Friday 19 August 2016

कितना बदल गया इंसान

स्त्रियों पर कर रहा अत्याचार
भाई- भाई का हो गया दुश्मन
बूढे मॉ - बाप को कर रहा बेघर
बेटी को मार रहा गर्भ में.
चोरी- डकैती से हो रहा मालामाल
ईमानदारी को कर रहा दरकिनार
स्वार्थ में लिपट रहा.
हवस में अंधा हो रहा
रिश्ते को पैसों से तोल रहा
अपने सिवाय किसी को कुछ नहीं समझना
पैसों के पीछे अंधाधुंध भागना
हत्या को खेल समझना
बंदूक - गोली बाए हाथ का खेल
बिना सोचे- समझे इस्तेमाल करना
आंतक को फैलाना..
ईश्वर के नाम पर अलगाव करवाना
मनुष्य को मनुष्य न समझना.
कम समझेगा यह
कब इंसानियत जागेगी
पशुता खत्म होगी..
इंसान ,इंसान बनेगा ,हैवान नहीं

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