह तो तपस्या है हमारे पूर्वजों की
यह तो त्याग है साधु- संतों  - भक्तों का 
यह तो धरोहर है हमारे पूर्वजों का
यह अभिमान है भारत भूमि का 
यह भाल है वीरों का 
यह प्रतीक है एकता और सद्भावना का 
यह प्रमाण है भाईचारे का
यह निशान है हमारी सभ्यता और संस्कृति का
यह आदर्श है हमारा 
यह विकास है भारत का 
ये राम नहीं हमारी आत्मा है
यहाँ तो कण-कण में राम 
यहाँ मुख में राम
सुबह ही शुरू होती राम के नाम से
जीवन का अंत भी राम नाम से
राम केवल राम ही नहीं 
यह भारत की आत्मा है 
राम राज्य में रहना हर भारतीय की इच्छा। 

Saturday, 27 January 2024

समय निकालो अपने लिए

कुछ अपने लिए समय निकालो 
जी भर कर खिलखिलाओ 
जी भर कर रो लो 
जी भर कर बातें कर लो
जी भर कर घूमो
इधर-उधर की बकवास करो 
बिना वजह मुस्करा लो
जो खाना है मनपसंद खा लो
टी वी देखो मोबाइल चलाओ
अखबार के पन्ने चाट जाओ
किताब पढ लो 
गाना गा लो न अच्छा तो बाथरूम में ही सही
नाच लो सबके सामने न सही शीशे के सामने ही सही
शब्दों को मत तोलो 
जी भर कर भावना व्यक्त कर लो
जिससे मिलना है मिलो 
जिसको छोडना है छोड़ दो
अपने दिमाग पर स्ट्रेस मत डालो
अनुशासन और व्यवस्थित इतना भी मत बनो
जीवन ही मशीन बन जाए 
ज्यादा सोचना नहीं करना अपने मन की
जो होगा सो होगा , देखा जाएंगा
एटीट्यूड में रहो 
इतरा लो गर्वित हो लो
 इतना क्यों पाबंदी लगा रखी स्वयं पर
रहना तो हमेशा नहीं है यहाँ 
जग को तो छोड ही जाना है
कुछ समय निकालो अपने लिए 
नहीं  तो याद रखना
यह समय ही निकल जाएंगा 
तुमको छोड़ कर 

हमारा मिजाज

ठंड की क्या मजाल 
जो मुझे कंपकंपा दे
यह तो हर साल आती- जाती है
मौसम बदलते ही भाग जाती है
इससे क्या डरना
यह तो रजाई - गद्दे में ही दुबक जाती है
बदरी कितने दिन की
सूरज को तो आना है 
प्रकाश को तो इस बदरी की छाती फाड निकलना है
ठंड को लगता है
लोग दुबक कर बैठ गए 
मुझसे तो इस कदर डर गए 
नहीं हम तो अलाव ताप रहे हैं 
घुंघुनी और मूंगफली का मजा ले रहे हैं 
गर्म गर्म चाय और सूप पी रहे हैं 
बाहर भी मफलर - कोट - स्वेटर में घूम रहे हैं 
हम तो चाहते हैं 
तुम ऐसे ही बने रहो
तुम हो कि भाग जाती हो
हमको तपने को छोड जाती हो 
हम तो वह जीव है जो कभी बदलते नहीं 
मौसम का क्या 
आज कुछ तो कल कुछ 
हमको भागना नहीं डटना आता है
हालात से लडना आता है
सर्दी- गर्मी- बरसात से घबरा जाएं 
ऐसे नहीं हमारे मिजाज 

दौड़ लगाओ

जीवन में दौड़ लगाओ
जितना हो छलांग लगाओ
सफर को आसान बनाओ
गढ्ढे और खाई को लांघ डालो
कीचड़ से मत डरो उससे पार निकल जाओ
धूल उड कर आएंगी 
उसको माथे का गुलाल बना दो
मिट्टी का शरीर 
मिट्टी से क्या घबराना 
कर्म करना है तो डरना क्यों 
रूकना क्यों 
मन में दृढ़ निश्चय हो
मंजिल मिल ही जाएंगी 
मंजिलें भी तो उसी की
जिसको जीवन के समुंदर में तैरना आता हो 
किनारा उससे कैसे दूर रहेंगा
जिसने कर्म की पतवार थाम ली हो ।

Friday, 26 January 2024

ऑसू की अहमियत

ऑसू की एक अपनी अहमियत होती है
बहुत संवेदनशील होता है यह ऑसू
जहाँ शब्द असमर्थ हो जाता है
वहाँ यह काम कर जाता है
भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा उदाहरण
खुशी हो या गम
यह हमेशा साथ निभाते हैं
सब कोई साथ छोड़ दे
पर यह नहीं छोड़ता
आजीवन साथ निभाता है
मन हल्का कर जाता है
सच्चाई छिपी होती है इसमें

हाँ यह दिगर बात है
लोगों ने इसको भी नहीं छोड़ा
इसका भी अवमूल्यन किया
इसका सहारा लेकर लोगों की भावनाओं से खेला
उनको धोखा देकर अपना उल्लू सीधा किया
स्वार्थ के लिए
झूठमूठ का अपनापन जताने के लिए इसका सहारा
लोग इनके झांसे में  आ जाते हैं
तब ऐसे मगरमच्छों के ऑसू को देख मत भावनाओं में  बह जाएं

पहचाने
कौन असली और कौन नकली
बडा पवित्र है ऑसू
यही तो हमारा अपना है
हर किसी के सामने इसे न बहाए
बहुत अनमोल है संभाल कर रखें

इंसान के रूप में जो मगरमच्छों का बोलबाला है
उनसे दूर रहिए
सच्चाई को पहचानिए
बहुत जरूरी है
ऑसू की परख करना
जो लोग मगरमच्छ के  ऑसू बहाते हैं
उनसे सतर्कता बरते
दूरी बना कर रखें।

Thursday, 25 January 2024

इस बार का गणतंत्र दिवस कुछ खास है

इस बार का गणतंत्र दिवस कुछ खास है
सबके मन में अजब उल्लास है
इस बार की जनवरी तो जन - जन की रही
दो हजार चौबीस को कैसे कोई भूलेगा 
गणतंत्र मिला था हमको आजादी के बाद
पांच सौ वर्षों बाद आजाद हुए हमारे भगवान 
मन में थी कहीं एक कसक
कैसे होंगे आजाद हमारे प्रभु 
एक दूत आया उनका 
बीडा उठाया उसने 
कहना था उसका
अयोध्या में तभी कदम रखूगा 
जब राम लला विराजमान होंगे 
वह शुभ घडी आ ही गई
हिन्दू अब जाग उठा 
स्वाभिमान से भर उठा
बरसों की त्याग और तपस्या पूरी हुई 
राजा राम को मिला अपना घर
एक मिली थी तब आजादी 
अब मिली है दूसरी आजादी 
संविधान और सुप्रीम कोर्ट का पालन हुआ
गणतंत्र का मान रखा
भगवा फहराया है गर्व से
तिरंगा लहराएगा  उल्लास से
जय जय भारत गूंजेगा 
दुनिया में डंका बजेगा 
राह दिख रही है सबको 
अब न शंका किसी को
विश्व गुरू बनेगा 

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा 
झंडा ऊंचा रहें हमारा 

Wednesday, 24 January 2024

रात बाकी है

तारीखों में धीरे-धीरे व्यतीत हो रहे हैं हम
समय के साथ हम भी धीरे-धीरे अतीत हो रहे हैं 
जो कल था  वह आज नहीं 
जो आज है वह कल नहीं 
कभी प्रकाश पुंज थे
दम दम दामिनी सी दमक रहे थे
आज प्रकाश कुछ धुंधला हो रहा है
सुबह से संझा की ओर प्रस्थान हो रहा है
तेजोमय धूप से ढलती संझा की ओर सरक रहे हैं 
हाँ यह बात अवश्य है
अभी संझा ढली नहीं 
अभी रात हुई नहीं 
रात बाकी है 
बात बाकी है
बहुत कुछ करना बाकी है
कुछ कहना कुछ सुनना 
कुछ समझना कुछ समझाना 
जीवन को अपने ढंग से जीना
जो कुछ किया नहीं वह करना
अपनी इच्छाओं को पूरा करना
सुबह बीती संध्या ढलान पर
हाँ रात तो बाकी है 
यही बहुत काफी है 

एक था मोदी

राम जी की निकली सवारी 
राम जी की कृपा है न्यारी 
मोदी जी की प्रधानमंत्री योजना की सबको बधाई 
सबके साथ मिला हमारे रामजी को भी अपनी अयोध्या 
पांच सौ वर्षों की सघन तपस्या 
सबके समक्ष थी मंदिर की समस्या 
राम लला रहें टेंट में 
हम विराजें घर में 
कचोटता था मन
सबसे बडी थी दुविधा 
कैसे हल निकले यह थी सबसे बडी समस्या 
आया आदेश न्यायालय का 
किया पालन इस तपस्वी ने
नरेन्द्र भाई का क्या बखान करें 
हमारे सपने को जो साकार करें 
राम राज्य को स्थापित करें 
बडे प्रेम से हर एक से गले लगे 
सदियों याद रहेगा 
एक था मोदी 

Monday, 22 January 2024

प्रेम राम- सीता का

सीता- राम की जोड़ी 
सबके लिए मिसाल
पति को बिना कुछ कहे
बिना शिकवा - शिकायत 
चल पडी संग 
वन गमन स्वीकार किया 

हुआ हरण जब सीता का
राम ने सेतु बांध दिया 
समुंदर को ही पाट दिया 
रावण से राघव ने युद्ध ठान लिया 
सीता का विश्वास न टूटने दिया 

