हम सभी भारतीयों 30 जनवरी का दिन कभी नहीं भूलेगा जब हमने अपने बापू को खोया था।एक पागल हत्यारे ने उस दुबले पतले 79 साल के महामानव की पोपली हंसी को "हे राम" के मंत्र में परिवर्तित कर दिया था।हम साल दर साल साल उसी 'हे राम' को #शहीद दिवस के दिन बहुत शिद्दत से सादर याद करते हैं। 2 अक्टूबर को 1869 को अवतरित मोनिया जो अपने आखिरी दिनों में महात्मा के रूप में हमारे भारत के गुजरे 50 सालों के इतिहास ओढ़े वो बूढ़े बाबा बन चुके थे कि आज जब कोई इतिहासकार लिखता है तो उसे लिखना पड़ता है;@भारत गांधी के पहले ,@भारत गांधी के बाद! आज बापू को को गुजरे लगभग सतहत्तर वर्ष हो चुके हैं,पर वो हमें हर उस अवसर पर याद आते हैं जब भारत या विश्व के में कोई समस्या आती है तो हम सोचने को विवश होते हैं की बापू इन परिस्थितियों में क्या करते। महात्मा की वो जादुई कसौटी आज भी प्रासंगिक हैऔर युगों युगों तक रहेगी भी।
अब प्रश्न यह है कि आम हिदुस्तानी गाँधी को कितना जानता है और इससे भी जरूरी यह है कि कब से जानता है।नायक पूजा की परम्परा हमारे नस नस में है,और उनकी उक्तियों को सूक्तियों की तरह माना जाता है अतः मैं भी महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को उद्धृत करना चाहूंगा,महात्मा के निधन पर आइंस्टीन का उद्गार"आने वाली पीढ़ियों को इस पर विश्वास नहीं होगा की हाड़ मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति धरती पर चलता फिरता था।" महात्मा के बारे में उस महान जर्मन वैज्ञानिक का एक और उद्धरण "मेरा मानना है कि गाँधी के विचार हमारे समय के सभी राजनीतिक पुरुषों में सबसे अधिक समृद्ध हैं" गाँधी और आइंस्टीन कभी एक दूसरे से मिले नहीं थे उनमें केवल पत्र व्यवहार का ही सम्बन्ध था पर आइंस्टीन अपने कमरे में गांधी की फोटो रखते थे ,आइंस्टीन को जब जब लगा कि विज्ञान की त्रासदी मानवता के लिए संकट बन सकती है तो अहिंसा और सेवा को तरजीह दी और उस वैज्ञानिक ने ये कहा कि अब समय आ गया है कि हम सफलता की तस्बीर की जगह सेवा की तस्बीर लगा दें।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर जो की अमेरिका में सिविल राइट्स की लड़ाई लड़े थे उन्होंने कहा कि वह महात्मा ही थे जिन्होंने
हमे असहयोग और अहिंसा का रास्ता दिखाया और हम सफल हुए।नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों की लड़ाई के दौरान गाँधी के सिद्धान्तों को इस कदर आत्मसात किया कि उन्हें अफ्रीका का गाँधी कहतें हैं। बराक ओबामा से एक बार पूछा गया कि अगर उन्हें ये अवसर मिले की वो अपने इक्षित मृत या जीवित व्यक्ति के साथ डिनर कर सकें तो वो किसका नाम लेंगे तो बराक ओबामा का उत्तर था केवल महात्मा गांधी, प्रख्यात ब्रिटिश गायक जॉन लेनन भी गाँधी से बहुत प्रभावित थे। प्रसिद्ध अफगानी नेता खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गाँधी भी कहा जाता है,उन्होंने गाँधीके आदर्शों को अपना जीवन सूत्र बनाये रखा।महान तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अपने आंदोलन की सैद्धान्तिक ऊर्जा गांधी के विचारों से ही मिली। म्यांमार में लोकतंत्र को स्थापित करने वाली आंग सान सू के भी प्रेरणा स्त्रोत गांधी ही थे। चार्ली चैपलिन,जार्ज बर्नाड शा,जॉर्ज ऑरवेल,एनी बेसेंट,मीरा बेन आदि सभी बापू के अनुगामी व प्रशसंक थे।
