Sunday 28 June 2020

चाय और पकौड़ा

चाय और पकौड़ा
क्या तालमेल है इनका
मिल जाएं एक दूसरे से
तो हो जाय
सोने पर सुहागा
घनघोर बरसात में
आती है इनकी याद बडी
जब लगती सावन की झडी
तब मनभावन लगती बडी
गरमागरम पकौडे
उस पर कडक चाय की चुस्कियां
दिन बन जाए शानदार

वैसे तो ये हमेशा से जाने पहचाने
लेकिन आजकल राजनीतिक हलकों में भी जोरो से चर्चा
चाय बेचने वाले का भी रूतबा है बढा
वह भी नेता बनने का ख्वाब देख रहा
वैसे भी उसकी दुकान
पहले से ही है राजनीति का अड्डा
यही से चर्चा शुरू
खत्म होती संसद के द्वार पर

पकौडा भी कम नहीं इतरा रहा
अब कम पढे लिखे क्यों
पढे लिखे बेरोजगार भी बेचे पकौडा
उसका तो भाव बढ गया
वह भी तो एक व्यापार है अच्छा खासा
आजकल हिंदूस्तान की पहचान में
यह दोनों भी शामिल
नाम है उनका
   चाय और पकौड़ा

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