ताजमहल तो फीका है 
मृत्यु की निशानी बस एक मकबरा है
एक न जाने कितनी बेगम शाहजहाँ की
हमारे राम की तो बस एक ही प्राणप्रिया 
वह जनकनंदिनी सीता हैं 
राम सेतु है प्यार की अमर निशानी 
संघर्षों से लिखी कहानी
नहीं काटे किसी के हाथ
नहीं बनाया बंधक 
बस राम नाम ले छोड़ा पत्थर 
बन गई राह समुंदर के सीने पर

गर्भवती अवस्था  में फिर वन गमन 
नहीं किया कोई शिकवा शिकायत 
छोड़ आए प्रिय देवर
पति की मजबूरी को जाना था 
तब पुत्र की मजबूरी थी 
इस बार राजा की मजबूरी थी 
राम को तो कर्तव्य निभाना था
मर्यादा पुरुषोत्तम की पत्नी थी 
मर्यादा का पालन करना था उनको भी 
उस बार पति संग थे
इस बार गर्भ में उनके अंश थे
जंगल ही लिखा था जानकी को
यह भी तो वे जानती थी
राम के दिल में बस उनका नाम लिखा है

तभी तो जब अश्वमेघ यज्ञ की बारी आई
नहीं स्वीकारा राम ने  किसी को अपनी अर्धांगनी 
सीता के पति रहे वे हमेशा 
पत्थर ह्रदय बन जिस पत्नी को त्यागा 
उसी की पत्थर की मूरत को अपने बगल बिठाया 
दिखलाया दुनिया को
सीता बिना राम नहीं 

तब भी ऑखें भर आई थी जन जन की 
जब माता कैकयी ने वनवास का राज दिया था
अब भी भर आई थी ऑखें 
जब सीता नहीं संग मूर्ति विराजमान थी
कितना छल हुआ एक राजा का
सीता सह नहीं पाई
समर्पित कर दिया धरती को
समा गई माता की गोद में 

निष्कंटक राज किया राम ने
मन फिर भी रीता रहा
लगाई अंतिम समाधि सरयू में 
छोड़ चले जग संसार 
ऐसे थे हमारे राजा राम
ऐसी थी हमारी माता सीता 
इन दोनों की प्रेम कहानी 
जिसका नहीं है कोई सानी ।



राघव आए हैं

राघव आए हैं 
मन आह्लादित है
ऐसा नहीं कि 
वे आज ही आए हैं 
वे तो कण-कण में समाएं हैं 
रोम - रोम में राम ही राम 
लेकिन एक कसक तो थी
मन के अंतरतम में 
मेरे राम कब विराजेगे ??
अयोध्या के भाग कब खुलेगे 
हमारे मन कब खिलेगे 
राम आए हैं तब सब खुशियाँ मना रहे हैं 
भारत ही नहीं लगता जग राममय हो गया है
अपने को तो  हमने राम पर छोड़ दिया 
राम को तो राम भरोसे कैसे छोड़ते
उसके लिए तो लडना था
मर - मिटना था 
जग खेवैया को भी नदी पार करने के लिए केवट की जरुरत पडी थी 
आज वे बातें भी याद
वे लोग भी याद 
वह नारा भी याद
सौगन्ध राम की खाते हैं 
मंदिर यहीं बनाएँगे 
बना और ऐसा भव्य कि बस देखते ही रह जाओ
अयोध्या के भाग्य खुले 
सरयू आल्हादित हुई
नक्शे में अयोध्या ढूंढा जा रहा है
भक्तों से पटी  अयोध्या 
प्लेन , ट्रेन, बस सब फुल 
हर कोई अयोध्या प्रस्थान को आतुर 
मन में विश्वास है आस्था है
राम के प्रति समर्पण 
ईश्वर दिखता नहीं है
राम दिख रहे हैं आज
हर कण-कण में 
रोम - रोम में राम ही समाएं 
कर लो दर्शन प्रभु का 
दुर्लभ संयोग बना है
धन्य हुए हम 
जन्म लिया उस युग में 
राम आगमन हुआ जिसमें 
हमारी पीढ़ी भाग्यवान है 
जिसे यह सौभाग्य मिला 

Sunday, 21 January 2024

मतलब के दोस्त

अचार - नाम सुनते ही मुख में पानी
यह है थाली की जान
नहीं इसको कोई महत्व का स्थान 
स्वाद बढाता बस
नहीं उसका नाता पौष्टिकता से
सलाह देते सब 
इससे दूर रहो 
रह नहीं पाता कोई 

ऐसे ही कुछ दोस्त बन जाते हैं 
गप्पा ‐गोष्ठी तक ही सीमित 
बैठ जाते जहाँ साथ
बन जाता माहौल 
नहीं लेकिन यह किसी काम में आते
जरूरत पडने पर दूर ही रहते
सुख - दुख में नहीं निभाते साथ
ये लोग अचार की तरह रुचिकर तो होते हैं 
काम के कुछ नहीं 
उनसे रखो उतना नाता
जितना समझो आवश्यकता। 

आए हैं राम अवध में

आए है राम अवध में 
सरयू फिर से इतराइ है
झूम उठी अयोध्या 
हर घर में बजी बधाई है
रोम- रोम हर्षित है 
हर मन गर्वित है
भाग जाग उठा भारत का 
आए हैं राम अवध में 

नहीं चाहिए किष्किन्धा 
नहीं चाहिए लंका
हमको तो सबसे प्यारी है 
हमारी अयोध्या 
जन्मभूमि पर लौटे हैं 
पांच सौ वर्षों का वनवास सहा 
तिरपाल में डाला डेरा है
अवधपुरी में ही आना था 
कितनी अवधि बीते भले 
जन्मभूमि तो जन्मभूमि है
उसे कैसे बिसरा दे
अपनी माटी से नाता कैसे तोड़ दे

चौदह वर्ष के वनवास में 
मिले केवट और निषाद
माँ शबरी का आशीर्वाद 
मित्र सुग्रीव और भक्त विभिषण का संग 
किया पराजित लंका को 
माँ कैकयी तो पछताई थी
पुत्र मोह में बिसराई थी
मांग लिया माफी राम से
कैसे न करते माफ अपनी प्रिय माई को
जिसने दिया भरत सा भाई को 

इस बार का वनवास कुछ लंबा खींचा 
आक्रान्ता बाबर ने आघात किया
मर मिटे न जाने कितने 
अपने राम को लाने को
रथयात्रा शुरू की अडवाणी ने
जान गई कोठारी  , शिवसैनिक की
बालासाहेब ने हुंकार किया
सिंघल, जोशी , त्रतम्बरा ने की अगवानी 
सब चल पडे साथ बन कार सेवक
पहुँच गए उस स्थल 
ढहा  दिया उस ढांचे को
जिसके नीचे बसे राम थे
गोली सीने पर खाई
पर राम लला पर ऑच न आई

आया अब एक दूत बजरंगी
जिसका नाम है मोदी
कसम खाई थी सबके साथ
सौगन्ध राम की खाते हैं 
मंदिर वहीं बनाएँगे 
बन गया मंदिर
सज गई अयोध्या 
अब तारीख नहीं 
करो राजतिलक की तैयारी 

कुछ ही पल बाकी है
गाओ मंगल गान
दीप जलाओ - उत्सव मनाओ
भगवा फहराओ
धरती से गगन तक एक ही गुंजार 
जय सिया राम 


इस दीवाली की छटा ही होगी निराली 
हर घर में हो जय जयकार 
जब रामलला हो विराजमान 




जीवन ही राम

राम राम भैया 
जय श्री राम 
हरे राम

हाय राम
अरे राम
राम - राम

हे राम
राम जाने

राम नाम सत्य है 

राम के साथ शुरू 
राम के साथ खत्म 
यही जीवन का मंत्र। 


बस राम साथ हो मेरे

भरोसा रख उस पर 
नहीं है कुछ तेरे बस में 
जब तक वह न चाहे
तेरे चाहने से क्या होता है
होगा वही जो राम रचि 
निश्चिंत हो
समर्पण कर दे 
वह है ना 
किसी से डरना क्यों 
दुश्मनों से तो बिलकुल नहीं 
मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है 
वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है 

जब जीवन से नहीं डरे
तब मृत्यु से क्यों डरे
वह तो एक पल के लिए आती है
साथ ले जाती है
जिंदगी तो बरसों साथ निभाती है
जब आएगी 
तब एक -एक हाथ कर लेंगे 
जूझ ही लेंगे 
तब तक तो जी भर जी ले 
जी भर जीये मन भर मरे
बस राम साथ हो मेरे 

Friday, 19 January 2024

राम बिना भारत कहाँ??

एक निर्वासित राजकुमार 
वल्कलधारी सन्यासी 
साथ में पत्नी और छोटा भाई
चल पडे बीहड़ राह पर 
माँ को पिता का दिया हुआ 
वचन पूर्ण करने को
तज दिया अयोध्या का राज
नहीं कोई मलाल
मुख पर मुस्कान 
राह में साथी मिलते गए 
जुड़ते गए
राम सबको गले लगाते रहें 
ताडका को मारा मारीच को मारा
खर- दूषण का वध किया 
त्रृषि- मुनी को संरक्षण दिया 
राह में जो जन मिला 
सबने उनको अपना समझा
भावी राजा भूमि पर पैदल चल रहा है
यह दृश्य भी अदभुत था
केवटराज निषाद मिले 
उतराई भी मांगी संसार के खेवैया से 
बदले में  पूरे खानदान का उद्धार मांग लिया 
अहिल्या का उद्धार हुआ
शबरी की इच्छा पूरी हुई 
निर्वासित सुग्रीव मिले 
दोस्ती निभाई बालि को मार 
उपेक्षित भक्त विभिषण मिले 
हनुमान जैसा सेवक मिला 
पिता की मृत्यु हुई
पत्नी का हरण हुआ 
एक विशाल साम्राज्य के मालिक रावण से युद्ध करना 
न कोई साज - सामान न
न अस्र - शस्त्र न रथ 
भालू और बानरो की फौज के साथ 
लंकाधिपति रावण को पराजित करना 
यह दृढ़ संकल्प के कारण संभव
ईश्वरीय रूप कभी नहीं दिखाया 
मानव का हर रूप दिखा
सब खग - पेड़- पौधे  से पूछते हैं 
तुम देखी मेरी सीता मृगनयनी 
लक्ष्मण को बाण लगने पर रूदन
समुंदर से प्रार्थना करना 
रावण का सर फिर से जुड़ते देख विभिषण से सलाह
कहीं भी मर्यादा पुरुषोत्तम ने अपनी मर्यादा भंग नहीं की
वे मानव बने रहें 
तभी जन मानस के करीब आए
भरत राजा बन भी जाते तब भी जनमानस उनको राजा नहीं मानता
तभी तो वनवास मांग लिया
वह मान भी लेंगे 
 यह बात महारानी कैकयी  भलीभांति जानती थी
वनवास देकर भी वह कहाँ दूर कर पाई राम को जनता से
उत्तर से चले पश्चिम पहुंचे वहाँ से दक्षिण पहुंचे 
एक छत्र भारत अखंड भारत के नायक बने
आज भारत का ऐसा कोई कोना नहीं 
जो राम से परिचित न हो
विश्व भी राम को जानता है
राम ही में तो हिन्दुस्तान समाया है
हर दिल में राम समाएं 
सीखना है तो प्रभु राम से सीखो 
रामायण जहाँ होगी वहाँ स्वर्ग तो होगा ही ।

