Friday 26 August 2016

बचपन के दिन भी क्या दिन थे

बचपन के दिन भी क्या दिन थे
वह रूठना ,जमीन पर लोटना
किसी चीज के लिए जिद पर अडना
गुस्सा आने पर पैर पटकना
चीजों को फेकना
मुँह फुलाकर बैठना
बिना कारण बक बक करना
हँसना और खिलखिलाना
लपाछिपी और खो- खो खेलना
बगीचे में तितलियॉ पकडना
गिरती पंतग को पकडने के लिए दौडना
पानी में छप- छप करना
खाना नहीं खाना बस खेलना
देर तक सोना
पढने में बहानबाजी करना
सबका मजाक उडाना
नकल करना
न चप्पल की परवाह ,नंगे पैर ही भागना
दोस्त ने कोई चीज ले ली तो उससे झगडना
आमऔर जामुन पर पत्थर मार गिराना
कच्ची कैरियॉ मुँह बना- बनाकर खाना
शाम को देर से घर आने पर पिता की डाट सुनना
मॉ का बचाना
तरह- तरह के झूठ बोलना
दोस्तों में डींग हाकना
जाने कहॉ सब लुप्त हो गया
हम तो अब बन गए है बडे
सब कुछ समय से करना
हर काम सोच- समझ कर करना
दिल में दर्द हो पर होठों पर हँसी बिखेरना
गुस्से को दबाकर रखना.
हर जिम्मेदारी को निभाना
मन न करे तब भी वह काम करना
क्योंकि अब हम बडे हो गए है
काम के बोझ तले दब गए हैं
बचपन तो कहीं खो ही गया है
बस बची है उसकी यादे
जो महसूस कराती है कि हम भी कभी बच्चे थे
और ले आती है हँसी यह कहती हुई कि
बचपन के दिन भी क्या दिन थे

      शुक्रिया  बचपन ,अलविदा बचपन

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