Monday 29 July 2019

किस मोड़ पर आ खडे हैं हम

बरखा को देख दया आ गई
यह क्या करें
समझ ही नहीं पाई
अगर न बरसे तब भी चैन नहीं
ज्यादा बरसे तब भी लोगों की मुसीबत
कम बरसे तब भी कोसना
आखिर यह करें तो क्या करें

यही हाल शायद हमारा भी है
जिंदगी नहीं देती है तब हम निराश
कम देती है तब उदास
ज्यादा दे देती है
तब भी संतुष्टि नहीं
हम जिंदगी को कोसते हैं
ईश्वर को कोसने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते
आखिर यह करें तो क्या करें

आज तक समझ ही नहीं आया
हमें चाहिए क्या
हमारे साथ ही ऐसा क्यों ???
बरखा और जिंदगी में बहुत कुछ समानता

हमें भी कुछ मिला
कुछ नहीं मिला
आखिर औरों को जो खुशी
हमारे नसीब में क्यों नहीं
हमारे भी तो अरमान हैं
लगता है सब कुछ सही
ऊपर से कुछ और
अंदर से कुछ और
मन खाली खाली
रीता रीता
पास में सब कुछ है
पर बंद मुठ्ठी में रेत के समान फिसलता जा रहा
समय भी शेष नहीं
सब कुछ समेटने की खुशी में सब छूटा जा रहा
हम विवश लाचार खडे देखते रह रहे
कभी बाढ तो कभी सूखा
समझ नहीं आ रहा
किस मोड़ पर आ खडे हैं हम

No comments:

Post a Comment