सूर्य से ही सब

जीवन क्या है
सोचता रहा
सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य चलता रहा 
समझ आया 
यही जीवन है
जिस दिन यह न घटे 
उसी दिन सब खत्म 
सुबह का प्रकाश 
रात का अंधकार 
देता है जीने का आभास 
भोर हुई 
संध्या हुई 
आगमन - प्रस्थान 
हर जीव का
जीवन जुड़ा है सूर्य  से ।

Thursday, 18 January 2024

पेड़ का नेचर

पेड़ कैसा है
विशालकाय है
दिलदार है
छायादार है
सहनशील है
धैर्य वान है
मिट्टी से जुड़ा है
संघर्ष शील है
दान शील है
वसंत - पतझड़ के संग है
स्वार्थ विहीन है
समभाव है
जो आता उसके द्वारे 
उसे अपनेपन से ही मिलता 
बच्चों- बडों- युवा 
औरत - मर्द 
अमीर - गरीब 
जात- पाति- धर्म सबसे परे
यह बस सबको अपना सर्वस्व बांटता 
नहीं किसी से कुछ अपेक्षा 
पत्थर के बदले भी फल
ऐसा है इसका नेचर ।

राम आएंगे तो एक प्रश्न पुछूगी

राम आएंगे तो दीप जलाऊगी 
खुशी - खुशी गीत गुनगुनाऊगी 
एक प्रश्न भी पुछूगी 

वह तो चल दी थी तुम्हारे साथ 
वादा जो था साथ निभाने का
रावण वध कर उसे छुडाया था
भले ही अग्नि परीक्षा ली हो उसकी
कोई गम नहीं गर्व था 
उसके लिए लंकेश से टकराया था 

हुई क्या भूल उससे 
जो जनकसुता को ठुकराया था
वह भी उस हाल में जब वह गर्भवती हो
तुम प्रजापालक थे यह सर्वविदित है
तुम राजा थे अयोध्या के
किसी के पति भी थे
उसके प्रति भी कर्तव्य था कुछ 
क्यों नहीं दे दिया राज भरत को 
वन गमन कर लिया 
अपनी सहचरिणी संग

पिता द्वारा माता को दिया हुआ वचन पुरा करने
चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया
क्यों नहीं विवाह वेदी पर पत्नी को दिए हुए सात वचन का मान रखा 
एक अच्छे पुत्र बनने के लिए राज्य छोड़ा
एक अच्छा राजा बनने के लिए पत्नी को छोडा 
यह कहाँ का न्याय हुआ 
प्रजा के लिए न्याय करते अपनी पत्नी के साथ अन्याय कर बैठे 
अपनी प्राणप्रिया को दूर कर तुम भी कहाँ सुखी रह पाएं 
पत्थर की मूरत बना अश्वमेघ यज्ञ किया 
सीता तो पत्थर की मूरत नहीं थी
जीती जागती इंसान थी जिसके रोम - रोम में राम ही राम थे

खुशी है आज जानकी के साथ विराजमान हो रहे हो
यह प्रश्न तो तब भी बना रहेगा 
जनकनंदिनी का त्याग क्यों  ???

इतने भी कमजोर नहीं

राह चलते कोई भी हमें ठोकर मार दे 
यह समझना बेवकूफी है
नींव के पत्थर हैं हम 
एक पत्थर अगर खिसकी
पूरी इमारत ढह पडेगी
जानते हैं आपकी महत्ता 
आपके जितने तो नहीं 
पर कम हम भी नहीं 
हाथी तो नहीं 
चींटी तो है
विशालकाय को पूरा डांवाडोल करने की ताकत है
नल - नील तो नहीं समुंदर पर पुल बांध दे 
वह गिलहरी तो है जो बालू का अंबार लगा दे
अर्जुन तो नहीं हैं जो रथ को कोसों पीछे कर दे 
कर्ण तो हैं 
जो दो इंच ही सही त्रिलोक के स्वामी वाले अर्जुन के रथ को पीछे कर दे
विशाल समुंदर तो नहीं 
एक कंकड़ तो है जो उसमें हलचल उत्पन्न कर दे 
विशालकाय वृक्ष तो नहीं 
एक गमले में लगी तुलसी तो हैं 
ज्यादा अपेक्षा तो नहीं 
इतना तो जरूर है
जब मिलो तो सम्मान और प्यार से
जो तुम हमसे चाहते हो
वही हम भी तो तुमसे चाहते हैं। 

मन कितना मजबूत??

किसी रिश्तेदार ने कहा
आप जैसी दिखती है वैसी है नहीं 
मन से बहुत मजबूत हैं 
सुनकर हंसी आ गई 
मजबूत ??
न जाने कितनी रातें जाग कर बिताई है
रो - रो कर दिन काटे हैं 
ऑखों में ऑसू छिपाए हैं 
लिख - लिखकर पन्ने फाडे हैं 
मन मसोसकर रह गए हैं 
जवाब नहीं दे पाए हैं 
जो कुछ भी नहीं हमारे सामने 
वह भी सिखा गए हैं 
जो सोचा नहीं 
वह देखा है
झेला है
जीवन का न जाने कितना खेला है
जब खुद पर पडता है ना 
तब अकल आ जाती है
न आए तो गिरते - पडते सीख ही जाते हैं 
मन तो सबका कोमल ही होता है
जब वक्त के थपेडों से सामना होता है
तब सब कोमलता धरी रह जाती है 
पग - पग पर परीक्षा 
बडे रास्ते क्या पगडंडी में भी रूकावट 
चलना फिर भी होता ही है
न चले तो फिर क्या करें 

दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पडेगा 
जीवन है अगर तो आग के दरिया को पार करना ही पड़ेगा। 

Wednesday, 17 January 2024

एक प्यारा था सपना

एक प्यारा था सपना
वह बिल्कुल था अपना
अक्सर वह आते रात को
वह भी नींद में 
सुबह उठते तो सोचते
याद करते 
क्या देखा सपने में 
कभी-कभी बहुत अच्छे
कभी-कभी बहुत डरावने 
उसका मायने निकालने की कोशिश करते
कुछ समझ नहीं आता 
आजकल सपने भी आना बंद
देखना तो बिलकुल नहीं 
जिंदगी की हकीकत देख ली
सपने क्या देखे 
सपना सच होता है
सुनते आए थे
अब इस पर विश्वास नहीं 
जो बीत रहा 
वो बस अपना है
जो बीत गया 
वह सपना था
सपने की भूलभूलैया में 
हकीकत का क्या काम 
भले कोई छोड दे अपना हाथ 
बस चलना है वक्त के साथ

ये कैसा जहां ???

ना जाने कितने सपने संजोये थे
घर - संसार बसाने की
ख्वाब था 
सपनों का घर 
वह तो सपना ही रह गया 
बसना क्या भटकना रहा बदस्तूर 
कभी यहाँ कभी वहाँ 
जिंदगी ले जाती जहाँ 
वह आगे आगे 
हम पीछे पीछे 
पकड़ने की कोशिश 
पकड़ ही नहीं पा रहें 
वह हर बार राह बदल लेती है
एक नया मोड़ ले लेती है
कभी पगडंडियों पर
कभी टेढे मेढे रास्ते पर 
समतल पर भी कभी-कभी 
लेकिन वहां भी गढ्ढे ही गढ्ढे 
हम पाटने की भरसक कोशिश करते
वह है कि पटने का नाम ही नहीं लेते 
सही कहा किसी ने

मुकम्मल जहां नहीं मिलता 
किसी को जमीन तो किसी को आसमां नहीं मिलता। 
       

आओ बोले हरे राम

अयोध्या सज रही है
राम लला के स्वागत की तैयारी 
जन जन के मन के नायक
मर्यादा पुरुषोत्तम 
प्रजापालक 
हर किसी को लेकर चलने वाले
वे ही हमारे आराध्य विराजमान होने वाले हैं 
शुभ दिन आ रहा है
भगवा लहरा रहा है
सनातन धर्म की जय जयकार हो रही है
मन आह्लादित है
हजारों दीप जल रहे हैं 
एक बहुप्रतिक्षित अभिलाषा पूरी हो रही है
हम घर में राम तिरपाल में 
दुख होता था
जिस किसी का भी योगदान 
जिस किसी की भी भागीदारी 
मंदिर निर्माण और राम जी को स्थापित करने में 
हर उस शख्स का शुक्रिया 
वह कोई भी हो
फर्क नहीं पडता
बस राम को लाने में जिनकी भूमिका रही है
हर उस शख्स को सलाम 
क्या बोले 
बस एक ही शब्द 
मुख से राम राम राम राम , जय सिया राम 
वही काफी है 
राम धुन बजे हम प्रसन्न हो झूमें 
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 

