Friday, 30 September 2022

Happy World Heart day

ह्रदय बडा नाजुक है
इसे संभालकर रखें 
ज्यादा चोट न पहुंचाए 
गलती कोई करें 
चोट इसे पहुँचती है
कितनी बार यह टूटता है
मसोसता है
फिर उठ खडा हो जाता है
इसकी भी सहनशीलता की एक सीमा 
ज्यादा न सताए 
ज्यादा न परेशान करें 
इसे खुश रखें 
तब यह भी साथ निभाएगा 
असमय साथ नहीं छोड़ जाएंगा
तनावपूर्ण होकर सारा तनाव इस पर डाल देना
बरसों तक किसी बात को लेकर उसकी अग्नि में दहकना 
छोड़ दो सब
भूल जाओ सब
जो हुआ सो हुआ 
जो हो रहा है वह भी खुशी से स्वीकार कर लो
ह्रदय को भी आराम दो
खुशी दो 
रात - दिन आपकी सेवा में 
तब उसकी भी कदर
अपना हो या किसी और का 
उसको दुखी मत करें 
Happy world Heart day 

जीवन क्या है

जीवन एक कविता है
जो मन आए लिख डालिए 
जीवन एक कहानी है
जिस रूप में ढालना चाहो , ढाल दो
जीवन एक रंगमंच है
जैसा अभिनय करना है कर लो
जीवन एक नृत्य है
जैसा नाचना हो नाच लो
जीवन एक गीत है
जैसे भी सुर बने निकाल लो
जीवन एक चित्र है
मनचाहे रंग उकेर लो
इंद्रधनुष जैसा रंग है
विविध प्रकार के
जीवन एक खेल है
अंतिम सांस तक खेल लो
कब जाने कब जीत जाओ
जीवन एक शिक्षक है
आजीवन सिखाती है
जैसा सीखना हो सीख लो
जीवन एक सफर है
अनवरत चलती रहती है
एक मंजिल पर पहुंचे नहीं कि दूसरी शुरू
जिंदगी बहुत जिद्दी भी है
उसके आगे किसी की नहीं चलती
वह जैसा चाहे नाच नचाती है
व्यक्ति नाचता रहता है
यह उस पर है
वह खुश रहें या दुखी रहें 
जिंदगी तो पल - पल बदलती है
इसका कोई ठिकाना नहीं 
कब कौन सा रूप ले
बस जीना है हर हाल में 
यह कभी रूलाती कभी हंसाती 
किसी के लिए यह छोटी सी
किसी के लिए बहुत लंबी
हाँ यह स्थायी नहीं 
बस कुछ बरसों के लिए 
हाँ बस अपना रोल निभाना है
कुछ ऐसा कर जाना है
आज भी कल भी परसों भी याद रहें 
जिंदगी के साथ भी
जिंदगी के बाद भी 

कृष्ण का रूप--4

रूद्राणां शड्करश्चस्मि  वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वेदानां पावकश्चस्मि मेरू: शिखरिणामहम् ।।

मैं समस्त रुद्रो में शिव हूँ 
यक्षों तथा राक्षसों में संपत्ति का देवता ( कुबेर ) हूँ 
वसुओं में अग्नि हूँ 
और समस्त पर्वतों में मेरू हूँ। 

Thursday, 29 September 2022

हम क्या है ??

कोई हमें समझता है सीधा - सादा
कोई समझता है नादान
कोई समझता है बेवकूफ 
कोई समझता है चालाक
कोई कोई तो पागल और उल्लू भी
झगड़ालू भी 
कोई स्वार्थी 
अब हमें समझ नहीं आता
हमारी कैटिगरी कौन सी है
हम किसमें फिट बैठते हैं 
हमने किसी की बात चुपचाप सुन ली
तब हम सीधे - सादे 
किसी की बात का विरोध कर दिया 
तब हम झगड़ालू 
अगर हमने अपना काम आसानी से कर लिया
तब हम होशियार 
किसी से मोलभाव न किया 
जो मांगा वह दे दिया तब हम बेवकूफ 
किसी को पैसा देकर उसकी मदद कर दी
तब हम नादान
किसी ने हमसे ज्यादा ले लिया तब हम उल्लू 
अगर हम अपना हित देखें तो हम स्वार्थी 
सब अपने अपने नजरिये से देख रहे हैं 
अब हम क्या करें 
जैसी परिस्थिति होती है वैसा करते हैं 
नाम रखने वाले नाम रखें 
उसी में मजा है उनको तो ले 

रात गई बात गई

रात गई बात गई
बात आई गई 
यह बात है बाबा
आती - जाती नहीं है
ह्रदय में धर कर जाती है
एक रात की बात ही छोड़ दे
यह तो दशकों तक क्या सदियों तक रहती है
ताउम्र साथ ही रहती है
समय-समय पर प्रकट होती रहती है
सब कुछ बदल जाता है
समय आगे चला जाता है
परिस्थितियां भी वह नहीं रहती
बात फिर भी उसी जगह 
उसी रूप में 
जड बना कर 
बात का बतंगड तो बनता ही है
बहुत कुछ जो घटित होता है
उसके पीछे बात होती है
बात की लगाम कस कर रखना है
कुछ ऐसी - वैसी न निकल जाएं 
इससे परिवार क्या सत्ता पलट हो जाती है
बहुत दमदार है यह बात ।

एहसान का एहसास

एहसान का एहसास
बार बार 
भीतर - बाहर
कचोटता
किसी का एहसान जिंदगी आसान बना सकता है
उसका एहसास ताउम्र आपको याद दिलाता है
आपकी कमजोरियों का
आपकी मजबूरियों का
कहीं न कहीं आपकी विवशता का
किसी के सामने हाथ फैलाना
उसकी मेहरबानियो पर जीना
आपकी ऑखे हमेशा नीची कर देता है
उसकी हर बात को सर ऑखों पर लो
तब तो आप अच्छा कहलाओगे
अन्यथा विरोध किया
तब आप एहसान फरामोश हो जाओगे
एहसान एक बार होता है
एहसास हमेशा याद दिलाया जाता है
कुछ लोग कोई मौका नहीं छोड़ते
जताने का दिखाने के
वह रिश्तेदार हो
पडोसी हो
मित्र हो
जिंदगी भर को झुका देता है यह एहसान
आपकी काबिलियत को रोडा बना देता है
भले गाडी आपने चलाई
धक्का लगा दिया किसी ने
तब वह एहसान तो हो ही गया
जिंदगी की गाडी स्वयं चलानी है
धक्का भी स्वयं लगाना है
अपना आत्मसम्मान बरकरार रखना है
सही  ही कहा है किसी ने
सबसे बडा एहसान यह होगा
कोई मुझ पर एहसान न करें
मुश्किलों में भी रास्ता निकल ही जाएंगा
एहसान करने वाला 
एक बार आपको उठाएंगा
जिंदगी भर के लिए झुका देगा
जीना है तो
अपने बाहुबल
अपने आत्मविश्वास
किसी की दया , कृपा और एहसान पर नहीं

कृष्ण--3

वेदानां सामवेदोस्मि देवानामस्मि वासव: ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना  ।।

मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में स्वर्ग का राजा इन्द्र हूँ 
इंद्रियों में मन हूँ तथा समस्त जीवों में जीवन शक्ति (चेतना ) हूँ। 

Wednesday, 28 September 2022

औरत , औरत होती है

औरत , औरत होती है
जीती - जागती व्यक्ति 
उसका अपना व्यक्तित्व 
उसका अपना वजूद 
वह गुडिया नहीं होती
हाड मांस से बनी इंसान होती है
जिसके कुछ सपने
कुछ इच्छाएं- आकांक्षाए होती है
तब भी वह सब न्योछावर कर देती है
प्रेम पर कर्तव्य पर
तुम जितना दोगे वह उससे दस गुना करके देंगी 
वह माँ होती है
ममता से लबालब होती है
पत्नी होती है
जो घर को संवार देती है
घर को क्या 
पूरे परिवार की जिंदगी संवार देती है
बस इसके बदले 
थोड़ा सा प्रेम 
थोड़ा सा सम्मान 
थोड़ा सा अपनापन चाहती है
वह स्वयं भूखे रह जाती है
पर घर के सदस्यों का पेट भरती है
कम से कम जो वह चाहती है
उसके काम के बदले वह बहुत कम है
उसका कोई मोल नहीं वह अनमोल है
औरत , औरत होती है
न वस्तु न जीती - जागती गुडिया 

माँ है तो सब है

माँ है तो सब है
एक शक्ति स्वरूपा है
अपनी संतान की ताकत
हर परिस्थिति में लडना सिखाती
नहीं मानती हार 
जिद्दोजहद पर आ जाती
साथ खडी रहती
डांटती- फटकारती वह 
तो दुलारती भी वही 
उससे ज्यादा कौन समझेगा 
जो माँ का दिल समझे
उसकी मार में भी प्यार
चोट संतान को लगती है
दुखी वह होती है
मन मसोसकर रह जाती है
जब वह बेबस हो जाती है
भाग्य के आगे विवश हो जाती है
वह परिस्थिति से तो लड सकती है
भाग्य से नहीं 
क्योंकि वह ईश्वर के समकक्ष तो है
शायद उनसे भी बडी 
एक दर्जा ऊपर 
तब भी सत्य तो यही है
वह ईश्वर नहीं है
हाड- मांस की इंसान है
गलती भी कर सकती है
पर संतान का बुरा नहीं सोच सकती 
किसी भी हाल में 
उसकी ममता में कमी नहीं 
माँ मजबूर हो सकती है
स्वार्थी नहीं  ।