शेख मुजीबुर्रहमान जो बांग्लादेश के संस्थापक थे उन्हें भी बांग्लादेश का गाँधी कहा जाता है। मुम्बई के मणि भवन में रखा हुआ एक पोस्ट कार्ड महात्मा की वैश्विक लोकप्रियता का द्योतक है,जो दुनिया के किसी कोने से GANDHI, INDIA लिख कर पोस्ट किया जाता है और गाँधी जी को प्राप्त हो जाता है। गाँधीजी की लोकप्रियता और प्रभाव का ये आलम था कि ब्रिटिश सामाग्री को सारे प्रोटोकॉल तोड़कर उस अधनंगे फ़क़ीर से मिलना पड़ा था।
ये तो रही गाँधी की आलमी मक़बूलियत ,अब हम देखते है कि तत्कालीन भारत मे गाँधी अपने जीवनकाल में ही कितने लोकप्रिय या यूं कहें कि एक किंबदंती बन चुके थे।गांधी जी को बापू,महात्मा और राष्ट्रपिता के नाम से भीजाना जाता है।गाँधी जी को बापू नाम ,गाँधीजी को नील की खेती करने वाले किसानो की समस्या के समाधान हेतु चंपारण ,आमंत्रित करने वाले किसान राज कुमार शुक्ल ने दिया ,1916 में हुए चंपारण आंदोलन ने गाँधीजी की नेतृत्व क्षमता और उनके अस्त्र सत्याग्रहऔर अहिंसा से निल किसानो को शोषण से मुक्ति मिली। यह बापू का दक्षिणअफ्रीका के बाद भारत में पहला सत्याग्रह था जिसके माध्यम से गाँधी आम जनता से जुड़े। गाँधीजी का दूसरा नाम महात्मा गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने दिया।गाँधी जी को राष्ट्रपिता के नाम से सर्वप्रथम नेताजी सुभाषचंद्रबोस ने संबोधित किया जब वह जून 1944 को सिंगापुर रेडियो से राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित कर रहे थे।
गांधी जी ने लोकप्रियता उनके जीवन काल मे इतनी बढ़ चुकी थी कि उनका नाम लोकगीत,मांगलिक अवसरों पर गाई जाने वाली गालियों का हिस्सा बन चुका था।एक बानगी देखिए(1) मेरो कांग्रेस को राज्य भतईया,गांधी बन के अइयो(2) कभी रुकें न चरखवा की चाल,चरखवा चालू रहे,गान्ही महतमा दूल्हा बनेंगे,जॉर्ज पंचम करेंगे कन्यादान,चरखवा चालू रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हरियाणा में एक नारा बड़ा प्रचलित था-खरा रुपैया चाँदी का,राज महात्मा गाँधी का।
पुरानी फिल्मी गानों के में भी बापूका जिक्र खूब हुआ है,जैसे कवि प्रदीप रचित फ़िल्म जागृति (1954)का गीत दे दी हमे आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, 1960में बनी गुण हमारे गाँधी फिल्म का गाना-गुण धाम हमारे गाँधी जी,शुभ नाम हमारे गाँधीजी,