Tuesday, 16 January 2024

अलविदा मुन्नवर साहब

शायर चला गया 
अपनी शायरी छोड़ गया
अलफाज यही रह गए
शब्दों का बादशाह 
इनकी बादशाहत खत्म नहीं होती 
सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करती है
जब जब शायरी की बात 
वहाँ तो चर्चा आपकी होगी 

लेखनी का कमाल

लिखती हूँ मैं 
ताकि संवेदना बनी रहें 
जज्बात जिंदा रहें 
पढना जारी रहें 
सीखना खत्म न हो
भावनाएं समझ सकू 
दूसरों का दुख दर्द साझा कर सकूं 
अपनी ही कहानी नहीं अपने आस-पास की 
घटित घटनाओं की 
मानवीय मूल्यों की 
खत्म होती परंपराओं की
नए विचारों की
अपनी पीढी से दूसरी पीढ़ी जोडने की
मन समझने की 
दुनिया की दृष्टि से देखने की
सृष्टि का कण कण समझने को
अतीत को जिन्दा रखने की 
वर्तमान में विचरण करने की
भविष्य में नाम - पहचान कायम रखने की
सबसे जुडा यह कोमल मन 
जो अपनी लेखनी पर अपने ही इतराता 
खुश रहता 
जिंदा रहने का आसान तरीका 
जब कलम उठती है तब सब गायब
बस विचारों को शब्दों में ढालना
यही तो है लेखनी का कमाल 

Monday, 15 January 2024

खिचड़ी आज खाना है

खिचड़ी आज खाना है
मौज मनाना है
चूडा- दही खाना है
पतंग उडाना है
तील- गुड  बांटना है
तरह-तरह के लड्डू बनाना है
सूर्य देव का स्वागत करना है
आज किसी एक का दिन नहीं 
सबका है
खिचड़ी जो है सारे भेद मिटा देती है
सबकी पहुँच में रहती है
नहीं मंहगा 
बस दाल - चावल से बन जाती है
यह पकवान भले न हो
सबको इसका इंतजार रहता है
कारण इसका स्वभाव है
सबको अपने में समाहित कर लेती है
कितनी भी तरह की दालें, सब्जी , नमक , हल्दी, चावल - घी -मसाले  डाल कर बनती है
स्वादिष्ट भी 
संदेश देती खिचड़ी 
सबको साथ लेकर चलती
नहीं किसी से भेदभाव 

Happy Maker Sankranti

पतंग ने एक बात तो सिखाई ही है
कितना भी उडो 
अपनी जडो से जुड़े रहो
पतंग जहाँ मांजा   से नाता तोड़ती है
धडाम से जमीन पर आ गिरती है
गर्व और घमंड से बचे रहें 
आपकी डोर किसी और के हाथ है
वह यहां- वहां 
इस दिशा उस दिशा 
मनचाहे उडा रहा है
गफलत में न रहें 
सब कुछ आपके हाथ में नहीं है
विकास की ऊंचाई  पर जाएं 
ऊपर चढते समय नीचे का ध्यान रखे 


Sunday, 14 January 2024

संघर्षों से सामना

संघर्षों से जब हुआ सामना 
मानों सब बदल गया 
संघर्ष  प्रखर 
जीवन प्रबल 
संघर्षों से उठा निखर 
अग्नि में तप चमक उठा
भट्टी मे जलकर पिघल गया 
सांचे में  ढल कर गढ गया 
जब इन सबसे बाहर निकला 
चम चम चम चमक उठा
देखने वाले देखते रह गए
कहने वाले कहते रह गए 
आलोचक चुप हो बैठ गए 
जलने वाले जल - भुन राख हो गए 
ऐसा पलट जवाब मिला 
मेहनत का प्रतिफल मिला
राह मिल गयी 
रूकना नहीं चलना है
यह तो कुछ भी नहीं 
और बानगी दिखाना है 
नामुमकिन को मुमकिन बनाना है
असंभव को संभव करना है
कहें  लोग यह बात
चले चर्चा हर ओर
अरे भाई 
यह क्या नहीं कर सकता ।


मकर संक्रांति का त्योहार

नई फसल का आगाज 
लेकर आ गया मकर संक्रांति का त्यौहार
ठंडी का आहिस्ता - आहिस्ता गमन
फसलों और सब्जियों की भरमार
जी भर खाएं
जी भर आनंद मनाएं
तील - गुड खाएं
मीठा - मीठा बोले
जीवन में भी मिठास घोले
जी भर पतंग उडाए 
उडे आसमान पर
जमीन से नाता न तोड़े 
दान - धर्म करें 
स्वयं खाएं दूसरों को भी खिलाएं 
खिचड़ी जैसे सबको अपने साथ मिलाए 
हल्का भी सुपाच्य भी गुणों से भरपूर भी 
बहुत कुछ कहता है यह त्योहार। 

अंधेरे से प्रकाश की ओर

हर अंधेरे की सुबह जरूर होती है
अब यह इस पर निर्भर करता है
वह अंधेरा कितना घना होगा
कितना लंबा होगा
यह तो कोई नहीं जानता
अंधेरे से प्रकाश में आने के लिए 
पता नहीं किन - किन रास्तों से गुजरना पडता है
कुछ तो प्रकाश की ओर पहुँच जाते हैं 
कुछ अंधेरे में ही दम तोड़ देते हैं 
कुछ अनाम हो जाते हैं 
कुछ तो पहुँचते पहुँचते रह जाते हैं 
दूर से ही प्रकाश को आते हुए देखते रह जाते हैं 
यह यात्रा इतनी आसान नहीं होती 
बहुत बार गिरना पडता है
चोट खानी पडती है
सब्र करना पडता है
विष का घूंट पीना पडता है
तब जाकर वहाँ तक पहुंचते हैं 
संघर्षों के पायदान पर चढकर प्रकाश हासिल होता है ।

Saturday, 13 January 2024

प्रधानमंत्री जी शुक्रिया

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी 
यह नाम समय पटल पर अंकित हो जाएंगा 
प्रधानमंत्री तो वे हैं ही हमारे 
उससे ज्यादा हमारे राम लला के कारण 
सदिया याद रखेगी 
पूर्ण हुआ वनवास प्रभु का 
अयोध्या में विराजेगे 
हर हिन्दू गदगद है
आभारी है
राम तो सबके हैं 
लेकिन निमित्त तो मोदी जी ही  हैं 
सब चाहते थे
साहस नहीं था 
सबको खुश जो रखना था 
हिन्दू मन मार कर रहता  था
आज गर्व से सर उठा रहा है
हमने किसी पर कभी अन्याय नहीं किया
लेकिन हमारे साथ हुआ 
उस अन्याय का प्रतिकार करना था 
जब हमारा भगवान ही मलबे में दबा था तब हम कैसे ऊंचे रहते 
डरना और दबना नियति बन गयी थी 
आज सही दिशा मिली है 
मोदी जी के साथ हर भारतीय गर्वित हैं 
राम बिना तो भारत ही नहीं
राम राज की इच्छा तो सबकी ही रही है
हर शासक की
राम बनना आसान नहीं 
त्याग और मर्यादा का पालन करते हुए शासन करना
मोदी जी चल चुके हैं उस राह पर
सबका साथ सबका विकास 
सबके दिलों में राम लला का वास
बहुत बहुत शुक्रिया 
भारत के प्रधानमंत्री जी 
हिन्दू जनमानस यह बात कभी नहीं भूलेगा 
राम को ही नहीं जैसे सबको अधिकार मिला है
आभारी रहेगा सदियों तक ।
 

इसका जिम्मेदार कौन??

वह छोटा था 
हम सब एक ही पाठशाला में पढते थे
आपस में दोस्ती थी
साथ मिलकर खेलते - कूदते थे
ऐसे ही धीरे-धीरे बडे हुए
आना - जाना बदस्तूर जारी रहा
बचपन जैसा तो नहीं 
हाॅ कभी- कभार मिल लेते थे 
बचपन में अधिकतर वह हमारे घर ही नाश्ता कर लेता था
उसकी माँ डांटते हुए ले जाती थी
हम भी कभी-कभी जा कर सैवेया खा लेते थे
तब हमारी भी माँ चिल्लाती थी 
उससे किसी को कोई फर्क नहीं पडता था 
मन एक था हाँ धर्म अलग थे
दोस्ती जब होती है तब वह कुछ नहीं देखती
यही तो इसकी खासियत है
न जात - पात न धर्म 
कुछ आडे नहीं आता 
दीवाली में वह भी आ फटाके फोड था
गणेशोत्सव में भजन भी गाता था
हम भी उसके साथ कभी-कभी मस्जिद तक जाते थे
अदब से सर झुकाते थे
समस्या खत्म होने पर चादर चढाते थे
नाम तो था उसका तो कयूम 
माँ उसको हमेशा कमल बोलती थी
वह हंसता था 
उनको सुधारता था कि मेरा यह नाम है
न माॅ ने कभी सही नाम बोला
आज भी वह उसे इसी नाम से बुलाती है
न जाने कितनी बार झगड़े होंगे 
न जाने कितनी बार रूठे होंगे 
अब वह भी उम्र दराज हो गया है
हमारी भी उम्र खिसकती जा रही है
बडे बडे बच्चे हो गए हैं 
उनको हमारी यह दोस्ती समझ नहीं आती
कैसे समझेंगे ??
परिस्थितियों पर सब निर्भर रहता है
हमारा दौर कुछ और 
उनका दौर कुछ और
इस दौर में दुरियां भी बढी
वह बात नहीं रही
जो उस समय थी 
आज मन में एक शंका है
कौन अपना और कौन पराया 
यह बताया है
तब हम हिन्दू- मुसलमान नहीं थे
हमारी वह पहचान नहीं थी
आज तो है 
दिल दोनों के बदले हैं 
इसका जिम्मेदार कौन ???
 

