Tuesday 22 December 2020

वह पेड़ कुछ कहता है

सामने खिडकी के बैठे गुलमोहर निहार रही थी
लाल लालसूर्ख फूल और पत्ती झूम रहे थे
लहलहा रहे थे
मुस्करा रहे थे
कुछ गिर रहे थे
जमीन भी पट रही थी
वह भी ढक रही थी

सोच आया
कैसा है इनका जीवन
जब तक गिरे नहीं
तब तक खुशी से लहलहा रहें
अंतिम बेला तक
नए कोपलों को आने के लिए
नए को स्थान देने के लिए
यही जमे रहें तो नए कैसे उगे

मनुष्य क्यों नहीं स्वीकार करता
वृद्धत्व से डरता है
न छोड़ना चाहता है न हटना चाहता है
सब कुछ पकड़ रखना चाहता है
जबकि मृत्यु भी अटल सत्य है
अमर हो जाए अगर मानव
तब तो धरती ही पट जाएंगी
जगह ही न बचेंगी

प्रकृति का चक्र जारी रहता है
वह समतोल बनाएं रखती है
दुख का कारण स्वयं मानव
अधिकार और अंहकार
मुक्त नहीं होने देता
युवा बना रहना चाहता है ताउम्र
तभी तो संन्यास और वानप्रस्थ आश्रम
स्वेच्छा से स्वीकार कर लें
फूलों की तरह
पत्तों की तरह
तब नहीं होगा जीवन में दुख का आगमन
पेड़ मानो कह रहा हो
मुझे देखो और सीखो

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