1948 में बनी फिल्म,बापू की अमर कहानी का गाना सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापू की अमर कहानी,वो बापू जो पूज्य है इतना जैसे गंगा माँ का पानी,लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म का गाना बंदे में था दम,वंदेमातरम। 1948 की फिल्म खिड़की का गाना-ए हो संवरिया, जो जाओ बजरिया तो लाओ चुनरिया खादी की,जै बोलो महतमा गांधी की।,एक चवन्नी गांधी की,जी बोलो महतमा गान्धी की। यहाँ पर मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहाहूँ,जब मैं लगभग 9 साल का रहा हूँगा तो मेरे प्राइमरी स्कूल में अक्टूबर,1969 में गांधी शती के अवसर पर सभी बच्चों को गांधी जी का एक कैलेंडर साइज फ़ोटो बांटा गया था और सभी बच्चों को महात्मा के विषय मे बताया भी गया था,अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ये प्रक्रिया पूरे भारत में पूरी की गई थी।उसके बाद हम गाँधी से दिन ब दिन परिचित होते गए।युवावस्था में "मेरे सत्य के साथ प्रयोग" पढ़ने के बाद ये परिचय का वृत्त संकुचित होकर कब आस्था में बदल गया पता हि न चला,रोम्यांरोला,लुइस फ़िसर,प्यारे लाल ,राम चन्द्र गुहा की गाँधी खंड 1,गांधी भारत से गांधी से पहले ,भारत गांधी के बाद के बाद अंत में पहला गिरमिटिया पढ़ने के बाद मैं गांधी को जानने के लिए किसी रिचर्ड एटनबरो की गाँधी फ़िल्म का मोहताज नहीं था, और मेरा मानना है कि मेरे जैसे बहुत लोग होंगे। आज मेरा पोता जो महज चार साल का है ,करेंसी नोट पर गाँधी जी की फोटो देखकर पूछता है कि बाबा ये किसकी फोटो है तो मैं बताता हूं की, बाबू, ये महात्मा गाँधीजी है जो बहुत बड़े थे।
ये सब लिखने का आशय यह है कि रिचर्ड एटनबरो की गाँधी(1982)से पूर्व में भी गाँधी उतने लोकप्रिय थे जितने गाँधी फ़िल्म के पश्चात,गाँधीपर भारत मे भी फिल्में बनी उनमें से जिनको मैं याद कर पा रहा हूँ जैसे गाँधी माय फादर,द मेकिंग ऑफ महात्मा,
हे राम,लगे रहो मुन्ना भाई,रोड टू संगम और मैंने गाँधी को नहीं मारा आदि।गाँधी जनता में जनार्दन देखते थे,वे साध्य की शुचिता के समर्थक थे ।जून1947 में गाँधी कश्मीर गए ,कश्मीर के राजा हरि सिंह ने गांधी को अपने महल में रहने के लिए आमंत्रित किया ,गांधी जी का उत्तर था कि आपकी प्रजा का समर्थन आपको नही है,इसलिए मैं आपका आतिथ्य स्वीकार नही करूंगा। ऐसे दृढ ईच्छाशक्ति के धनी थे गाँधी जी ,कोई भी कार्य जो इनके सिद्धान्तों के विरुद्ध होता उसका समर्थन वो कभी नहीं करते,चौरीचौरा कांड के बाद असहयोगआंदोलन को ,कांग्रेस के प्रबल विरोध के बावजूद वापस लेना,उनकी अपने सिद्धांतों पर असीम आस्था को दर्शाता है।इसीलिए तो हम सबके थे प्यारे बापू, सारे जग से न्यारे बापू ।यही बापू चल पड़े जिधर दो डग मग में,चल पड़े कोटि पग उसी ओर।पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।इसी लिए तो श्रेष्ठता का पर्याय ही गाँधी शब्द है। भारत की पहचान ही है- गंगा,गीताऔर गाँधी
आज गाँधी बहुत याद आ रहें हैं,क्या आप मानते हैं कि रूसऔर यूक्रेन के युद्ध मे गान्धी मौन रहते ,कदापि नहीं अहिंसा का वो पुजारी आज रूस जाकर पुतिन को युद्ध विराम के लिए मजबूर कर देता।
क्या आज के नेताओं की बोन्साई प्रजाति से गाँधी के बटबृक्ष सरीखे व्यक्तित्व की तुलना हो सकती है अंत मे किसलिए फिर कीजिये गुमगश्ता जन्नत की तलाश,जबकि मिट्टी के खिलौने से बहल जाते है लोग।
लेखक --- वीर प्रकाश सिंह