काश ! ऐसा हो पाता

काश ऐसा हो जाता
काश मैं यह कर पाता
काश मैं यह कह पाता
काश मैंने ऐसा किया होता 
काश मैंने यह नहीं किया होता
काश मैंने उस समय सही निर्णय लिया होता
काश मैं उनसे अंतिम समय में यह बातें कह पाता
काश मैं समझदारी दिखाता
काश मैं अपनी गलती मान लेता
काश मैं उन्हें माफ कर देता 
काश मैं उनसे कुछ सबक सीखता 

ऐसे न जाने कितने   काश !  हमसे छूट जाते हैं 
हम इसी कश्मकश में रह जाते हैं 
कि 
काश  ! ऐसा हुआ होता 
समय बीत जाता है
काश     हमारे हाथ से छूट जाता है
बस हम हाथ मलते रह जाते हैं हाथ मिलाने की जगह
काश    काश  काश का राग अलापते एक दिन उसी जगह चल देते हैं जहाँ से आना संभव नहीं 
जाते समय भी सोचते हैं 

काश  ! जिंदगी थोड़ी और मिल जाती तब सब ठीक कर देते 
 

कीचड़ में कंकड़ मारने से कोई फायदा नहीं

कीचड़ में पत्थर मारोंगे
वह आप पर ही आएगा
कीचड़ के पास जाएंगे
वह बदबू करेंगा
इसमें दोष उसका नहीं
बदबू करना उसका धर्म और कर्म
यह उसे मिला हुआ है
कितना भी सुगंधित कर लो
इतर और सेंट मिला दो
वह बसाएगा ही
बिना बदबू के उसका असतित्व ही नहीं
पता चला कि 
आपको भी उसने अपने लपेटे में ले लिया
समाज में भी 
आस-पड़ोस में भी
ऐसे बदबू फैलाने वाले लोग मिल जाएंगे
आप अगर उनसे उलझना चाहते हैं
तब आपको भी उनकी तरह होना पडेगा
किसी ने आपको कुछ कहा
आपने भी उसी तरह प्रत्युत्तर दिया
तब आपमें और उसमें फर्क क्या
इंसान होने के नाते कभी-कभी करना पडता है
तब तो आप उसकी लपेट में आ गए
संगत का असर तो पडता ही है
तब ऐसे तथाकथित बदबूदार से दूर रहें
उसे अनदेखा कर दे
बदबू के पास कौन जाना चाहेंगा
नाक पर हाथ रखकर दूर हट जाते हैं
ऐसे ही इनके साथ भी रहे
ज्यादा अहमियत मत दे
उनको ताकने झांकने दे
दूसरों के घर में क्या चल रहा है
क्योकि उनकी लायकियत ही वही है
जब तक ऐसा नहीं करेंगे
उनको शांति नहीं मिलती
चलता फिरता अखबार है
पर अखबार तो ज्ञान देता है
ये दुश्चर्क फैलाते हैं
तब जरा सावधान

Friday, 12 January 2024

कभी तो गिरेगा

ईंटें जोड़ जोड़ कर हमने घर बनाया
उसमें सीमेंट और गारा लगाया 
लोहे के सरिया डाल मजबूत बनाया
अपना खून - पसीने की कमाई लगाया
घंटों खडे रह घर का निर्माण करवाया
घर देख हम खुश होते थे
चलो अपना तो है
एक दिन देखा कुछ ईंटे दरकने लगी है
हम सोचते थे 
अभी तो कुछ नहीं बिगड़ा है
मजबूत है
लेकिन नहीं 
गलतफहमी में थे 
ईंटे नहीं दरके  थे
मन में दरार पडी थी
कुछ इच्छाए बलवती हो रही थी
जब दरार पडती है
जब ईट दरकती है
तब वह घर ज्यादा समय तक टिक नहीं पाता
कब तक कोई संभालेगा 
अति की भी अति होती है 
मकान तो गिरना ही था
गिरा भले न हो
खंडहर तो हो ही चुका है 
बस गिरना बाकी है ।

अमृता- इमरोज

न अमृता प्रीतम बनना आसान है
न इमरोज बनना आसान है
इश्क नहीं होता आसान 
सीमाएं लांघनी पडती है
बंधनों को तोड़ना पडता है
मन मारना पडता है
मनचाहा हो यह भी संभव नहीं 
अपने को मिटाना 
यह तो इश्क करने वाले से ही पूछा जाएं 
एक याद में जिंदगी गुजार देते हैं 
मृत्यु को गले लगा देते है
इमरोज को तो साथ मिला अमृता का 
सुख दुख में भागी होने का 
इमरोज के दिल में अमृता
उनके साथ और आसपास अमृता 
एक प्रेमी यही तो चाहता है
उसके प्रेम को समझा जाएं 
महसूस किया जाएं 
अमृता ने क्या 
पूरे समाज ने उसे महसूस किया 
कर भी रहे हैं 
अमृता से प्रेम कर इमरोज भी अमर हो गए 
जब जब अमृता का नाम लिया जाएंगा
इमरोज तो खुद बखुद याद आ जाएंगे 

जीना डट कर

गुलाब की तरह खिलना 
कांटों में रहकर मुस्काना 
इतना नहीं है आसान
जिस किसी के पास यह हुनर
 वह सचमुच है महान 

तूफान का वह करता सामना
ऑधियों को भी ऑख दिखाता 
प्रलय की हुंकार के सामने डट कर खडा होता 
नहीं करता किसी से याचना
सहता भले भीषण यातना 

पता है उसे 
वह तो है इंसान 
नहीं करता कोशिश बनने की भगवान 
ज्ञात है उसे 
एक दिन है मरना
तब क्यों नहीं 
डट कर जीना ।
           

कीचड़ में कमल

फूल कोमल है
पानी कोमल है
पानी में ही फूल का जन्म
जब तक पानी में है
खिला है
जब तक जडो से जुड़ा है
मजबूत है
जिस दिन पानी से अलग 
वह मुरझा जाएगा
जिंदा भी रहा
ज्यादा दिन नहीं
पानी भले कीचड़ भरा हो
वह पोषण तो करता है
तब जन्मदाता है
वह कैसा भी हो
आपके लिए तो वरदान है
उसकी वजह से आप खडे हैं
भले ही लहलहाए
पर उसे मत भूलिए
कीचड़ में भी इतना सुन्दर रूप
इतना मौल्यवान
इतना आकर्षक
उस दाता की वजह से
कीचड़ का दाग लगने नहीं देता
अपने में डुबोता नहीं
मारता नहीं जिलाता है
ऊपर उठा कर रखता है
खिलने का मौका देता है
स्वयं बदबू करता है
आपको सुगंधित करता है
तब उस कीच भरे पानी की महत्ता है
तभी तो आपकी है 
इतनी सुन्दर उपमा है

Thursday, 11 January 2024

बचपन

बचपन तो बचपन है
मौज - मस्ती कर लो
नाच गा लो 
खुशियाँ मना लो
मिट्टी में धूल उडा लो
पानी में छप छप कर लो
यह समय फिर न आनेवाला 
यह बचपन है साहब 
जीवन का स्वर्णिम काल

जरा सैर करों अपने भी देश की

मेरे देश की धरा 
स्वर्ग से भी सुंदर 
कश्मीर से कन्याकुमारी 
प्रकृति की छटा निराली 
क्या नहीं है यहाँ 
पहाड़, समुंदर और नदियाँ 
रेगिस्तान और हरियाली भी
सूरज का डेरा भी प्रथम यही 
क्यों जाना है कहीं 
मालदीव हो या स्विटजरलैण्ड 
उससे कम तो नहीं हमारा लक्षद्वीप 
सारे खूबसूरत लैण्ड यहीं पर विद्यमान 
पर्वत राज हिमालय 
गंगा की पवित्रता 
शिव की काशी
कान्हा का वृंदावन 
राम की अयोध्या 
महावीर और बुद्ध का बिहार 
महात्मा का साबरमती
विनोबा का आनंद वन 
नेहरू का इलाहाबाद 
लखनऊ की फिजा 
कश्मीर का डल जो करते सबको फेल 
पधारो कहीं भी 
हर जगह स्वागत
कोंकण हो या केरल 
मुंबई हो या दिल्ली 
जरा घूम तो लो मन से 
माथेरान - खंडाला
खजुराहो को देखो
मीनाक्षी पुरम को देखो
ताजमहल को देखो
लाल किला और कुतुबमीनार 
इन सबका भी करो दीदार 
एक से बढकर एक है
हम नहीं किसी से कम हैं 
सारे जहां से अच्छा वतन हमारा
सैर करो जरा मन से नहीं करो किनारा 

बेरोजगार लडके

लड़कों की पीड़ा कोई क्या जाने
यह उनसे पूछे
पढाई पूरी हो चुकी 
नौकरी मिल नहीं रही
तैयारी शुरू 
इंटरव्यू पर इंटरव्यू 
मन चाही सफलता नहीं 
नौकरी नहीं तो छोकरी नहीं 
न नौकरी न ब्याह 
सबका जिम्मेदार वही 
हर किसी की निगाहे बदलती दिखती
रिश्तेदार और अडोसी पडोसी सबकी
बिना कुछ अपराध किए ही सबसे नजर चुराना 
घर में बैठना मुश्किल 
बाहर बैठना मुश्किल 
हर किसी की ऑख में खटकना 
लोगों के ताने और कडवी बातें गटकना 
जो एक समय सबका लाडला 
आज वह बेकार - निकम्मा 
सिद्ध करना है उसको अपने को
वह कोशिश में लगा है
सफलता कब यह पता नहीं 
सपने कब साकार होंगे 
उसके सपनों के साथ सबके सपने जुड़े हैं 
जब तक पूरा न कर पाएं 
तब तक उसकी हालत

