Wednesday 2 February 2022

हम और हमारे बाबूजी

आपको याद करना तो एक बहाना है
आपको भूलना हमको कहाँ गंवारा है
आपकी सबमें बसने वाली जान
वह कैसे दूर चले जाना है
पितृपक्ष क्या हर वक्त हमारे साथ रहना है
ईश्वर के साथ आपका आशीर्वाद
बस यही है हम सबकी दरकार
सारी दुनिया एक तरफ
आपका प्यार एक तरफ
वह तो सब पर भारी

आप गए ही कहाँ
सबमें तो थोड़ा थोड़ा समाए
आशा की सादगी और गुस्से में
अशोक की व्यवहारिकता  और सहनशीलता में
संजय की ईमानदारी और अनुशासन में
अनुभा की कर्मठता और जुझारूपन में
ऋषभ की धीरता  और शांत स्वभाव में
अलख के बुद्धिमानी  और सीधापन में
वेदांत की च॔चलता और बेफिक्री में
आस्था का तर्क वितर्क और अपनापन में

मनु  का ऑख बंद कर मुस्कराने के भोलेपन में 

खाना खाते समय
सर छिलाया रूप
किसी की खिलखिलाती हंसी
नानवेज खाते
मन ही मन मुस्कराते
जमीन और चटाई पर लेटते
खाना खिलाते
हर क्षण में किसी न किसी रूप में समाए बाबूजी
ज्यादा न सही थोडा ही सही
कभी किसी रूप में कभी किसी रूप में समाए
किसी की ऑखों में
किसी की चंचलता में
किसी के माथे पर
किसी की हंसी में
किसी के थीरज में
किसी की मेहनत में
किसी की बातों में
किसी की हार न मानने वाले जीवटता में

किसी की नींद में 

संसार जिसका अपने बच्चों के इर्द-गिर्द हो
बिना किसी की परवाह
अपने काम से काम
बच्चों में बसती हो जिसकी जान
उसका साथ छूटना तो मुमकिन नहीं
जिंदगी के साथ भी
जिंदगी के बाद भी
बाबूजी है हमेशा हमारे साथ

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