Saturday 28 August 2021

शायद पागलपन

वह किशोरावस्था थी
मन करता था
बस देखते रहो
क्यों देखो
यह नहीं समझता था
बस अच्छा लगता था
उसी तरह
जैसे बात बात पर खिलखिलाना
न कोई वजह हो तब भी
प्यार क्या होता है
इसका एहसास तो नहीं
हाँ अच्छा लगना
घंटों देखने के लिए इंतजार करना
छत पर खडी रहना
खिड़की पर खडी रहना
मन ही मन मुस्कराना
पता नहीं क्या था
अक्सर ऐसा होता था
धीरे-धीरे और बडे हुए
किताबों में  रमने लगे
अपना करियर  बनाने की  कोशिश करने लगे
घर से दूर आ गएँ
नये नये लोगों से मिले
पर वह भावना नहीं रही
जैसा तुमसे बिना मिले था
अब वह क्या था
मैं नहीं जानती
लगता है
शायद पागलपन था

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