Friday 15 December 2017

पेट है सबसे भारी

भूख लगी थी , मन व्याकुल था
आज भोजन नहीं ला पाई
सोचा बाहर से मंगा लूगी
कोई मिला ही नहीं कि वह जा बाहर से ले आए
सब काम में व्यस्त थे
अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था
सब अपना डब्बा खोल कर खा रहे थे
शिष्टाचारवश लोगों ने पूछा
पर मेरा मन नहीं किया
पेट में भूख कुलबुला रही थी
दो - तीन बार पानी भी पी लिया
पर भूख तो भूख ही होती है
मन ललचाता रहा पर नियंत्रण कर बैठी रही
आखिर छुट्टी हुई
बाहर का ठेला जिसे देख नाक - भौं सिकोडती थी
ठेले पर का खाना तो कभी नहीं
न जाने कितनी गंदगी आसपास बिखरी रहती है
बर्तन भी बराबर धोए नहीं रहता है
उसी बालटी के पानी में डुबोकर निकालता है
बीमारी का घर बना कर बैठा है
आज कुछ नहीं देखा
क्या चाहिए मैडम
पूछने पर कहा
जो भी हो अच्छा वो दे दो
हमारे यहॉ का तो सब टेस्टी और मजेदार है
रगडा - पेटीस खाइए , मजा आ जाएगा
उस दिन का वह रगडा - पेटीज जो चटखारे ले खाया
सारे स्वाद फीके पड गए
अब समझ में आ गया था
भूख क्या होती है
पापी पेट का सवाल और भूखे भजन न होय गोपाला
सुना था पर आज अनुभव भी कर लिया था
पैसे होते हुए भी खाना नहीं मिला
भोजन का स्वाद समय देख कर होता है
भूख काल , स्थान कुछ नहीं देखती

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