Thursday 23 June 2022

मैं आईना

मैं तो वही दर्पण हूँ 
तू भी तो वही हैं 
मैंने बचपन से बुढापे तक 
तेरे हर रूप का साक्षी रहा हूँ 
तेरी प्यारा बालपन देखा है
यौवन देखा है
जो घंटों मेरे समक्ष बीतता था
आते - जाते , सोते - जागते
तुझे अनुपम सुंदरी होने का एहसास भी मैंने ही कराया था
ढलता हुआ  यौवन 
बालों में सफेदी
चेहरे पर पडती झुर्रिया 
ऑखों पर लगा चश्मा 
सबका धीरे-धीरे तुम्हारे जीवन में प्रवेश
अब तो चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ 
वह कोमल चेहरा जिस पर तुम न जाने कितनी बार हाथ फेरती थी
लहराते घने काले केश
बडी बडी कजरारी ऑखें 
सब मैंने देखा है 
अनुभव किया है
अब तुमको मुझे देखने का मन नहीं करता 
जरूरत पर एक या दो बार
सबके सब बदल गए हैं 
जो तुम्हारे रूप पर फिदा होते थे वे भी
पर मैं नहीं बदला
मुझे तो तुम्हारा वह बाल रूप भी याद है
जब होली पर रंगों से भरकर जीभ निकाल कर खडी हो जाती थी
और आज का भी झुर्रियों वाला भी 
तब भी प्यार था आज भी है ।

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