Sunday 11 September 2022

समय की मांग

दादा - दादी , नाना - नानी की कहानी हो गई पुरानी 
राजा - रानी की कहानी भी अब रास नहीं आती
उसका बचपन वैसा नहीं रहा
अब किसी बात से अंजान नहीं है
मोबाइल है लैपटाप है
जो चाहिए जानकारी वह तुरंत हाजिर
अब सपनों में परिया नहीं आती
न उडनखटोले पर बैठी 
न बुढ़िया सूत कातती है
न मामा चाँदी की कटोरी में दूध खिलाने आते है
अब सब जग जाहिर है
यह परियों- वरियो,  राजा - रानी का जमाना नहीं रहा
यहाँ सब दिखता है
जो दिखता है वही बिकता है
मासूमियत और भोलापन वाला समय नहीं रहा
विकास की ऑधी चल रही है
जो उस रफ्तार से चला वह चल निकला
नहीं तो वह उड गये 
गजब की स्पर्धा है
वह बचपन से ही शुरू हो जाता है
यही समय की मांग है 

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