धोबी का कुत्ता 
               न घर का न घाट का 

वह गधा रहता तब भी अच्छा रहता 
उसका महत्व तो होता ।

मेरी माँ

ना जाने कितनी बार बिखरी हूँ 
मन टूटा है 
निराशा और हताशा हुई है
अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दिया है
उस समय एक रोशनी की किरण आई हमेशा 
रास्ता दिखाने को
उत्साह बढाने को
मुझमें नित नयी संभावना ढूंढने को
मुझे जमकर खडा होने में 
डगमगाने पर हाथ मजबूती से पकड़ लिया 
हर बार जिसने 
वह है मेरी जननी मेरी माँ 
जिसकी दुनिया ही मैं उसके लिए 
उसके रहते कभी कमजोर नहीं रही
एक संबल जो बहुत मजबूत 
ईश्वर के बाद अगर किसी का आधार
वह उसका 
ईश्वर को तो देखा नहीं 
वह तो साथ ही थी 
ईश्वर से जो मैं अपने लिए न मांग पाऊँ 
वह वो मांग लेंगी 
यह विश्वास था 
बहुत कुछ हुआ भी
कृपा ईश्वर की 
कृपा उसकी 
बस उस पर अपनी कृपा बनाएं रखना 
वह हमको अपने आप मिल जाएंगी ।


Wednesday, 10 January 2024

बचे ऐसे लोगों से

अपना रास्ता स्वयं बनाना पडता है
यहाँ भटकाने और धक्का देने को लोग तैयार हैं
न रास्ता बनाओगे तो बाहर का रास्ता दिखा देंगे
हर जगह ऐसे शख्स विद्यमानहैं
उनसे रहना है सावधान
मुख पर चिकनी चुपड़ी
पीठ पीछे निंदा
चुगली करने में ये माहिर
इनका काम ही यही होता है
स्वयं के गिरेबान में झांक कर देखें
हजार बुराइयाँ
आपके सामने टिक नहीं सकते
इसलिए नीचा दिखाने की कोशिश
पता नहीं क्या मजा आता है
ईश्वर से भी डर नहीं
ये स्वयं को भली-भांति जानते हैं
पर फिर भी बाज नहीं आते
चटखारे लेकर  हमेशा दूसरों की चर्चा
अगर ऐसा शख्स है आपके आसपास
तब उससे सावधान
उसकी किसी भी बात पर विश्वास नहीं
यह तो आपकी नजर में अच्छा बने रहेंगे
पीठ पीछे आपके बारे मे अफवाह फैलाएगे
और आप भांप भी नहीं पाएंगे
सांप और बिच्छू से भी खतरनाक
इनका डंक सालोसाल चलता है
ऐसे आते तो है 
मानव की श्रेणी में
पर है नहीं
जो दूसरों के दुख का मखौल उडाए
किसी की व्यर्थ में प्रतिष्ठा खराब करें
वह तो नराधम है

बचो शुगर से

बहुत खा लिया मीठा
अब बस करना है
क्योंकि जीना है
जीभ पर नहीं
जीवन में मिठास भरना है
क्या कडवा
क्या मीठा
अंदर जाकर बन जाता इनका घोल
कडवा भरता कडवाहट
मीठा भरता मिठास
ऐसा हमको होता है महसूस
चिकित्सक कुछ और ही कहते
शुगर के मरीज बन जाओगे
अब उम्र नहीं मिठाई की
बची है रूखी सुखी खाने की
चंद बरसों और पलों को
सुकून से गुजारने की
इसलिए सब शुगर के मरीजों से
गुजारिश है
अब मिठाई नहीं
बीमारी पर ध्यान दे
अनावश्यक और बीमारी को निमंत्रण न दे
स्वयं भी सुकून से रहे
परिवार जनों को भी रहने दें
यह जानलेवा डायबीटीस
करता है हर अंग पर जम कर प्रहार
खोखला कर डालता है तन
तब हो जाय 
समय रहते सचेत

विश्व हिंदी दिवस

वह माँ है
ऐसी माँ जो अपने हर बच्चे को आंचल में ले लेती है
दुलराती है
उसकी अटपटे बोल पर मुस्कराती है
कैसे भी बोले
कुछ भी मिला कर बोले
अनपढ़ बोले
अपराधी बोले
पढे लिखे बोले 
कवि और साहित्यकार बोले
नेता और अभिनेता बोले
भिन्न-भिन्न भाषाभाषी बोले
देशी विदेशी बोले
उसे कोई फर्क नहीं पड़ता
सब उसके अपने जो है
वह सबकी है
सब उसका सहारा ले सकते हैं
संवाद कायम कर सकते है
रोजी रोटी का साधन
दिलों को आपस में मिलाने का साधन
एक दूसरे को समझने का माध्यम
इतनी बड़ी शक्ति
इसी माॅ के पास है
यह हमारा मान और सम्मान है
शानदार और जानदार
भारत की शान
हमारी जान 
सबसे प्यार करने वाली
हमारी हिन्दी है
विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना

Tuesday, 9 January 2024

मोगरा का फूल

आज सुबह की धूप
बहुत सौंधी सौंधी
बेंच पर बैठे बैठे कुछ सोच रही थी
तभी लगा 
कहीं से खुशबू आ रही है
बगल में ही दो कदम पर मोगरे का पौधा था
दो - तीन फूल खिले हुए थे
शुभ्र सफेद 
सूर्य का प्रकाश पड रहा था
जो उन्हें चमकीला भी बना रहा था
मानों मोती हो
वे अपनी ही धुन में मुस्करा रहे थे
आसपास बडे बडे वृक्ष खडे थे
कहीं गुलमोहर तो कहीं चंपा
कुछ लताएँ भी थी
उस छोटे से मोगरे को कोई फर्क नहीं
इस बात का भी नहीं
कहाँ यह कहाँ वह
बस वह तो अपना सौन्दर्य
अपनी खुशबू 
बिखेर रहा था
किसी से स्पर्धा नहीं
किसी से ईष्या और द्वेष नहीं
जो भी है
जैसा भी है
स्वयं में 
खुश और संतुष्ट
अपनी जमीन से जुड़ा हुआ
सूर्य और हवा की कृपा
हौले हौले झूल रहा
मुस्कान बिखेर रहा
स्वयं भी प्रसन्न
औरों को भी प्रसन्नता दे रहा
छोटा सा जीवन
भरपूर जीना
उमंग और उत्साह से लबरेज
यह है मोगरे का फूल
बहुत कुछ कह जाता
संदेश दे जाता
जीवन का मर्म समझा जाता
वह तो कह रहा
सुनना और समझना
यह तो मानव को है

मैं और मोबाइल

मैं और मोबाइल
अक्सर यह बातें करते रहते हैं
मैं अपने आपसे सवाल पूछती हूँ अक्सर
अगर यह न हो तो
पहले पहल तो समझ न आती
अब आ गई
तब हाथ से छूटना मुश्किल
रात दिन साथ रहती है
अकेलेपन की साथी है
जब कोई न हो
तब मन बहलाती है
कुछ समझ न आए
तब तुरंत बताती है
हर सवाल का जवाब है
इसके पास
बस सर्च करना है
शब्दकोश हो 
पाक कला हो
समाचार हो
फिल्मी खबर हो
कुछ खरीदना हो
साहित्य की जानकारी
अपनों से बातचीत
किसी को बधाई देना हो
दुश्मन को भी
दोस्त बनाती है
अंजान को भी
अपना बनाती है
जो दूर है
उन्हें पास होने का एहसास कराती है
नजरअंदाज करना हो किसी को
लग जाओ छिपा 
किसी का सामना न करना हो
सीधे बातचीत का मन न हो
बस मेसेज कर दो
काम बन जाएगा
हर समय नित नयी नयी
अभी तो बहुत कुछ इसमें छिपा है
जो मानव मन पर छाप छोड़ दे

वे बरतन

घर के पुराने बर्तनों से
कुछ खास रिश्ता है
यह टेढे मेढे सही
है दिल के करीब
इसमें हमारा बचपन समाया है
दीपावली के समय घिस घिस कर चमकाए जाते थे
हम वही खडे रहते थे
एक-एक बरतन को करीने से सूखने के लिए
बाद में उसको रेक पर सजा दिया जाता था
धनतेरस को एक और उसमें जुड़ जाता था
हम माॅ के साथ खरीदारी करने जाते थे
नए बरतन पर इस बार किसका नाम
उत्सुकता रहती थी
कभी-कभी ये बडे बक्से में बंद कर दिए जाते थे
घर की बिटिया को ब्याह में देने के लिए
आज नए-नए चमकीले बरतन आ गए हैं
झटपट वाले भी है
पर उनकी बात ही निराली थी
वे केवल बरतन ही नहीं होते थे
संपत्ति भी होते थे
वह पुराने होने पर बेकार नहीं
कीमती होते थे
कुछ देकर ही जाते थे
न तब कबाड़ थे न आज
सोने के बाद दूसरा स्थान 
इन्हीं का होता था
ये तांबा ,पीतल और कांस्य के बरतनों का भंडार
बहुत महत्वपूर्ण थे 
भोजन के अनिवार्य अंग थे
आज जमाना बदल गया है
अब यह कभी कभार दिखते हैं
इन्हें निकाल दिया गया है
या फिर कहीं अंदर रख दिया गया है
एकाध ड्राइंग रूम की शोभा
शायद भविष्य में ये शोभा ही बन कर रह जाएं
जमाने का प्रभाव तो इन पर भी पडा है

Monday, 8 January 2024

आप हो वजह

किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाएं 
आपकी वजह से 
किसी भूखे का पेट भरने का सौभाग्य मिल जाएं 
किसी जरूरतमंद की सहायता करने का
किसी गिरे हुए को उठाने का 
 किसी के ऑसू पोछने का
मौका अगर मिल जाएं 
तो उसे छोड़ना नहीं है
ईश्वर की आप पर कृपा है कि आपको चुना है
उसकी दुआ आपको लगेगी 
यह आपकी अपनी वह कमाई है 
जो किसी भी कीमत पर खरीदी नहीं जा सकती
न कोई छीन सकता है
यह आपके साथ ही रहेंगी
आप हो वजह तब आप भी तो खुश 


