Thursday 30 November 2017

आखिर रोटी मान ही गई

बच्चें भूखे है रोटी के इंतजार में
कब रोटी मिले, कब खाए
पर यह क्या????
यह तो नखरे करने लगी , उछलने लगी
सब परेशान , रूठ गई और अब मानती नहीं

तवे पर डाला कि उछल पडी
चूल्हें के अंदर से लकडी बोली
तू अच्छी तरह से सिंके
इसलिए मैं स्वयं जलती और नष्ट होती
तूझे कोई फर्क नहीं

चूल्हा बोला तू गोल आकार ले तवे पर बैठेगी
मुझे चटका लगना बंद हो जाएगा
कुछ तो मेरा विचार कर

चेहरे पर आए पसीने को पोछता कठौता की फरियाद
मैं न जाने रात- दिन कितनी मार और थाप सहता
तू है कि अड कर बैठी

घर अपना धूआ झाडता बोला
मेरा तो दम घूट रहा है ,सॉस फूल रही है
अब तो मान जा

अंत में ऑखों में ऑसू भर मॉ आई
मेरे बच्चे भूखे हैं ,उनका पेट कैसे भरू
यह सुन रोटी तवे पर सीधी हो गई
मॉ का दुख जान जिद छोड बैठी
बच्चे ताली पीट - पीटकर हंसने लगे
गरम - गरम रोटी तवे पर से उनकी थाली में आ गई
मॉ ने भी चैन की सॉस ली
आखिर उसने अपनी जिद छोड दी

No comments:

Post a Comment