Saturday 28 November 2020

चमचा हर युग की जरूरत

चमचा हर युग की जरूरत
चमचा बिना तो सब अधूरा
पतीले में व्यंजन लाजवाब पडे हैं
बिना चमचो तक उन तक पहुंच नहीं
चमचा से हिलाना पडेगा
चमचा से निकालना पडेगा
चमचा से खाना पडेगा
तब जाकर उसका स्वाद समझ में आएगा

कटोरी तो खैर छोटी सी
उसमें तो हाथ डालकर खा सकते हैं
ग्लास से लेकर भगोना
हर गहरे चीज में पहुंचना है
तो आवश्यक है चमचा

बडे बडे काम
बडे बडे अफसर
इन तक पहुंचना इतना आसान नहीं
चमचा तो जरूरी है
बिचौलिया बिना तो डायरेक्ट पहुँच नहीं
यह तो इंसान है
ईश्वर तक पहुंचने के लिए भी
पंडे - पुजारी की शरण

इनके रूप अलग अलग हो सकते हैं
नाम अलग-अलग हो सकते हैं
आकार अलग - अलग हो सकते हैं
हाँ इनकी जरूरत सभी को
साधारण आदमी से लेकर सत्ताधीशो तक
बहुरूपिये से लेकर राज दरबारियों तक
इनकी चमक फीकी नहीं पड रही
समय के साथ मांग भी बढ रही
तोड जोड़ करना हो
बिठाना - गिराना हो
ये माहिर खिलाडी है
इनसे दुश्मनी लेना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना
अगर सब कुछ सुचारु रूप से हो
हमारा कार्य सिद्ध हो
तब तो चमचा को बार-बार चमकाना पडेगा
कुछ हिस्सा देना पडेगा
नहीं तो आप ताकते रह जाएंगे
चमचा मुंह चिढाता रह जाएंगा

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