Thursday 24 December 2020

इतिहास में विभिषण

मैंने भाई का साथ छोड़ा
उसे धोखा दिया
उसका राज खोला
उसकी मृत्यु का कारण बना
मुझे घर का भेदी कहा गया

मैं भाई था दशानन का
पुलस्तय त्रृषि का नाती
महर्षि विश्रवा का पुत्र
कुबेर का भाई
महान कुल का वारिस

यह कैसे देख सकता था
भाई को अधर्म करते हुए
महान शिव भक्त और वेदों के ज्ञाता
बडे भाई को तुच्छ और नीच कार्य करते हुए
किसी की पत्नी का हरण
यह मेरे बलशाली भाई को शोभा नहीं देता था
मैंने समझाने की कोशिश की
मुझे लात मारकर दरबार से बाहर कर दिया गया

पाप का घडा तो भर रहा था
मैं पाप का साथ नहीं दे सकता था
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ था
मैं प्रभु भक्त था
उन्हीं की शरण में जाना उचित समझा
रावण को भी तो समझाया
वह न माना तब मेरा क्या दोष
खुद डूबे और पूरे कुल को ले डूबे

हाँ मैंने नाभि में अमृत कुंड होने की बात प्रभु को बताई
मैं उनकी परेशानी नहीं देख पा रहा था
वह न्याय के लिए लड रहे थे
और उनका साथ देना मेरा कर्तव्य बन रहा था
मैं दुश्मन खेमे में जो था
शक्ति या युक्ति किसी भी तरह से प्रभु को जीत दिलाना था
दशानन ने तो पहले ही तिरस्कृत कर दिया था

भाई से बहुत प्रेम था
अमरता का वरदान रास नहीं आया
महा ज्ञानी , शिव भक्त
पाप पर पाप किये जा रहा था
मरना तो था तब राम के हाथों क्यों नहीं ??
यह बात तो रावण भी जानते थे
तभी तो मृत्यु के द्वार पर खडे भगवान को देख पूछा था
तुम जीते कि मैं जीता
प्रभु बोले निःसंदेह मैं
तब हंसते हुए दशानन का जवाब था
मैं जीता हूँ
आज भी तुम लंका के प्रवेश द्वार पर खडे हो
मैं तुम्हारे सामने तुम्हारे लोक को जा रहा हूँ पूरे कुल सहित

उन्हें मालूम था
साधारण वनवासी उन्हें मार नहीं सकता
इस भक्त को मारने और तारने के लिए ईश्वर को तो स्वयं आना पडा
मैं तो निमित्त मात्र था
मृत्यु तो निश्चित थी
भाई के शत्रु पक्ष में था
पर भाई की हार
एक एक कर कुल के सदस्यों का जाना
मैं विवश था कुछ नहीं कर पा रहा था
मैंने अपना कर्तव्य किया
लोगों को अत्याचार और अनाचार से मुक्त कराने में प्रभु का सहभागी बना
यह एक दिन तो होना ही था और हुआ

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