मन का घाव

टूटता है दिल
दर्द भी होता है
दवा भी होती है
मरहम भी होता है
पर इसे लगाए कौन
कैसे लगाए
टूटने पर आवाज नहीं होती
बिना आवाज हुए ही सब बदल जाता है
बाहर तो नहीं दिखता
अंदर ज्वाला धधक रही होती है
नासूर बनता रहता है
वह फोडा बार बार फूटता है
रिस - रिस कर बहता है
फिर और बडा हो जाता है
हर बार अपने रूप में आ जाता है
यह घाव शरीर का नहीं है
मन का है
एक्सटर्नल नहीं इंटरनल है
बाहर का घाव तो भर जाता है
मन का भरना मुश्किल। 

जनता - जनार्दन

क्या हुआ 
यह आग सुलगती क्यों नहीं है
धधकती क्यों नहीं है
मंद - मंद हो बुझती सी जा रही है
जान कर भी अंजान बने हैं 
गलत को भी नजरअंदाज कर रहे हैं 
जो हो रहा है वह होने दो
हमें क्यों बवाल में पडने की जरूरत है
शोर मचाने की जरूरत है
प्रतिकार करने की आवश्यकता है
हमारी आवश्यकता तो किसी तरह पूरी हो रही है
समाज कहाँ जा रहा है
देश कहाँ जा रहा है
राजनीति कौन सा खेला खेल रही है
सब फालतू बातें 
कोऊ होऊ नृप 
             हमें का हानि
चेरी छाडी न होहउ रानी
मंथरा की यह पंक्तियाँ हम पर बराबर लागू 
हम तो जनता है
हाँ चुनाव के समय जनार्दन बन जाते हैं कुछ समय के लिए
फिर सत्ता की उठक-बैठक जारी
हम तमाशबीन 
बस यही भूमिका है हमारी  ।

जमाना और जमाने के लोग

परेशानी का क्या है
वह तो आती रहती है
असमय बिना बताएं 
हमारे सारे किए - कराए पर पानी फेरने
सारी योजनाएं धरी कि धरी 
तब भी शायद उसको झेलने की शक्ति हममें होती है 
परेशानी उतना परेशान नहीं करती
जितना लोग करते हैं 
पूछ - पूछ कर
रस ले लेकर
दूसरों की जिंदगी में ताक - झांक कर
यह हमारे आसपास वाले ही
हमारे सुख - दुख के भागीदार कहे जाने वाले
अब और किसी काम आए या न आए
परेशान करने जरूर
तब परेशानी से डर नहीं लोगों से डर
यह बहुत खतरनाक होता है
न चैन से जीने देता है
हम छुपाते रहते हैं 
रफू करने की कोशिश करते रहते हैं 
बे बखिया उधेड़ने में लगे रहते हैं 
हाल , बेहाल तब सहानूभूति का मरहम 
वाह रे जमाना और जमाने के लोग

कृष्ण का रूप - 2

आदित्यनामाहं विष्णुज्योंतिषा रविरंक्ष्रुमान ।
मरीचिर्मरूतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।



माता रानी की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥।




मैं आदित्यों में विष्णु,  प्रकाशों में तेजस्वी सूर्य, मरूतों में मरीचि , तथा नक्षत्रों में चंद्रमा हूँ। 

सफल और असफल

सफल और असफल 
ज्यादा नहीं फर्क है
बस एक अ  आ गया है
यही फर्क तो सब बदल डालता है
जहाँ सफलता के साथ जश्न का माहौल 
सभी साथ हो लेते हैं 
वाह-वाही प्रशंसा के ढेर लग जाते हैं 
अंजाने भी पास आने लगते हैं 
वही असफलता की बात तो
वह भीड़ में भी अकेले पड जाती है
कोई उसके साथ नहीं चलता
सब देखकर मुंह मोड़ लेते हैं 
दूरी बनाने लगते हैं 
ताने औ, व्यंग्य की बरसात
अपने भी अजनबी से
यही तो गलती हो जाती है
यह लोग भूल जाते हैं 
असफलता , सफलता की पहली सीढ़ी है
बशर्ते हार न मानी जाएं 
तब निराश क्यों?? 
सुख के साथी तो सब
दुख के न कोय
एकला चलो के मंत्र को धारण करें 
चल निकले फतह पर
असफल से सफल होने में बस एक  अ  ही तो है
उसे मिटा डालिए। 

Tuesday, 27 September 2022

जय माँ अंबे

माँ तू सुखकर्ता 
माँ तू दुखहर्ता 
तेरा हर रूप निराला 
नहीं मिलती भक्त को निराशा 
जो तेरे दर पर आए
उसकी झोली भर जाएं 
मनमांगी मुराद हो जाएंगी पूरी
माँ तो माँ होती है
संतान पर अपनी ममता न्योछावर करती 
प्यार से उसको आशीष देती
बडी आशा से आते हैं भक्त तेरे दर 
नहीं जब कोई आस
तब आए तेरे दर पास
मैया का रूप मनोहर
सब रह जाते निरखत 
हाथ जोड़ कर करते विनंती 
पता है माता दूर करेंगी हर विपत्ति 
नवरात्र का हर दिन पावन
माता की होती पूजा - अर्चन
गरबा और ढोल के ताल पर नाचते सब
भक्ति के रंग में सब रंगे
क्या युवा क्या बुजुर्ग 
हर पैर थिरक रहें 
सब मैया का स्वागत कर रहें 
नवरात्रि जो है
माँ का दरबार सजा है
जो मांगना हो मांग लो
शेरावाली माँ कभी खाली हाथ नहीं जाने देती
अपनी आशीष बरसाती 
जय मैया जय भगवती ।

कौन समझे

किसी एक इंसान से नाराज हो जाने से परेशान क्यों हो जाते हैं 
बहुत से लोग इर्द-गिर्द हैं उनके नाराजगी से कोई फर्क नहीं पडता
उस शख्स के बिना आपको अपनी दुनिया खाली लगती है
उसे देख कर सारी कायनात मिल गई ऐसा लगता है
वह आपको हंसा सकता है
आपको जीना सिखाता है
उसके बिना सब सूना
उसकी जगह कोई ले नहीं सकता
वह आपके दिल के करीब जो होता है
अपना होता है
सब कुछ होते हुए भी उसके बिना खालीपन
इस खालीपन को क्या और कोई नहीं भर सकता 
शायद नहीं 
सबकी अपनी अपनी  जगह होती है
संबंध जुड़ते हैं 
बिछडते हैं 
बनते - बिगडते हैं 
वह एक जगह नहीं भरती 
वह विशेष होती है
यह वही समझ सकता है 
या फिर आप
या फिर ईश्वर। 

कृष्ण का रूप अर्जुन को बताते हुए -- 1

अहात्मा गुंडाकेश सर्वभूताशयस्थात : ।
अहमादिश्च मधुरं च भूतनामन्त एव च 

हे अर्जुन!मैं समस्त जीवों के ह्रदयों में स्थित परमात्मा हूँ। 
मैं ही समस्त जीवों का आदि , मध्य तथा अन्त हूँ। 


मेरी बेटी मेरी शक्ति

मेरी बेटी मेरी शक्ति
मेरा मान मेरा अभिमान
मेरी छाया मेरा प्रतिरूप
मेरा सहारा मेरा आधार
वह है बेमिसाल
नाज है उस पर
इससे नहीं कि वह मेरी बेटी है
बल्कि इससे कि मैं उसकी माँ हूँ
मेरी उससे पहचान है

माँ - बेटी का रिश्ता
सबसे है अनोखा
सबसे है अनमोल
सबसे समझदार
माँ की ममता
बेटी का प्यार
इसमें नहीं किसी और का काम
नहीं किसी का मोहताज
यह संग है बेमिसाल

बिन कहे बिन सुने
मन की भाषा पढ ले
एक दूसरे को जान समझ ले
कितना भी हो गिला शिकवा
एक पल में हो जाय काफूर
माँ बेटी पर जान छिड़कती
उसको पाकर धन्य समझती
वह सपने जो उसने देखें
बेटी के माध्यम से पूरा करती
दोनों एक-दूसरे की बात दिल पर नहीं लेती
मन मिलता है
दिल खुलता है
वह तो बस उसके समक्ष
उसका भरोसा उस पर
जितना नहीं और किस पर
माॅ को तो जितना समझती है बेटी
उतना दूसरा कोई नहीं

बेटा अपना होकर भी पराया
बेटी पराया होकर भी अपनी
यही सच है जीवन का
संबंधों को जोड़ने वाली बेटी ही होती है
वह कैसी भी हो 
पर अपनी ही होती है
माता-पिता के जिगर का टुकड़ा होती है
वह पराई नहीं ताउम्र हमारी होती है
बेटी तो बेटी ही होती है
हमेशा दिल के करीब होती है
हर रिश्ते की जान होती है
सही है 
बेटी तो बहुत प्यारी होती है

Monday, 26 September 2022

Sudha Murti

Attachment in Detachment ----- Written by Sudha Murti
🔹🔸🔹🔸🔹🔸
When my daughter, the older of my two, wed and left home, I felt a part of me gone.

