Friday 4 August 2023

बेटी - बेटा

वह बेटी थी इस परिवार की
यह घर उसका भी था
बहुत कुछ किया था इस घर के लिए
घर की हर जगह पर उसके निशान थे
घर लेने से लेकर घर बनाने तक उसका योगदान 
घर का हर एक कोना कभी अपना था
वह आज पराया हो गया 
रहना हो तो रहो ठीक से नहीं तो जाओ
जब अपना ही घर पराया हो 
तब दूसरे के घर को अपना घर कैसे कहें 
यही अनिश्चितता रहती है लडकी की
जब अपने घर में ही परायापन 
कोई अधिकार नहीं 
ऊपेक्षित और दया का पात्र 
बोझ समझा जाएं 
अगर भाग्य साथ न दे 
कुछ सही न हो
तब अपनों का आसरा 
लेकिन वह भी नहीं रहता
माँ  - बाप से मायका 
कभी-कभी वह भी उनके रहते हुए नहीं रहता
या तो वे मजबूर होते हैं 
या अड़ियल 
बेटों के प्रति जो रवैया वह बेटी के प्रति नहीं 
यह कुछ अपवादों को छोड़कर 
हर भारतीय घर की बात 
बेटी को हक देने की बात पर करंट लग जाता है
या तो संबंध रखें या अपना हक ले 
यह भी एक शर्त 
प्यार से अधिकार क्या सम्मान भी नसीब नहीं। 

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