Friday 25 June 2021

एक औरत की दास्ताँ

बहुत असमंजस में  हूँ
क्या करू क्या न करूं
किसका पक्ष लू किसका नहीं
लगता है मैं ब॔ट गई हूँ
माॅ हूँ  तो बच्चों के प्रति ममत्व
पत्नी हूँ  तो पति के प्रति  प्रेम
प्रेम  दोनों  से
एक से मेरा अस्तित्व
मेरी पहचान
उस अस्तित्व से है बच्चों का असतित्व
अब उसकी आज्ञा मानू
बच्चों  की बात मानू
गलत तो कोई  नहीं
दोनों अपनी-अपनी जगह सही
पर जनरेशन गैप तो है ही
जो टकराव उत्पन्न  करता है
जबकि प्यार  दोनों  में  हैं
एक - दूसरे के अजीज है
फिर भी देखना गंवारा  नहीं
साथ बतियाना और हंसना - खिलखिलाना तो दूर की बात
दोनों  को पास लाने की कोशिश हर बार असफल
अपने बच्चों को बोल देना या समझा देना
वही बात बच्चों का भी पापा के लिए
जबकि समझता कोई नहीं
मैं तो बस माध्यम हूँ संवाद साधने का
जब तक छोटे थे तब तक गनीमत थी
अब वे भी बडे हो गए हैं
टोका टोकी पसंद नहीं
बाप को अभी भी बच्चे ही नजर आते हैं
वैसे यह बाप - बच्चों का लुकाछिपी सदियों पुराना है
माॅ तो कहीँ है ही नहीं
उसमें की औरत तो कहीँ हैं ही नहीं
वह बस पत्नी और माँ बन कर रह गई है

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