With a daughter and a son, I know what both mean, differently.

When she was in her teens I felt as if she was my "physical extension" !

So when she left home to set up her own, I felt I lost a limb.

Next time she came to stay with us, I was astonished how her priorities had changed.

We too must've given the same shocks to our own parents !

When she said Amma,
she meant her mother-in-law, not me!

I felt she was always in a hurry to go back to her house and not stay with me for a few more days.

 That was the first time, it dawned on me that I have to start practising detachment with attachment.

Two years after my daughter’s marriage, my son left for higher studies to US.

Having experienced a child's separation once, I was better equipped emotionally.

I plunged head long into various classes held in the city starting from vedanta to healing to ikebana -
 I just wanted to be away from home..since my husband was a 24/7 workaholic.

My son used to write how he was missing my home cooked food, how he was waiting to come back to live in Chennai with us ...

After a few years, he did come back and we got him married.

He started living separately with his wife and we were also happy that they wanted to be independant from the beginning...

But now, it was all changed !

When in the U S, he missed my cooking, now if I called him to come over with his wife for a meal, it was always some excuse like "oh, amma, we have other plans for the day, please don't mistake us if we don't drop in today" !

I could see that his priorities had also changed completely..

We talk so many things and give so much advice to others, but when it comes to our own children, acceptance comes very late. Our next step is to just leave them undisturbed
in every way.

It was at that time, that I made the following, my 'new profile'.

In all my relationships , rather interactions, I give my best and do my best to live up to what I say.

My attachment with them is complete.

However, I remain detached in the sense that I do not expect them to reciprocate my affection.

Most importantly, I make a conscious effort , not to interfere or pass judgements on the lives they choose to lead.

My concern for my near and dear ones will not fade with my detachment.

If you let go of the ones you love, they will never go away –
this is the beauty of attachment with detachment !

I have learnt to love and let go.

This dictum has developed tolerance in me.

When I let the people live the way they want to, I learn to accept them for what they are.

Most importantly ,
I learn to tolerate the world around me and this tolerance brings in me a sense of peace and contentment.

Since both my children live in Chennai, I follow this very strictly, you know why !

Now I have realised that we start growing mentally much more only after the children leave the house and we have to tackle the emotional vacuum, that arises, along with age-related problems .

I specially dedicate this post to my  friends, who are  totally  dependant  on their  children's lives, to nurture their  own  selves  emotionally.

Please develop your  own  intersts, hobbies  etc, however mundane they  seem to be..

We must learn
To love whatever  we  do
instead of
Doing whatever we love !!
🍀🍀🍀🍀Copy Paste 

Sunday, 25 September 2022

बेटा दीपक तो बेटी बाती Happy Daughter's day

मेरी बेटी मेरा अंश
मेरा प्रतिरूप 
उसकी हर बात है न्यारी
मैं उसको क्या सिखाऊ 
वहीं मुझे बहुत कुछ सिखाएं 
बात करने का लहजा
कपडे पहनने का तरीका
आत्मविश्वास जगाती वह मुझमें 
मुझे जब अंग्रेजी न आने का गिला 
तब वह मेरी हिंदी की सराहना करती
बात - बात पर डांटती 
जैसे मैं न हुई उसकी माँ 
वही बताती क्या करूँ  , कैसे करूँ 
हर पल साथ निभाती 
सखी से लेकर जीवनसाथी तक का हर रोल निभाती 
मन ही मन मैं इतराती
अपनी पीठ थपथपाती 
अपनी परवरिश पर गर्व होता 
नहीं हार मानने वालों में 
भाग्य को भी धता बताने वाली
वर्कोहलिक कहती मैं कभी-कभी 
वह साथ तो मैं निश्चिंत 
हर अच्छे- बुरे वक्त में साथ
बेटा - बेटा कहते लोग
मेरी बेटी , बेटे पर है भारी
आत्मनिर्भर बनी छुटपन से
सब कुछ संभाला 
निस्वार्थ और सेवा भाव से
अपनेपन को सदा निभाया
कभी पराया नहीं माना
वह सगा हो या कजिन 
मुझे भी वही सीख देती रही
मैं तो हूँ थोड़ी सी स्वार्थी 
हाँ वह नहीं 
मैं कैकयी तो वह मेरी भरत 
माँ क्या करें 
बस बेटी के लिए दुआ करें 
किसी और लायक तो नहीं 
डरपोक,  मजबूरी है कुछ 
शायद हर बेटी वाले का यही हाल
बेटा कुछ न करें तब भी अनमोल 
सही है वंश का दीपक है वह 
बेटी तो वह बाती है
जो जलती है 
रोशनी फैलाती है
पूरा घर रोशन हो जाता है 
तभी तो बेटी तो बेटी ही है
कहने को तो परायी 
होती अपनी है ।

हमारे पेड़

हरे - भरे , फलों से लदे
ये हमारे पेड़ 
न जाने क्या कुछ कहते हैं 
सदियों से साथी हैं हम
आप हमें जितना देंगे 
उससे ज्यादा हम देंगे 
बस इतना ही करना है
हमसे नाता न तोड़ना
नहीं तो न हम बचेंगे न तुम

क्यों रोना

रोना बंद करो
अपनी गाथा सुनाना बंद करो
यही चलता रहा 
लोग हंसते रहेंगे 
सामने तो नहीं पीठ पीछे कहेंगे 
कभी-कभी सामने भी
हर दम रोना 
और कुछ काम नहीं 
तुम सोचेगे 
मैं तो मन की बातें बता रही हूँ 
सामने वाले को तो यह लगता नहीं 
वह सोच भी सकता है
जलन है मुझसे 
भले वह तुम्हारी मदद न करें 
फिर भी वह ताना तो मार ही देगा 
रहिमन मन की व्यथा मन ही राखो कोय
सुन इठलैहे लोग बाँट न लैहे कोय 

डर के आगे जीत

हार - जीत
पास - नापास 
गिरना - पडना
यह तो हर पड़ाव पर 
इसी डर से बैठ जाया जाएं 
कुछ रिस्क न लिया जाए
अगर ऐसा किया 
ऐसा हुआ 
तब क्या ?? 
कुछ नहीं 
जो हारा ही नहीं वह जीत का स्वाद क्या जाने 
जो नापास ही नहीं हुआ वह तो पास वाली सीढी चढा ही नहीं 
जो गिरा ही नहीं 
वह उठेगा कैसे बस बैठा ही रहेंगा 
गिर - गिर कर उठा
कई बार गिरा
कई बार असफल हुआ 
तब जाकर सफलता का स्वाद चखा 
हार के आगे ही जीत है
यह पता चला
अपनी काबिलियत का एहसास हुआ। 

Saturday, 24 September 2022

श्राद्ध और श्रद्धा

कल की मत सोच आज की सोच
कल की तो कौन जानता है
स्वर्ग जाऊंगा या नरक 
मानव योनि मिलेगी या श्वान 
आज अपनी इच्छा पूरी कर ले
जी भर कर जो मन करें खा ले
पूरी,  हलवा , खीर , पकौडा 
इसी जन्म में खा ले
क्या पता कल किसी को याद न रहें 
श्राद्ध करने का समय ही नहीं मिले
वह उन पर भारी पडे
जमाना बदल रहा है 
परंपराएं भी तो बदलेंगी ही
हो सकता है 
कागा भी न दिखें 
कांव कांव करता कौआ 
विलुप्त हो जाएं 
तब क्या होगा
वह अन्न बेकार जाएंगा 
इंतजार करते रह जाएंगे 
तब उन को कह दो
अभी जो कुछ खिलाना है खिला दो
सेवा करनी है कर दो
माता पिता का आशीर्वाद तो सदा बच्चों के हाथ
इस लोक में रहें या दूसरे लोक में 
हमें बस याद करते रहना समय-समय पर
श्राद्ध करों या न करों 
श्रद्धा जरूर रखना
हम तो तुम्हारी खुशी में ही खुश

वक्त

कभी हंसना कभी रोना 
कभी सुख कभी दुख
यही है जीवन का मूल
कभी नहीं रहता वक्त सम 
ऊपर - नीचे करता रहता
पल पल डोलता रहता 
बहुत कुछ बोलता
बहुत कुछ सिखाता
नित नए खेल दिखाता
हमेशा यह बाजी मार ले जाता
इस जादूगर के खेल निराले 
कभी धूप तो कभी छांव 
हर रंग में रंगा
यह वक्त अपना 

सब छूटना है

कुछ अपने आगे निकल गए 
कुछ अपने पीछे छूट गए 
हम खडे खडे निहारते रह गए 
इस आगे - पीछे की दौड़ में 
न जाने कितने छूट गए 
जो छूट गया वह छूट गया
जो रह गया वह रह गया
जिंदगी तो चलती ही रही
न वह आगे देखती न पीछे
अपने ही रफ्तार में बढती जाती 
एक दिन सब छूट जाना है
यही सब रह जाना है
अकेले तो आए थे पर अपनों का साथ था
जाना तो बिलकुल अकेले
नहीं कोई संगी नहीं कोई साथी नहीं कोई अपना 

