Thursday 9 June 2022

उम्र के साथ संबोधन

उम्र के साथ संबोधन भी बदलते चले गए 
पहले थी गुड्डी , बेबी, लाडो 
फिर कुछ साल बाद दीदी - बुआ ,
उसके बाद भाभी , मौसी 
उसके बाद आंटी  , चाची , मामी 
उसके बाद मम्मी , माँ  ,अम्मा 
उसके बाद  एक पडाव पर दादी
लेकिन अब भी इनसे संतोष नही
अब एक संबोधन बाकी है
वह किसी किसी को नसीब होता है
वह है पर दादी यानि Great grand mother
शायद यह हसरत पूरी न हो
सपने देखने और कल्पना करने में हर्ज ही क्या है
आखिर उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है

यह भी भलीभाँति जानकारी है
यह सब संबोधन आसानी से प्राप्त नहीं होते
इन्हें संभाले रखने में बडी मशक्कत करनी पडती है
बहुत कुछ त्याग  , समर्पण और भावनाओं की बलि देनी पडती है
तभी यह कायम रहते हैं 
यह चक्र है परिवार का , समाज का 
जो अनवरत चलता ही रहता है
हम तो वही  रहते हैं 
समय और उम्र के साथ संबोधन बदलते रहते हैं 
हर संबोधन का एक अपना ही मजा है 

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