ईश्वर से तो डरो

व्यर्थ तो यहाँ कुछ भी नहीं जाता
पाप और पुण्य किसी न किसी रूप में प्रकट हो ही जाते हैं 
छल किया है तो फल जरूर मिलेगा
आज नहीं तो कल अवश्य 
कांटे तुमने बोकर मानो जग जीत लिया 
वह कांटे कील बनकर आएंगे 
तब हाथ से निकलकर फेंकना ही काफी नहीं होगा
टिटनेस का इंजेक्शन भी लगवाना पडे
हो सकता है उस अंग को भी काटना पडे
ऊपरवाला सब देख रहा है
जब आदमी असहाय हो जाता है तो वह तो है
वह तो असहाय नहीं है
ब्रह्माण्ड के स्वामी से न्याय तो मिलेगा 
जमीन पर वाले न्यायालय से भले न मिले 
किसी की मन से दुआ और बद्दुआ भी कभी व्यर्थ नहीं जाती
अगले जन्म क्या इसी जन्म में दिखने लगे
तैयार रहो परिणाम भुगतने को
डरो जरा 
अपने को बाहुबली मत समझो
बडे बडे आए और गए 
सब मिट्टी में मिल गए
घमंड तो रावण का नहीं रहा
अन्याय तो दुर्योधन का भी नहीं रहा
जब पाप का घडा भरता है ना 
तब वह आता है 
जब उसकी दृष्टि पडती है
तब सब डांवाडोल हो जाता है
मनुष्य से न डरे भगवान से अवश्य डरे ।

ऑसू आ जाता है

किस बात पर रोना आया
किसी ने पूछा 
जवाब मिला 
बडा पेचीदा प्रश्न 
उससे तो यह रहता 
किस बात पर रोना नहीं आया
रोना क्या है ऑख तो कभी भी भर आती है
न जाने किस बात पर ऑसू निकल पडे
खुशी में भी 
गम में भी 
यह छलक ही पडते हैं 
अपनों के सामने
बेगानों के सामने भी
ईश्वर के समक्ष 
माता-पिता के समक्ष 
ऑंसू के पास शब्द नहीं होते
अपनी कोई भाषा नहीं होती
फिर भी वह इतने ताकतवर होते हैं 
कि बिना कहे सब कह जाते हैं 
जहाँ शब्द असमर्थ हो जाते हैं 
वहाँ ऑसू काम आते हैं 
यह दिल से निकल कर ऑखों में आती है
ऑसू बहाना कमजोरी नहीं 
यह तो मनुष्य होने की निशानी है
जब रोना आए रो लो 
कुछ तो दर्द बाहर आएगा 
कुछ तो राहत मिलेगी 
सब भले साथ छोड़ दे 
ऑसू नहीं 
जब यह साथ छोड़ता है
तब वह दिल पत्थर हो जाता है 
भावना है तो ऑसू है
यही तो सच है ।




सावधान हो

अपने कहने को
हैं नहीं दुश्मन से कम
दुश्मन से तो सब सतर्क 
उनसे कैसे 
जो मुख में मिठास लिए 
आगे - पीछे डोलते 
कब जाने कब पीठ में छुरा भोक दे
सावधान हो जाएं 
आपके आसपास ही है उनका वास 
आप इससे हैं अंजान
जल्दी पहचान ले
नहीं तो होगा बडा पछतावा 
गिरेगे ऐसे जमीन पर
उठना भी होगा मुश्किल 
इनकी चमडी होती बडी मजबूत 
नहीं किसी बात का इन पर कोई असर
बस घात लगाए रहते
वार करने को तैयार 
आप भी तैयार रहो
इनको पहचान लो ।

Sunday, 7 January 2024

मेरी मुंबई कैसी है ??

मुंबई अमीर है
मुंबई गरीब है
मुंबई तेज है
मुंबई धीमी है

थोड़ा मीठा
तनिक कडवा

कभी-कभी बहुत गर्म
बस थोड़ी सी ठंड

सुबह-सुबह ताजगी- स्फूर्ति से लबालब
संझा बिजली की तरह संचालित

नहीं कोई आलसी
रात है फिर भी उत्साही

जब भी कोई पूछे किसी से कुछ
उत्तर है व्यस्त 
सही भी है जनाब
मुंबई का जीवन 
नहीं है आसान
यहाँ भरपूर मस्ती
साथ में है थोड़ा सा मस्का
स्वागत है यहाँ सबका
यहाँ है बॉलीवुड का चस्का

सेव पुरी ,बडा पाव ,भेल पुरी
सब है मुंबई की चाट
ऊपर से तीखी ,चटकदार चटनी
घुल जाय मुख में
घंटों रहे स्वाद
पापकार्न से लेकर आइस्क्रीम
सब बिकते हैं ठेले पर
तभी तो काबिज है मुंबई
दिल के मेले पर

यहाँ रेल भी दौड़ लगाती
समय पर
कूद कर और धक्का दे चढना
जबरन सीट पर काबिज
नहीं है कोई क्राइम

तीन बजे दोपहर का खाना
बारह बजे रात 
यहाँ है सामान्य सी बात
कठिन है जिंदगी
तब भी नहीं है नाराजगी

दादर में सिद्धि विनायक से कैथेड्रल 
जुहू में इस्कान से हाजीअली
यह सब है मुंबई के ताज
इनको देख चेहरे पर आती मुस्कान

मराठी ,मलयाली,बिहारी ,गुजराती
से क्रिश्चियन तक
सब मनाते हैं
क्रिसमस और दीवाली
रंग भरी होली और दमकती दीपावली
गरबा की थाप
रमजान की अजान
इनसे नहीं कोई अंजान

गरीब को करोड़पति 
सपनों को साकार करें
फर्श से उठाकर अर्श तक
न जाने कितनों को पहुंचाया
पहचान दिलाई
तभी तो इस शहर में आया
यही का होकर रह गया

माँ के ऑचल जैसा विशाल
जिसने सबको समाया
आखिर सबकी माँ
तभी तो 
MUM in English 
BA in Gujarati 
Ai in Mrathi
हिंदी वालों की माई
यह है बेमिसाल ,लाजवाब
नहीं इसका दुनिया में किसी के पास जवाब
यह है मुंबई मेरी जान

Saturday, 6 January 2024

बस्ता और बाबूजी

याद आते हैं वे दिन
बचपन और बस्ता का साथ
जब बाबूजी बस्ता उठाएं अपने कंधों पर
मैं हाथ पकड़ उछलती- कूदती चलती साथ में 
बचपन पर बोझ न लादे
मेरा बस्ता बाबूजी ने उठाया  मैंने अपने बच्चों का
अब मेरे बच्चे अपने बच्चों का
यह तो भार नहीं प्यार है 
यही सब बातें तो जेहन में आज भी याद है

हमारे राम आ रहे हैं।

निर्वासित होने का दुख
जब अपने ही घर से हो निर्वासन 
राम की व्यथा कौन समझेगा 
राज्यभिषेक होने जा रहा हो
चौदह वर्ष का वनवास 
नियति ने क्या खेल दिखाया
जिसकी कल्पना भी न होगी
वचन पिता का मांग  माता की
वह भी प्राणप्रिय भाई के लिए 
किसका विद्रोह करते 
पत्नी और भाई का साथ मिला 
चल पडे वनवास को 
अयोध्या का बुरा समय शुरू ही हो चुका था
राजा दशरथ के प्राण पखेरू उडे
भरत ने सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया 
माता कैकयी को अपयश के सिवा और कुछ हासिल ही न हुआ 
पति को खोया बेटे से तिरस्कृत हुई
वीरागंना कुमाता हुई
अयोध्या वासी तो बिन राजा के रहें 
पूरी अयोध्या को यह भुगतना पडा
चले वनवासी तो मित्र भी रास्ते में बनते गए
निर्वासित- उपेक्षित- पिछडे 
  निषाद भी मिले शबरी भी मिली
सुग्रीव और हनुमान मिले
रावण का भाई विभिषण मिला
राम को स्वयं को सिद्ध करना था 
कैकयी ने राज छिन लिया लेकिन जन जन के नायक बने
पत्नी के लिए शक्तिशाली रावण से जूझ जाना
लंका विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटना
सिंहासन पर भले न बैठे राजा तो वे ही थे

हमारे राम ने यह भी सिखाया 
किसी को कम मत समझना
कौन न जाने कब तुम्हारे काम आ जाएं 
ईश्वर होते हुए भी  उन्हें बंदर और भालू की सहायता लेनी पडी

आज हमारे राम अयोध्या में फिर विराजमान हो रहे हैं 
लेकिन दिलों में तो वे थे ही
कहाँ गए थे ?
इस बार निर्वासन सैकड़ों बरसों का हो गया
यहाँ भी न्याय की जीत हुई है
सुप्रीम कोर्ट से जीतकर आए हैं 
जबरन अधिकार नहीं किया है
सही मायनों में यही तो राम राज्य है
राम ने किसी का हक नहीं छीना
न किष्किन्धा का न लंका का
असली उत्तराधिकारी को सौंप दिया
वह जो अपना राज्य छोड़ सकता है वह दूसरों का क्यों ले 
राम आक्रांता नहीं थे
चाहते तो अयोध्या के राजा उसी समय बन जाते
लेकिन नहीं जबरन नहीं चाहा उन्होंने 
जनता के घोषित राजा हुए
यही तो राम राज्य है
राजा तो सबका होता है
जनता का अपना होता है
दिलों पर राज करता है
मर्यादा में रहता है
राम से बडा मर्यादा पुरुषोत्तम कौन ??