Friday, 23 September 2022

मैं दुर्योधन कुल घाती

मैं दुर्योधन 
दुराचारी , अन्यायी,  कुल घाती 
कोई मेरा नाम आदर से नहीं लेना चाहता
नाम तो था सुयोधन
कब बन गया दुर्योधन 
यह तो होना ही था
माता-पिता अंधे थे
मामा बदले की आग में जल रहे थे
पितामह का विशेष प्रेम पांडवो के प्रति
उस पिता का बेटा जिसका हक उससे छिन लिया गया हो
अंधत्व के कारण 
दूसरे का मुकुट सर पर धारण किए हुए कार्यकारी महाराज
वे अंधे थे मैं तो नहीं 
उनका हक नहीं मिला पर मुझे तो मिले
यहाँ भी युधिष्ठिर बाजी मार गए
जेष्ठ बन गए
मैं वीर गदाधारी बलराम जी का शिष्य 
गुरू द्रोणाचार्य का शिष्य 
मेरी वीरता की कहीं सराहना नहीं 
सबने मेरे साथ छल ही किया
युद्ध में भी शरीर से मेरी तरफ थे मन से पांडवो की तरफ
यहाँ तक कि मेरा प्रिय मित्र कर्ण भी मजबूरी औ एहसान में बंधा रहा
वह पांचाली की हंसी मैं कैसे भूल सकता हूँ 
वह व्यंगय कि अंधे के पुत्र अंधे ही होते हैं 
एक दाह सी उठती है तन - मन में 
बदला लेने की भावना
वैसे भी पांडव कभी मुझे प्रिय रहे ही नहीं 
बचपन से ही छल करता रहा
मामा शकुनि उसे बल देते रहें 
एक बाल मन में जब ऐसा बीज डाल दिया जाएं 
उसकी परवरिश ठीक तरह से न हो
पिता तो अंधे थे ही माता ने भी ऑख पर पट्टी बांध ली 
हम पांच भाई नहीं थे सौ की संख्या 
यह भी आसान नहीं था
प्रतिशोध की अग्नि में जलता सुयोधन 
कब दुर्योधन बन गया 
महाभारत का कारण 
कुल विनाश का कारण 
सोचा जाएं तो
क्या मैं ही एक कारण था शायद नहीं 
महाराज शांतनु से शुरू हुआ अन्याय मुझ पर खत्म हुआ
क्या पितामह भीष्म दोषी नहीं थे
हस्तिनापुर की रक्षा का वचन देकर उसी के नाम पर अपने साथ - साथ दूसरों पर भी अन्याय कर रहे थे
अंबा , अंबिका ,अंबालिका से लेकर माता गांधारी तक का सफर महारानी द्रौपदी पर जाकर खतम 
चीर हरण जैसे कलंकित काम को मैंने अंजाम दिया
मैं अंजान नहीं था अपने कार्यकलापों से
मुझे ज्ञात था मैं गलत कर रहा हूँ 
पर अपने घमंड में स्वार्थ में 
सबका सर्वनाश का कारण बना ।

मन के बादल

आज धूप कुछ खिली - खिली सी
काले बादलों से मुक्त 
रोज बादल छाये रहते
धूप - छाँव का खेल खेलते रहते
कब बरस न पडे 
यही सोचते रहते
आज अपने पूर्ण शवाब में 
सूर्य भी जी भर कर रोशनी बिखेर रहें 

इन पर के तो बादल छट गए 
मन पर के बादल कब छंटेगे 
क्या ऐसा कोई सूरज आएगा
जो सबको प्रकाशित कर जाएंगा
इंतजार है उस दिन का
जब दिल पडे काले स्याह मिटेगे 
अपने से अपने मिलेंगे 
यह दिल बेकरार है
अपनों को देखे बिना मानता नहीं 
चैन ही नहीं लेने देता
हर सोच में तू ही तू 
यह बात कब समझ आएंगी। 

जय किसान

यह हरी - भरी हरियाली हमसे हैं 
यह गेहूं- मटर की फसले हमसे हैं 
हम पैसा नहीं उगाते अन्न उगाते हैं 
लोगों का पेट भरते हैं 
धरती को सींच - सींच उपजाऊ बनाते हैं 
मिट्टी का सोना करते हैं 
भाई हम नौकरी - व्यापार नहीं 
खेती - किसानी करते हैं
पहचान  हमारी किसी से छुपी नहीं 
मैं किसान हूँ 
इस बात का गर्व है मुझे 
ईश्वर नहीं है हम 
पर हम न होते तो इस जहां में  कोई नहीं होता 
जीने का सहारा नहीं होता
भोजन बिना तो भगवान का भजन भी नहीं भाता
   भूखे पेट भजन न होय गोपाला 
            जय किसान जय अन्नदाता

नेता बिक रहा है

नेता बिक रहा है 
खरीदोगे क्या ??
एक अकेला ही नहीं
थोक के साथ
जिस तरफ जाएं सत्ता बदल जाएं 
आज इसमें थे तो कल उसमें 
कब बदल जाएं कहा नहीं जा सकता
जनता तो सोचती है
यह क्या हुआ
हमने तो इस पार्टी के नाम पर वोट दिया था
उल्लू तो नहीं बन गए 
जनता की किसे पडी है
अपना उल्लू सीधा करना है
जहाँ दिखे कुर्सी उसी तरफ जा लुढके 
गजब का प्रजातंत्र 
जब जो जी में आया वह करें 
अपनी कुर्सी बचाएँ फिरें 
दूसरे में जाते ही दूध के धुले हो जाएं 
सारा कलंक गंगा में बह जाएं 
जनता ठगी सोचती रह जाएं 

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं 
अच्छी बात है देशवासियों को समझने का मौका
मन से मन जोड़ने का प्रयास 
अब उन्होंने कितने की शर्ट पहनी
किसके दर्शन नहीं किए
किस विशेष व्यक्ति से मिले 
किस बच्ची का हाथ पकड़ा
यह सब सवाल बेमानी है
वे अपना कार्य कर रहे हैं 
सरकार अपना कार्य करें 
पहले भी यात्राएं हुई है
धरना प्रदर्शन हुआ है
अब उनको पप्पू साबित कर देना
इससे क्या हासिल होगा
भारत का विपक्ष इतना कमजोर 
तब दूसरे देशों पर क्या असर पड़ेगा 
यह सोचने की बात है
राहुल गांधी नेता हैं और सच्चे - सीधे
इसमें कोई दो राय नहीं है
वे लगातार प्रश्न भी उठाते रहे हैं 
पर उनके प्रश्नों का उत्तर न देकर
युवराज  , पप्पू  , माँ- बेटा इत्यादि न जाने क्या-क्या 
निश्चय ही वे जमीन से जुड़े हुए नहीं है 
पर उनकी परवरिश राजनीति के माहौल में ही हुई है
गांधी खानदान में जन्म लेना गुनाह हैं क्या
उनकी विदेश यात्रा पर बवाल
वे घूमने नहीं जा सकते
अपनी नानी से मिलने नहीं जा सकते
उनकी माँ इटली की है
यह सब व्यक्तिगत बेमतलब का आक्षेप 
वे हिन्दू नहीं है
तो उनका फलां ऐसा तो फलां वैसा
कितनी छोटी सोच
हम भारतवासी है जहाँ दुश्मन को भी ऊंचा पीढा दिया जाता है 
वे तो हमारे अपने हैं 
एक भारतीय नागरिक और विपक्ष के नेता
जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि 
यह राहुल गांधी का अपमान नहीं जनता का भी अपमान 
उनकी यात्रा विवादरहित होने दें 
क्या पता भारत को एक और मजबूत नेता मिल जाएं 
प्रजातंत्र है 
जितनी सरकार उतनी ही विपक्ष भी मजबूत हो
नहीं तो तब तो तानाशाही हो जाएंगी 
निरंकुश हो जाएंगी 
इतिहास गवाह है 

Thursday, 22 September 2022

पल को तो जी लो

एक एक पल 
है बहुत कीमती
क्या पता कल हो न हो
रूखसत होने से पहले कर लो कुछ काम 
कल की तो सोचो मत 
आज और अभी से
आएगा या नहीं 
दिल के टूटे तार जोड़ लो
रूठो को मना लो
अपने जो नाराज है उनकी नाराजगी दूर कर दो
जो दूर हो गए हैं 
उन्हें पास ले आओ
साथ कुछ न जानेवाला 
न रूपया न संपत्ति 
बस लोगों के दिलों में घर बना लो
ताकि सुकून तुमको भी मिले
जाते जाते कोई गिला - शिकवा न रहें 
कहने को तो जिंदगी बहुत बडी भी है
बहुत छोटी भी है
क्योंकि इसका कोई ठिकाना नहीं है
कब सांसों की बागडोर तोड़ ले
बिना कहे चली जाएं 
कुछ कह लो
कुछ सुन लो
मन का मैल दूर कर लो
जो भी है 
उसको तो जी भर कर जी लो
बहुत खुबसूरत है हर पल
पल - पल को जी लो ।

काश ! मैं भी कर्ज लेता

पुराने जमाने से एक बात चली आई है
कर्जा लेना ठीक नहीं 
व्यक्ति को दलदल में डुबो डालता है
अपने बडों के मुख से भी यही सुना गया हो
आज अलग जमाना 
आज रहना है शान से
तब कर्जा तो लेना है
हर कोई देने को तैयार 
गाडी , घर ,फर्नीचर,  शिक्षा  , पर्यटन 
सबके लिए कर्जा सुलभ
बैंक बुला रहे हैं 
कंपनियां भी है
इसके अलावा सरकार भी कर्जे की पक्षधर 
चुनाव आते ही घोषणा 
बिजली बिल माफ
किसान का कर्जा माफ
यह तो हुए सामान्य लोग
बडे बडे उद्यगपति भी कर्जा लेकर रफूचक्कर 
विदेश गमन
बैंक भी दिवालिया घोषित 
बचा कौन ??
नुकसान में कौन 
जिसने कर्जा नहीं लिया
अपनी आय में ही सीमित रहा
टैक्स भी भरा
यह सब सोचकर 
वह भी अफसोस करता है
काश मैं भी कर्ज लेता ।

