Thursday 29 October 2020

नहीं रहना इस बेरहम दुनिया में

आज आखिर वह दिन आ ही गया
मैं भी रूखसत हो जाऊंगा
इस निर्दय दुनिया से
बचपन से ही मैं उपेक्षित
कभी कोई तो कभी कोई
पशु-पक्षियों तक
छिन्न-भिन्न करते रहे
मेरे पत्तों को नोचते रहें
मैंने हार नहीं मानी
बरखा रानी की कृपा से बडा हो गया
लहलहाने लगा
बहार आने लगी
फलने फूलने लगा
अब सबकी निगाहें मुझ पर
कोई फल तोड़ता
कोई पत्तों को
कोई पत्थर मारता
कोई डालियों को तोड़ता
तब भी मैं सहता रहा
छाया देता रहा
पक्षियों को आसरा देता रहा
तब भी मैं कुछ की ऑख में किरकिरी बना रहा
मेरी लकडी उनको भा रही थी
ललचाई नजरों से ताक लगाए बैठे थे
काटना चाह रहे थे
कानून के डर से काट नहीं सके
तब मेरी जडो में तेजाब लाकर डाल दिया
मैं मुरझाने लगा
धीरे-धीरे फूल पत्ते सब झड गए
मैं ठूंठ बन गया
सब छोड़कर चले गए
अब तो कोई पास भी नहीं फटकता
जानता हूँ
मुझे इस हालात पर पहुंचाने वाले आएंगे
काट काटकर हाथगाडियो पर ले जाएंगे
अब बस उसी दिन का इंतजार
नहीं रहना इस बेरहम दुनिया में

No comments:

Post a Comment