Wednesday 8 November 2017

प्रीत की रीत निराली

प्रीति बिना जग सूना ,प्रीति की रीत निराली
सब कुछ लगे सुहाना ,जग लगे प्यारा - प्यारा
दिशाएं भी हो महकती सुगंधित वायु से
स्पर्श भी करता रोमांचित
शब्द हो जाते अस्फुट
दृष्टि हो जाती स्थिर
समय कम पड जाता
दिन - राते लंबी हो जाती
हर मौसम लगता सुहावना
कॉटे भी फूल सा लगते
दिल की धडकन हर वक्त कुछ कहती
होठ हौले- हौले मुस्कराते
मन झूमता - गुनगुनाता
तलाब का कमल भी मंद - मंद हिचकोले खाता
चॉद की चॉदनी भी न्यारी हो जाती
मवमयूर नाचता
प्रीति का जुनून जिस पर हावी
वह प्राणों का  मूल्य भी कम ऑकता
भौरा ,पतंगा ,पपीहा सब प्रीति के मारे
प्रीति बिना सब जग सूना
प्रीति से है दुनियॉ

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