सुख - दुख

असली खजाना क्या है
रूपया - पैसा
सोना - चांदी 
हीरे - मोती
प्रापर्टी- बैंक बैलेंस 
यह सब भी हो पास अगर 
तब भी है खुशहाल क्या वह
जिसके पास है सब ऐशो-आराम 
तिस पर भी उसके पास नहीं है सुकून 
मन की खुशी असली खुशी
महलों में भी दुख
झोपड़ी में भी सुख
सब है मन के अधीन 
किसी को गद्देदार बिस्तर पर नींद मयस्सर नहीं 
किसी को पथरीली जमीन पर भी आराम की खर्राटे भरी नींद 
खाली हाथ होते हुए भी होठों की हंसी बरकरार 
सब भरा होने के बावजूद ऑखों में पानी
सुख - दुख के पैमाने क्या 
यह कैसे मापे 
इसके लिए कौन सा तराजू 
शायद इसका पैमाना बना नहीं 
इसकी परिभाषा हुई नहीं 
यह तो जीवन - मृत्यु के बीच झूलता 
मानव जीवन की कथा कहता 

रिम झिम रिम झिम बदरा बरसे

रिम झिम रिम झिम 
बदरा बरसे
मन में खुशी की आस सरसे 
काले - काले बदरा
लगते बडे मनभावन 
जब बरसे
तब खुशी छलके 
पेड - पौधे हर्षाए 
हरियाली से भर जाएं 
मोर भी पंख पसारे
मस्त - मस्त हो नाच दिखाएं 
कीट - पतंगे भी गाए 
मेंढक उछल- कूद दिखलाए 
पपीहा अपनी राग अलापे 
सभी छेडे नए तराने
हर जीव हरषाए 
खुशी के मारे फूला न समाएं
जब - जब बदरा आए
बरखा लेकर आए
बिजली चमकाते 
घोर अंधेरे में आने का संदेश देते
बरस - बरस कर सबको तृप्त करते 
तभी तो सब इनकी आतुरता से बाट जोहते 
रिम झिम  रिम झिम बदरा बरसे
सावन की घटा उमडे
मन में खुशी की आस सरसे। 

ऐसा क्यों हुआ

मैंने हर मुश्किल घडी में साथ निभाया 
हर वक्त खडा रहा
गाहे - बगाहे जब भी जरूरत आन पडी
दिलोजान से साथ निभाया 
दोस्ती का हर फर्ज अदा किया
उसका क्या सिला मिला
उसने मुझ पर ही वार किया
छुप कर पीठ पीछे खंजर घोंपा 
मैं ठगा सा रह गया 
यह सोचता रहा
आखिर ऐसा क्यों हुआ 
सबसे विश्वास उठ गया
किसी एक के कारण सबको दोषी मान लिया
सारी दुनिया ही ऐसी है
अच्छाई के बदले बुराई मिलती है
यह कह कर मन को समझा लिया
यही तो मैं गलत हो गया
एक ही तराजू के पलडे में रख सबको तौलना
यह ठीक नहीं 
दुनिया में सब तरह के लोग
अच्छे और बुरे दोनों 
जिस दिन अच्छाई खत्म हो जाएंगी 
दुनिया स्वयं धरातल में चली जाएंगी 

काश यह होता तो

ये मेरी लाडलो 
जान के टुकड़ों 
तुम अब तक यह समझ न पाएं 
तुम कितने अनमोल हो
यह जान न पाएं 
मेरी ऑखों से देखों 
तब हर जगह तुम्हीं 
मेरे दिल में झांक कर देखों 
तब तुम्हारे सिवा कोई नहीं 
रूठ जाओ 
लड - झगड़ लो
पर संबंध मत तोड़ो 
बातचीत मत बंद करों 
यही तो एक माध्यम है
संपर्क रखने का
कहीं तुम झुक जाओ
कहीं हम झुक जाएं 
एक - दूसरे को समझ ले 
कभी कोई मजबूरी 
कभी कोई प्रॉब्लम 
हल तो सबका है
जरूरत मिल कर बैठना है
उलझे हुए धागों को सुलझाना है
वह अपने आप नहीं होगा
कुछ तुम आगे बढो
कुछ हम आगे बढे
पहले तुम पहले तुम के चक्कर में 
यह समय बीत न जाएं 
बाद में अफसोस में यह कहना पडे 
काश यह पहले होता तो 

क्या खोया क्या पाया

क्या खोया क्या पाया
कितना जोडा कितना घटाया
इस खोने - पाने , जोडने - घटाने के चक्कर में 
न जाने कितना कुछ गवाया 
हिसाब - किताब करने बैठेंगे 
तब घाटा ही नजर आएगा 
दशको बीत गए 
संवारने- सुधारने के चक्कर में 
संवार और सुधरा भी
उस बेला में 
जब जाने क्या-क्या पीछे छूट गया 
याद करें उन लम्हों को
तब ऐसा लगता है
रूदन देकर हंसी पाई है
गम देकर खुशी पाई है
अनमोल समय देकर जिंदगी पाई है
यह सौदा कैसा रहा 
घाटे का या फायदे का 
यह अब तक समझ न पाई ।

Wednesday, 21 September 2022

ज्वेलरी

हाय - हाय रे मजबूरी
नहीं खरीद पाई ज्वेलरी
गई थी तो लेने
मन को भी बहुत सी भाई
एक से एक डिजाइन 
ऑखें भी रह गई भौचक्की 
दाम सुना तब रह गई दंग
इच्छा को मार गई मंहगाई 
मन मारकर घर वापस लौट आई
सोचा कब वह दिन आएगा 
जब दाम नहीं पूछू 
बस हाथ रखू 
और ज्वेलर उसे पैक कर दे
मखमली डब्बे में गुलाबी कागज में लिपटी
शोभा बढाए मेरी अलमारी की
शादी - ब्याह में पहनूँ 
मन भर इतराऊ 
लोगों को बताऊँ 
मेरे पास भी है महंगी ज्वेलरी 
हम भी किसी से कम नहीं। 

विनाश और निर्माण

बिना विनाश के निर्माण नहीं होता
जर्जर ईमारत जब गिरती है तब वहाँ नई ईमारत तैयार होती है
प्रलय के बाद फिर नई सृष्टि की रचना
प्रकृति का यह नियम है
सृजन बिना कारण नहीं होता
चल रहा है तब तक चलने दो
यह सामान्य आदमी की फितरत है
जब अति होती है तब क्रांति होती है
पाप जब बढता है
धर्म की हानि होती है तभी ईश्वर का अवतरण होता है
यह बात सब पर लागू
सरकारें भी इसका प्रमाण है
सत्ता का उलट - पलट तभी होता है जब सरकार निरंकुश हो जाती है
जहाँ दमन की अधिकता युद्ध वही से शुरू होता है
परिवर्तन की चाहत होती है
स्वतंत्रता की चाहत होती है
कुछ न कुछ नया करना 
वह तभी संभव जब पुराने को छोड़ना 
कपडे हो मकान हो या और कुछ। 

अलविदा राजू श्रीवास्तव

एक हंसी का अध्याय समाप्त हो गया
मशहूर कामेडियन राजू श्रीवास्तव दुनिया को अलविदा कह गए 
साधारण सा चेहरा मोहरा नहीं था किसी से अंजान
एक अपनापन सा लगता था
हास्य की दुनिया का गजोधर क्या खूब हंसाता था
गुदगुदी कर जाता था दिलों में 
रोना और रूलाना आसान है
हंसना और हंसाना बहुत मुश्किल है
किसी के होठों पर हंसी लाना आज के युग की जरूरत है 
न जाने कितने दिनों से अस्पताल में थे
लगता था अब उठ जाएंगे और फिर महफिल सजाने लगेंगे 
लोगों को हंसाने लगेंगे 
वक्त के आगे किसी की नहीं चलती
ईश्वर का निर्णय है
सबसे बडा तो ऊपरवाले का हुक्म है
वह जिसको चाहे रुलाए या फिर हंसाए 
हंसाने वाला आज सबको रूलाकर चला गया 
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे 

गौ माता पर संकट

आज गाय माता पर संकट की घड़ी आई है
लंबी बीमारी से ग्रस्त हुई है
मन कचोट उठता है 
जब उनको इस अवस्था में देखते हैं 
फोडे से ग्रसित 
मृत्युवत पडी हुई 
लाशों का ढेर
देखा नहीं जा रहा
तैतीस करोड़ देवी - देवता जिसके शरीर में वास कर रहे हो
उसकी यह दुर्दशा 
ईश्वर से तो प्रार्थना है ही
सरकार से भी प्रार्थना है
कुछ तो करें 
इस समस्या का समाधान निकाले
केवल गायों पर राजनीति ही न किया जाएं 
उनके लिए समुचित प्रबंध किया जाएं 
पहले तो यहाँ वहाँ भटक ही रही थी
ऊपर से लंपी 
माता तो कहा जाता है उसी माता को बूढी होने पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है
मानव जब अपने माता का तिरस्कार कर सकता है
उसको घर से निकाल सकता है तब तो यह पशु है
अतः सरकार और प्रशासन को चाहिए 
उनका समुचित प्रबंध किया जाएं। 