मन प्रसन्न है गा रहा है
राम आएंगे तो दीप जलाएंगे 
अंगना सजाएगे। 

Friday, 5 January 2024

जय श्री राम

राम बिना मोर सूनी अयोध्या 
लक्ष्मण बिन चौपाई
सीता बिना मोरी सूनी रसोइया
के कर विजन बनाइ

आज अइहै भगवान हो 
शबरी के घरवा 

बचपन में  सुनते थे दादी के गाने
तब समझ नहीं थी 
आज समझ आ रहा है
सूनि पडी अयोध्या में राम आ रहे हैं 
मन में एक अजब सी अनुभूति 
एक खुशी जो इंतजार कर रही थी अब तक 
हमारे राम का वनवास कुछ ज्यादा ही हो गया
अब फिर से हमें मिल रहे हैं 
हर भारतीय उस दिन के प्रतीक्षा में हैं

राम बिना अयोध्या ही नहीं पूरा भारत सूना था 
जिस भारत में राम राज्य की हमेशा कामना रही है वहाँ राजा राम आ रहे हैं 
भारत का भाग्य भी बदलेगा 
जय श्री राम। 

माधुरी

माधुरी तू सांचे में ढली हुई अप्सरा है 
या हममें से कोई सामान्य नारी है
तेरी साडी का पहनावा लगता बेमिसाल 
तेरी गजगामिनी चाल
तेरे हंसते हुए अधर 
तेरी शोख अदाएं 
तेरी मधुरिम आवाज 
देखने वाले देखते ही रह जाते हैं 
नजरें नहीं हटती 
खिलखिलाती, पायल छमकाती 
बल खाती जब परदे पर आती 
दिलों की धडकनें बढ जाती 
भारतीय नारी का प्रतिरूप 
जिसे बार- बार देखने को उत्सुक 
बूढे - बच्चे - औरतों को तो पसंद ही हो
युवा- नवजवानों के दिल की धड़कन भी
देश से प्यार तभी तो देश में फिर से वास 
अब मत जाना कहीं 
रहों तुम यही सबके दिल पर राज करो ।

रहने दो हे देव मेरा मिटने का अधिकार

मैंने जन्म दिया
मैंने नव महीने गर्भ में रखा
मैंने प्रसव पीड़ा भुगती
मैंने बडे करने में इतना त्याग किया
अपनी इच्छाओं का गला घोंटा 
यह अक्सर सुनते हैं 
उसके बदले में क्या मिला ??

बहुत कुछ मिला है
सारी खुशी एक तरफ बच्चे की हंसी एक तरफ
जिसके गुस्से में भी आपको हंसी आती है
उसके एक झलक देखने को ऑखें तरसती 
ऊपर से गुस्सा मन में प्यार 
बीमार हो तो भी उसे देख शरीर में स्फूर्ति 
उसके नाज नखरे उठाने में भी मजा
ऐसा विरोधाभास 

वह कहानी याद आती है
जब बुढ़िया का स्वार्थी बेटा उसे घर से निकाल देता है
जादू नगरी का राजा कहता है
तुमको जवान बना देंगे 
स्वर्ग जैसा सुख देंगे 
बस अपने बेटे को भूल जाओ
उत्तर मिलता है
मैं अपने बेटे की माँ कहलाना ही पसंद करूँगी
नहीं चाहिए मुझे कुछ 

ऑसू को बहने दो
पतझड़ को आने दो 
बादल को टूटने दो
बीज को फूटने दो
यौवन को ढलने दो
स्वर्ग की अप्सरा क्या जाने 
माँ होने का सुख 
ईश्वर का सबसे बडा वरदान 
तब इससे बडा सुख भी तो कुछ नहीं 
अपेक्षा क्यों 
कर्जदार नहीं हैं वे आपके
आपका फर्ज है उनके प्रति 
उनका जीवन आपकी देन
तब जिम्मेवारी भी ?
यही तो जीवन का मर्म है
यह समझना जरूरी है ।

महदेवी जी की पंक्तियां 
      रहने दो हे देव    
                 मेरा मिटने का अधिकार 

Wednesday, 3 January 2024

बालिका दिन - सावित्रीबाई फुले जंयती

नारी तू अबला नहीं सबला है
सबको संभालने वाली है
घर - परिवार की धुरी है
तुझे तो मजबूत बनना है
शिक्षा से नाता जोड़ना है
अपने लिए भी और सबके लिए भी 
संसार की भलाई इसी में है
तुझे अपनी सामर्थ्य पहचाननी है 
मैं कुछ नहीं कर सकती यह धारणा बदलनी है 
मातृ शक्ति है इससे तो तू अनभिज्ञ नहीं 
संसार को गढने वाली 
स्वयं को भी गढ 
कदम से कदम मिलाकर चल 
रोना - धोना और ऑखों में ऑसू लाना छोड़ 
कलम पकड़ 
कम्पयूटर और लैपटॉप पकड़ 
उंगलियां अब सुई धागों पर नहीं इन पर भी चला
हाथ में अब बर्तन ही नहीं स्टीयरिंग भी पकड़ 
अब धीमी और शर्मीली आवाज में नहीं बुलंद आवाज में बोलना सीख
तू सबको सिखाती है तू स्वयं भी तो सीख
स्वयं आत्मनिर्भर बन
आत्मविश्वास से डोल 
नारी तू देवी नहीं मानवी बन 
पूजा स्थान नहीं कर्म स्थल को चुन
अपना परचम फहरा 
दिखला दे स्वयं को साबित कर 
हमसे जमाना है हम जमाने से नहीं  ।

Tuesday, 2 January 2024

वक्त ही तो है

नया वर्ष आया या यू कहें एक वर्ष खत्म हुआ 
वक्त का परिन्दा कहाँ रूकने वाला
कितना भी जोर लगा लो
वक्त मुठ्ठी से रेत की तरह फिसल जाता है
वक्त फिसलता जरूर है
अपनी छाप छोड़ना नहीं भूलता 
वह हममें समाया रहता है
जुदा नहीं होता बस आगे बढता जाता है
वक्त ने न जाने कितने गुल खिलाता है
इसकी ताकत का अंदाजा तो किसी को नहीं 
बिगाड़ना- बनाना तो इसके हाथ में 
पल भर में क्या से क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता 
अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर लाने की शक्ति 
प्रलय और  निर्माण दोनों का साक्षी
वक्त गुजर जाएंगा जैसा भी हो
सही भी है पर वह गुजरने की प्रक्रिया??
जिसने जाना है जिसने समझा है जिसने महसूस किया है 
वह तो वक्त से डर कर ही रहेगा 
जिंदगी का भरोसा नहीं वैसे वक्त का भी तो नहीं। 

हर साल नया है

नया साल का जश्न
जोरदार स्वागत
ऐसे ही हर साल आता है
कुछ नई उम्मीद और आशा के साथ
पुराना बिदा होता है
कुछ लेते और कुछ देते जाता है
क्या पाया क्या खोया
इसका लेखा जोखा करता जाता है
यह हर साल होता है
कुछ यादें छोड़ जाता है
कुछ भूल जाती है
कुछ याद रह जाती है
उम्र गुजरती जाती है
साल दर साल गुजरते जाते हैं
हर साल हम भविष्य देखते हैं
इस साल क्या हासिल होगा
कैसा गुजरेंगा
इस आशा में कि जो गया सो गया
बीती ताहि बिसार दें
    आगे की सुधि लें
फिर खडे हो जाते हैं
सब झटक कर झटके से
एक ही रात में 
नया चमत्कार
कुछ कर गुजरना
जबकि हम भी वहीं है
सूरज भी वहीं है
जैसे तब वैसे अब
सारा क्रियान्वयन वैसे ही
तब नया क्या ??
नई आशा
नई उम्मीद
नए सपने
जो जीवन जीने का सहारा है
प्रेरणा है
तभी तो हर साल नया है

क्या लिखती रहती हो

क्या लिखती रहती हो
इससे क्या मिलता है
क्या फायदा
यह सुनती हूँ अक्सर
पर बाज नहीं आती लिखने से
कुछ लोग हंसी - ठिठोली भी करते
घर हो या बाहर
यह होता है अक्सर
मन ही मन मुस्काती हूँ
सबकी बातों को टाल जाती हूँ
उन्हें क्या पता 
इसकी अहमियत
कितना सुकून मिलता है
लिखना मेरा पेशा नहीं पैशन है
दिल की बात शब्दो में उकेरना
शब्दों के साथ खेलना
ऑख - मिचौली करना
यह तो सबके बस की बात नहीं 
यह कोई साधारण बात नहीं
शब्दों से जिसको खेलना आ गया
उसे किसी की जरूरत नहीं
एक ही साथी काफी है
वह न छूटेंगी न जाएंगी
हमेशा साथ ही रहेंगी
अपनी भावना उसी के साथ शेयर
उसी को तो कहते हैं शायर

Monday, 1 January 2024

नव वर्ष मंगलमय हो

आज से एक नया दिन नया वर्ष 
कैलेन्डर बदल जाएंगा
नये प्रकाश के साथ नववर्ष का स्वागत 
सूर्यदेव अपनी आभा के साथ छा गए हैं 
मानो कह रहे हो
मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ 
तुम भी अपना कर्म करो 
साल बदला है हम नहीं 
आज का दिन भी सोमवार 
उसी से साल की शुरुआत 
भोले बाबा औघड़ दानी शिवशंकर का दिन
सृष्टि और संहार दोनों के मालिक 
कभी-कभी गरल भी पीना पडता है 
भोले तो रहो पर शक्तिशाली भी बनो
तीसरा नेत्र तो यही सिखाता है
विज्ञान और डार्विन का सिद्धांत भी यही कहता है
Survival of the fittest 
अगर संसार में रहना है
तब तो शक्ति हासिल करनी पड़ेगी 
वह है कर्म से 
सम्मान से रहना और जीना है तब कर्म करना है
तब चलो आज से कुछ नया संकल्प करों 
कुछ विशेष बनने की कोशिश करों 
दो दूना चार - चार दूना आठ
आठ का साल है
कर्म - न्याय-  ईमानदारी के देवता शनिदेव का वर्ष है
तब लग जाइए अपने अपने काम में 
नववर्ष की शुरुआत करें सब मंगलमय होगा ईश्वर के आशीर्वाद से 
         नव वर्ष मंगलमय हो