Wednesday 23 August 2023

दुखवा मैं कासे कहूँ मेरी सजनी

कहना है बहुत सी बातें 
मन में दब कर पडी बहुत सी बातें 
किससे कहें 
ऐसा नहीं कोई सुनने वाला नहीं 
कुछ कुछ कहा भी
सब कुछ नहीं कहा जाता
कुछ न कुछ छूट जाता है
कुछ दबा लिया जाता है
असली बात तो धरी की धरी रह जाती है
बस आवरण चढा कर कुछ बयां कर दिया जाता है
क्यों डर लगता है 
दिल खोलने में  
हाँ लगता है 
संसार का अनुभव तो यही है
यहाँ जख्मो पर नमक छिड़कने वाले बहुतेरे हैं 
अपनों से कह नहीं सकते
दूसरों पर भरोसा कर नहीं सकते
जिस बात को कहना चाहते हैं वही छुपा जाते हैं 
हम उस संसार में रहते हैं 
जहाँ मीठे अमरूद को काटकर उस पर नमक छिड़क कर स्वाद लिया जाता हो
दिल चीरकर रख दो
नमक छिड़कने वाले बेहिसाब 
बेहतर है चुप ही रहा जाएं 

दुखवा मैं कासे कहूँ सजनी 

एक ही उससे 
उस भाग्य-विधाता से ।

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