करोना न हुआ कोई क्राइम हो गया

वह कोई गुनाहगार नहीं थी
न उसने कोई क्राइम किया था
तब उसके साथ ऐसा बर्ताव
कारण था
वह कोविड पाजिटिव पाई गई
कब और कैसे हुआ
यह तो वह स्वयं जान न पाई
सारे जतन किए
गर्म पानी का गरगरा
मास्क लगाना
सेनिटाइज करना
फिर भी आ ही गया
ग्रस ही लिया
जानलेवा है यह ज्ञात था
नया नया है
तभी सब अंजान

अस्पताल में अडमिट
ठीक-ठाक हो घर वापस
ईश्वर को धन्यवाद
जीवन मिला दोबारा
खुश थी सोच सोचकर
बच गए 

पर यह क्या 
सबका नजरिया बदला हुआ
आस पडोस का
देखकर मुख फेर लेना
उपेक्षा से देखना
जिनके चेहरे पर मुस्कान थी
आज वह घृणा से देख रहे
जो पहले गले लगते थे
गर्मजोशी से हाथ मिलाते थे
आज वह दूर से ही मुड जाते हैं
सही है
जान तो सबको प्यारी है
अपना ख्याल रखना चाहिए

साथ में यह भी ख्याल रखें
यह बीमारी है अपराध नहीं
किसी को भी गिरफ्त में ले सकता है
आज हमारी बारी तो कल तुम्हारी बारी हो सकती है
वह हो न ईश्वर करें
इतना मत नीचे गिर जाय
कि सारी संवेदना मर जाएं
सहानुभूति तो रख ही सकते हैं
अपने जैसा ही समझ सकते हैं
घृणा और उपेक्षा न करें
भगवान से डरे
अपने और अपने परिवार का ख्याल रखें
सोशल डीशस्टिंग का पालन करें
मानसिक डीशस्टिंग नहीं
मास्क बेशक पहने
उसके पीछे मुस्कान को बरकरार रखें
हाथ मत मिलाओ
दिल से तो दूर मत करों
सेनिटाइज करते रहो
मन पर मैल मत जमने दो
अनमोल संबंधों पर परत न जमने दो
करोना तो चला जाएंगा
पर वह ऐसी छाप छोड़ जाएंगा
कि फिर कभी मन न मिल जाएंगा
सबको एक दूसरे से दूर कर जाएंगा
करोना का खौफ हावी न होने दें

आत्महत्या???

दिल को शूट करू या दिमाग को
चलो दिमाग को ही शूट कर लेता हूँ
उत्तराखंड के युवा विभव ने यही किया
यहाँ कौन हावी हुआ
दिल पर दिमाग
या दिमाग पर दिल
दिमाग से भी सोचता तो यह नहीं करता
दिल से भी सोचता तो यह नहीं करता
दिल और दिमाग दोनों ब्लाक
आत्महत्या बढता जा रहा है
नैराश्य के गर्त में युवा सबसे ज्यादा डूब रहा है
प्रेम में असफल
बेकारी की समस्या
यह सब तो पहले भी था पर यह हाल नहीं था
अब तो दिल और दिमाग दोनों काम नहीं कर रहा है
छोटी छोटी बातों का बुरा मान जाना
आत्महत्या जैसा कदम उठाना
इतना बडा संगीन अपराध
अपने लोगों को जीते जी मार डालना
संघर्ष का सामना न कर पाना
जीवन से भागना
यह तो निरा स्वार्थ है
कायरता है
एक जीवन को झटके में खत्म करना
आत्महत्या जैसे फैशन बन गया है
उसने किया तो हमने भी कर लिया
अनमोल जीवन
माता-पिता की परवरिश
उनका प्यार - देखभाल
परिजनों का कुछ सोचा होता
तब दिल भी यही कहता
दिमाग भी यही कहता
ऐसा मत करो
ऐसा मत करो
जीवन का अंत तो इस तरह मत करो
अपने माता-पिता को जीते जी मत मारों
संघर्षो का सामना करों

Tuesday, 20 September 2022

मुक्ति कब ???

तुम तो चले गए 
जाते जाते बहुत कुछ छोड़ गए 
एक ऐसा घाव जो भर ही नहीं सकता 
तुम तो मुक्त हो गए
हमें जिंदगी भर का नासूर दे गए
एक ऐसा घाव 
जो भरता ही नहीं 
समय-समय पर हरा होता रहता है
कुछ बातें कुछ यादें 
जो तुमसे जुड़े हैं 
वे कैसे भूल जाएं 
समय गुजर चुका है
समय के साथ सब भूला दिया जाता है
परिस्थितियां बदली है
अब वह पहले जैसी नहीं रहीं 
तुम्हारी कमी वह जो पहले थी 
अब भी वैसी ही है
मुक्ति तुमको मिली है हमें नहीं  ।

बाप पर मत जाओ

मेरा बाप 
तेरा बाप
बाप पर मत जाओ भाई 
बाप को बीच में मत घसीटो 
बाप के नाम पर विवाद
बाप तो बाप होता है
वह किसी का हो
सम्मान का पात्र है
वह तुम्हारे जन्म का दाता है
कर्म का नहीं 
तुम्हारा कर्म तुम्हारे साथ
कर सको तो इतना करो
ऐसा कि बाप का सर ऊंचा हो
उसे मुख न छिपाना पडे
बाप को तुम्हारे कारण न कोसा जाएं 
हर बाप संतान का हितैषी 
गरीब हो या अमीर 
हर बच्चा अपने बाप के साये में अमीर ही है
जब तक उसकी छत्र छाया 
तब तक कोई न कर सके बाल बाँका 
पसीना बहाते है
इच्छाओ को मारता है
संतान को योग्य बनाने के लिए 
ऐसा बनो कि
बाप सर उठा कर कह सकें 
यह मेरा बेटा है यह मेरी बेटी है 

समय का चक्र

क्या आपको सुनाई नहीं पड रहा
आपकी तबियत तो हमेशा खराब ही रहती है
जब देखो फालतू प्रश्न पूछती रहती हो
चुपचाप बैठो एक जगह
कुछ काम धंधा तो है नहीं
क्या मीन मेख निकालती रहती हो
क्या इधर-उधर डोलती हो
हर बात जानना है
क्या करना है जानकर
बूढे हो गए हैं 
जो खाना मिल रहा है
जो साथ में रख रहे हैं
यह उपकार कर रहे हैं

यह हर घर में सुनाई देता है
जहाँ बुजुर्ग हो
अचानक घर अंजान हो जाता है
सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं
जो उनके आसपास डोलते रहते थे
अब पास भी फटकना नहीं चाहते
जो नित नये खाने की फरमाइश करते थे
आज खाना देना भी एक उपकार समान समझते हैं
जिसने देखभाल की
इस लायक बनाया
उसी की देखभाल करना बोझ समझते हैं

समय कितनी तीव्रता से बदलता है
प्रकृति का यही नियम है
आज वे हैं
कल हम उनकी जगह होंगे
सदियों से यही चला आ रहा है
उदयाचल के सूर्य को संझा समय अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
सुबह प्रणाम और जल
और संझा को अनदेखा 
उसकी प्रतीक्षा कब ये जाए
पहले वानप्रस्थ था
आज वृद्धाआश्रम है
बात वही है जो उस समय थी
दोष तो किसी का नहीं
बस समय का है
समय न किसके लिए रूकता है
न थमता है
उसे भी तो आगे बढना है
शिशु का स्वागत 
वृद्ध का अनदेखा
यह तो स्वाभाविक है
न तुम दोषी न हम दोषी
कभी उस जगह पर आप थे आज हम है
बस पात्र बदल गए हैं

सम्मान पर सबका हक

कौआ कांव कांव कर रहा था खिड़की पर
मन विचलित हो रहा था
कुछ दे दूं इसको खाने के लिए तो उड जाएंगा
रात की रोटी थी वह फेंक दिया
उसने देखा तक नहीं और उड गया
मानो बोल रहा हो
मैं बासी और फेकी हुई चीज नहीं लेता
मेरा भी अपना स्वाभिमान है

बात भी सही है
हमारे घर में जब कुछ बच जाता है
या खराब हो रहा होता है
या कीडे लग रहे होते हैं
तब कभी-कभी हम किसी गरीब को दे देते हैं
यह समझे बिना
जो हम नहीं खा सकते वह कैसे खाएंगा

देना है तो अच्छा दो
मान सम्मान से दो
उपेक्षा से और कमतर समझ कर नहीं
उसका फोटो निकालना
एहसान जताना
एहसास कराना उसकी तुच्छता का
वह भले ही गरीब हो
भिखारी हो
पर है तो इंसान ही
आप और हम जैसे
तब वही व्यवहार करें
जो एक इंसान को इंसान से करना चाहिए

मैं चाँद हूँ

मैं चांद हूँ
नीरव और शांत
शुभ्र और चलायमान
मेरी रोशनी मद्धिम-मद्धिम
किसी की ऑखों में चुभती नहीं
मुझमें सूर्य जैसा तेज नहीं
वह प्रकाश नहीं
फिर भी मैं हूँ
मेरा अस्तित्व है
मैं गतिशील हूँ
मेरी भी प्रतीक्षा होती है
मैं सुकून देता हूँ
कोई भी मुझसे नाराज नहीं होता
सबको साथ लेकर चलता हूँ
छोटे छोटे तारों को भी टिमटिमाने देता हूँ
मुझमें भी दाग है
फिर भी सौदर्य की बात हो 
तब मेरी ही उपमा दी जाती है
कोई भी परिपूर्ण नहीं
तब मैं कैसे
कभी घटता हूँ
कभी बढता हूँ
कभी संभलता हूँ
मैं जो हूँ
जैसा हूँ
सबका प्यारा हूँ
बच्चों का मामा हूँ
सुहागिनो का प्यारा हूँ
प्रेमियों का साथी हूँ
कवियों का दुलारा हूँ
शिवजी की जटा पर विराजमान हूँ
ईद की छटा में शोभायमान हूँ
मेरे बिना तो तारे भी अधूरे
मैं अंधकार में सहारा हूँ

मैं तुम्हारा प्यारा चांद हूँ

यह थे कृष्ण

कृष्ण मुझे अपनों से लगते हैं आम लोगों की तरह
जब किसी बच्चे का चेहरा याद करने का मन करता है तब माखन खाते , मुंह पर लपेटे मटकी गिराते याद आ जाते हैं 
जब माँ के डांटने- मारने का ख्याल आता है तब माता यशोदा की डांट- मार खाते कान्हा की याद आ जाती है
उन्होंने स्वयं को भगवान दिखाया ही नहीं। साधारण मानव जैसे ही रहे जिसे जन्मते हुए न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडा ।
जिस बच्चे का जन्म ही जेल में हुआ हो । काली अंधेरी घनघोर बरसात में उफनती यमुना जी की लहरों को पार करना पडा हो और किसी दूसरे के घर पालन - पोषण। 
             प्रेम किया राधा से सखी - सखा रहें गोप और गोपी ।उनके साथ हो लिए गैया चराने । न उन्हें माखन की कमी थी न महंगे खिलौने की तब भी उन्होंने यही रास्ता चुना ।बालपन को जीया भरपूर । राधा से ब्याह नहीं कर सके पर वह हमेशा उनके दिल में रही । कुछ कोस की दूरी पर ही वृंदावन - गोकुल  लेकिन फिर कभी वहाँ गए नहीं। हाॅ जीवन भर उसी के इर्द-गिर्द घूमते रहें। 
            मामा कंस का वध कर माता - पिता को मुक्त किया ।जब बुआ कुंती के  ऊपर संकट आया तब अपना धर्म निभाया । रिश्तेदारी थी हस्तिनापुर से , उस नाते जो भी बन पाया किया लेकिन दुर्योधन की हठधर्मिता के आगे कुछ न विकल्प बचा एक युद्ध के सिवा । तब भी दुर्योधन को सौ अक्षौहिणी सेना दी ।
          यह कृष्ण ही थे जिन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया । अश्वमेघ यज्ञ में जूठे पत्तल उठाए लेकिन जब अन्याय हुआ तब अपनी सखी की लाज बचाने दौड़े आए । अपना विराट रूप दिखाया । महलों का पकवान छोड़ विदुर घर भोजन किया । प्रेम को प्रधानता हमेशा दी ।सुदामा से ऐसी दोस्ती निभाई कि आज भी याद किया जाता है। 99गाली देने वाले शिशुपाल को भी तब तक माफ किया जब तक सौ पूरा नहीं हुआ। 
        श्राप  मिला माता गांधारी का यह तो वे भी जानते थे यह होना ही था ।सहर्ष ग्रहण किया । महाभारत का रचयिता अपने ही समक्ष अपने कुल का नाश होते देख रहा था और मृत्यु भी एक बहेलिए के बाण से हुई। 
             जीवन का हर कठिन समय बडी सरलता से जीया और अंगीकार किया। गोवर्धन पर्वत उठाने वाला और कालिया दमन करने वाला महाभारत में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की लेकिन जब अपने ही भक्त की प्रतिज्ञा का सवाल आया तो अपनी छोड़ उसकी लाज रखी ।सुदर्शन चक्र उठा भीष्म को मारने दौड़े ।
         अपनी ही बहन को अर्जुन के साथ भगवा देना । रुक्मिणी का पत्र पाकर उसका हरण करना और लडाई कर ब्याह करना । प्रेम को प्रधानता दी हमेशा। कुब्जा को भी ।
यहाँ तक कि पूतना जो क्षण भर को माता बनी थी उसको भी तार दिया ।
           अगर देखा जाए तो उन्होंने प्रेम को हमेशा तवज्जों दी । माता यशोदा के ही बेटे कहलाए। कर्म के सिद्धांत पर चले ताउम्र  । वे ईश्वर थे साधारण मानव नहीं। सामान्य मनुष्य को जो - जो कर्म करना है वह सब उन्होंने किया ।शायद राधा के साथ न्याय नहीं पर यह भी सही नहीं। वे आज भी राधेश्याम ही कहलाते हैं। कितनी भी रानिया रही हो पर मन की रानी तो राधे रानी ही रही तभी तो वे मथुरा से हस्तिनापुर का चक्कर लगाते रहें। उन सब के बीच राधा ही थी तभी तो उद्धव को भेजा था कि भक्ति और प्रेम क्या होता है वे यह विद्वान समझ सकें। 
सुदर्शन चक्र होने के बावजूद हाथ में मुरली होना
सर्व शक्ति मान होने पर भी सारथी बनना
मृत्यु के सर चढकर नृत्य करना
संपत्ति शाली होने के बावजूद गरीब सुदामा से मित्रता निभाना
गज ग्राह युद्ध में नंगे पैर दौड़ लेना भक्त की रक्षा के लिए 
अपनी सखी का कर्ज उतारने और समस्त नारी जाति की लाज बचाने के लिए आ जाना
अपने ही भांजे और शिष्य अभिमन्यु की मृत्यु देखना 
युद्ध और वियोग दोनों में समभाव रहना और मुख की मुसकान बरकरार रखना यह तो संभव नहीं 
वे छलिया भी कहलाए
रणछोड़ दास भी बने
युद्ध किसी भी रूप में हितकारी नहीं  ।अपनी द्वारिका को समुंदर में डुबा दी 
कर्म करना आसान नहीं होता फिर भी कर्म में प्रवृत्त तो होना ही पडेगा 
यह संदेश युगों युगों तक मानव जाति को देना 
           कृष्ण को समझना इतना आसान नहीं न उनकी श्रीमद्भगवद्गीता को ।वही समझ सकता है जो पूर्ण रूप से कृष्ण मय हो जाए ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 
हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे 

Monday, 19 September 2022

ना कहना

मैंने हर बात मानी
हाँ में हाँ मिलाया
कोई शिकायत नहीं की
मन न होते हुए भी सब किया
अपनी इच्छाओं को ताक पर रख दिया
गलत दोषारोपण को भी स्वीकार कर लिया
इसलिए कि सब खुश रहें 
सबकी खुशी में ही मेरी खुशी
व्यर्थ में विवाद क्यों 
दूसरों का मन क्यों दुखे
दूसरों की चिंता में ही लगी रही
यह सब कब तक चलता
एक दिन मैंने भी ना कह दिया
बात का विरोध कर दिया
तब तो भूचाल आ गया
अच्छेपन की दीवार भरभरा कर गिर पडी
मैं समझ न पाई
यह क्या हुआ
क्यों हुआ 
कोई गलती तो नहीं हुई
बस जो नागवार गुजरी उसको ना कह दिया
मेरे ना कहते ही
सबने मुझे ना कह दिया 

सब कुछ बदल गया

सब कुछ बदल गया
बरसात का मिजाज बदल गया
गर्मी का ताप बदल गया
ठंडी भी नहीं है पीछे 
नदी की धार बदल गई
पहाड़ की गरिमा बदल गई 
हवा भी अब वैसी नहीं 
अब सांस लेने के लिए डर
धुआँ  , धूल - धक्कड से भरी हुई 
दूध और घी भी अब वैसा नहीं 
सब्जी और फल में भी विष भरा हुआ 
सबमें मिलावट 
इंसान की तो बात ही मत पूछो 
इन सबका जिम्मेदार वह ही है
वह तो पूरा का पूरा बदल गया है 
नैतिकता,  ईमानदारी अब कोई मायने नहीं 
बस अपनी जेब भरी रही
किसी भी अनैतिक तरीके से
वह ही सबको जहर खिला रहा है
पिला रहा है
लोगों की जान ले रहा है
बदला तो है बहुत कुछ 
तरक्की की सीढियां चढते चढते
वह अपने ही विनाश का निर्माण कर रहा है
चांद न बदला 
सूरज न बदला
बस बदल गया इंसान 

अपना घर

घर लेने के चक्कर में दशकों बीत गए 
एक अपना भी प्यारा आशियाना हो
यह इच्छा मन में हमेशा रही 
ऐसा नहीं कि किसी बात की तकलीफ हुई हो
पर अपना घर तो अपना ही होता है
उसमें रहने का सुख अलग ही होता है
वह समय भी आया 
जब अपना घर भी हुआ
इस जोड़ने - घटाने के चक्कर में न जाने पीछे क्या कुछ छूट गया 
जिनके साथ रहना था उनका अब अपना आशियाना हो गया 
उनकी अपनी जिंदगी अपनी राहें 
अब तो वह भी कहते हैं 
क्या जरूरत थी यह सब करने की
उनको शायद एहसास नहीं 
कितना चुभता है 
जब कोई पूछता है
आपका अपना घर नहीं 
इस पीड़ा को वो ही अनुभव कर सकते हैं 
जिनके सर पर छत न हो
अपने से तो अपनापन होता है
घर से भी अपनापा होता है
तभी तो हर किसी का सपना
एक प्यारा सा घर हो अपना 
वह छोटा ही सही 
वह कोठी न सही झोपड़ी ही सही
अपना तो है
जिसमें किसी की दखलंदाजी नहीं 
अपना पूर्ण स्वामित्व 
अपनी मर्जी के मालिक 
घर केवल घर नहीं अपना अरमान होता है

मैं तो फूल हूँ

तुम कांटे हो
मैं फूल हूँ
तुम्हारा काम है चुभोना
दर्द देना
किसी की आह सुनना
तुमको यह शायद उचित लगे
कोई फूल तोडने आएगा 
तब ऐसा ही करूंगा
तुम मेरे अच्छे दोस्त हो

यार मैं मजबूर हूँ
मैं यह नहीं कर सकता 
मेरा काम खुशी देना है
खुशबू देना है
जब माताजी तोडती है
तब लगता है 
उनके भगवान के काम आ रहा हूँ
जब बच्चे तोड़ते हैं
तब उनकी मुस्कान पर फिदा हो जाता हूँ
जब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए उपहार देने के लिए
तब प्रेमिका की झुकी नजरें मन मोह लेती है

कितना दिन खिलूगा
ज्यादा से ज्यादा ढेड या दो दिन
फिर तो मुरझा कर गिरना ही है
तब क्यों न किसी के काम आ जाऊं
किसी की मुस्कान बन जाऊं
दर्द देकर क्या मिलेंगा
मैं तो फूल हूँ न
खुशबू देना 
खुशी देना
मन मोहना
इसीलिए तो जन्म मिला है
सुकून मिलता है
तुम अपना काम करो मैं अपना
आखिर कांटे , कांटे ही है
फूल तो फूल ही है

मैं माॅ हूँ

आज बहुत थकान लग रही है
मन विचलित हो रहा है
कुछ करने का मन नहीं है
घुटनों का दर्द बढ गया है
आज पूरा दिन आराम करूँगी
यह सोच चादर ओढ लिया

अचानक आवाज आई
माॅ माॅ माॅ
दरवाजा खोलो जल्दी
बहुत भूख लगी है
खाने को कुछ दो

अरे तू तो कल आने वाला था
तब फिर
आज काम हो गया तो गाडी पकड़ ली
घर पर चल भर पेट खाऊँगा
और जी भर कर सोऊँगा
आज बस आराम करना है
अभी फ्रैश होकर आता हूँ

आराम गया तेल लगाने
चलो किचन में
कुछ बनाओ 
इतनी दूर से आया है 
थका हारा , भूखा प्यासा

अरे तुम्हारे दर्द का क्या 
आराम का क्या
अचानक अंदर से आवाज आई
हंसते हुए कहा
सब काफूर हो गया
मैं माॅ हूँ न
मेरा दर्द क्या और आराम क्या ??

Sunday, 18 September 2022

भरोसा

भरोसा किस पर करें 
परिवर्तन प्रकृति का नियम 
बदलाव तो होता है
लोग भी बदलते हैं 
धारणा भी बदलती है
जो पहले वह आज नहीं 
जो आज है वह कल नहीं 
न प्रकृति पर भरोसा
न किसी व्यक्ति पर भरोसा
पशु भी इसका अपवाद नहीं 
वह भी धोखा देते हैं 
पालने वाले की ही जान के दुश्मन बन जाते हैं 
तब दोष किस को दे 
किसी को नहीं 
जब साँसों का भरोसा नहीं 
तब और किसी पर भरोसा कैसे ??
बस ईश्वर के अलावा किसी पर नहीं। 

नींबू

नींबू तू है छोटा
सबको धोता 
कपडा हो या बर्तन 
पेट हो या चेहरा
सबको करता साफ
मैल निकालता और चमकाता 
है तेरे गुण बडे बडे
सलाद हो या दाल
नहीं किसी को तुझसे परहेज 
दूध से पनीर बनाने में तू ही
जिसमें तू मिल जाएं 
उसका स्वाद दस गुना बढ जाएं 
गर्मी में ठंडा करता
मुसाफिरों का मनपसंद 
स्वस्त और मस्त
नहीं किसी की जेब पर भारी 
सर्दी में भी शिकंजी बन कफ दूर करता
पोहे,  उपमा या फिर ढोकला 
परांठा हो या पेटिस
पुलाव हो या बिरियानी 
शाकाहार हो या मांसाहार 
 हरा - हरा , पीला - पीला
गोल - गोल  , छोटा - छोटा
नमक के साथ धूप में तप कर 
बन जाता अचार
छिलके में भी न जाने कितने गुण
कभी नमकीन तो कभी मीठा
बिना तेल - मसाले के भी बन जाता
गरीब हो या अमीर
सबके रसोई घर की शान बढाता
कह सकते है
मूर्ति छोटी कीर्ति बडी 

Saturday, 17 September 2022

Happy birthday प्रधानमंत्री मोदी जी

हीरा बेन का हीरा बेटा
चमक रहा है जग भर में 
देश की शान बढाता 
लोगों की धारणा बदलता
किसी राष्ट्र से अपने को कम न समझना
नहीं किसी के सामने झुकना
मिलो तो दिल से मिलो
गले लगाकर मिलो
हाथ में हाथ डालकर मिलो
हम किसी से कम नहीं 
हम तो एक सौ इक्कीस करोड़ की आबादी वाले
जहाँ आज भी माँ गंगा है
देवनगरी काशी है
प्यार का प्रतीक ताजमहल है
अपने प्यारे देशवासियों के आशीर्वाद से
विश्व के सबसे बडे प्रजातंत्र का नायक हूँ 
तब तो तुम जीओ सालो साल
जनता का प्यार और विश्वास के साथ
लोकतंत्र का परचम फहराते हुए 
विकास की डगर पर बढते हुए 
बहुत बहुत शुभकामनाएं 
हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी को
Happy birthday Sir 

प्रतिभा की कदर

प्रतिभा की कदर हो जहाँ 
प्रगति और विकास कैसे न हो वहाँ 
सत्य तो यह है
प्रतिभा को मौका ही नहीं मिलता
कभी किसी कारण से कभी किसी कारण से
कभी आरक्षण 
कभी सिफारिश 
कभी रिश्वत 
कभी बडे लोगों से नाता
प्रतिभा का उपयोग न हो तो वह कुंद हो जाती है
वह किसी और रास्ता अख्तियार कर लेती है 
जो बहुत घातक है
चाणक्य और द्रोणाचार्य जैसे गुरु इसके उदाहरण हैं 
कर्ण और एकलव्य को कैसे भूला जाए
आज भी न जाने कितने एकलव्य और कर्ण है जिनके साथ अन्याय होता है
यह राष्ट्र की जिम्मेदारी बनती है
मौका दिया जाएं 
अपने विकास में भागीदार बनाया जाएं 
नहीं तो विदेश में तो मौका है ही 
उसके बाद उनकी उपलब्धि को हम गर्व से कहते हैं 
ये तो भारतीय है 
इंडियन है
मिला क्या उनको देश में मौका ??

चीता आया चीता आया

चीता आया चीता आया
नामीबिया से भारत आया 
पिंजरे में बंद रहना उसे जरा भी न भाया
हवाई जहाज की यात्रा उसे रास न आई
सारी सुख सुविधा कोई मायने नहीं 
वह तो तब होता प्रसन्न चित्त 
जब वह मन भर धाए 
कुलांचे मारे 
पलक झपकते ही ओझल
इनकी रफ्तार के सब कायल
चीते बिना तो जंगल सूना
अब मिला देश को तोहफा 
वह है नायाब चीता
जो विलुप्त हो गए थे
वह फिर दौड़ लगाएँगे 
शेर की दहाड़ 
हिरण की कुलांचे 
चीते की फुर्ती 
यह देखने तो आएंगे पर्यटक 
अपने बच्चों को परिचित करवाएगे 
पर्यटन को भी नई धार
उनकी भी बढ़ेगी रफ्तार 
एम पी का कूनो उधान भी निखरेगा
एम पी में भी कुछ बात है
वहाँ चीतों का वास है
स्वागत है चीतों का 
धन्यवाद है इनको लाने वाले का ।

कौन सही ???

मैं सही
तुम सही
तब समस्या क्या हुई
गलतफहमियां क्यों बढी
कुछ तो बात होगी
अपने अपने गिरेबान में झांक कर देखें 
मैं भी तुमसे प्रेम करती हूँ 
तुम भी मुझसे बेइन्तहा प्रेम करते हो
तुम्हारे लिए हमेशा ईश्वर से दुआ
एक खरोंच आ जाएं तो मन विचलित 
यह हाल किसी एक का नहीं दोनों का है
ऐसा अपनों के साथ होता है
रक्त से जुड़े है वे
तब भी सबसे ज्यादा नाराजगी उन्हीं से
यह प्रेम और तिरस्कार का खेल चलता रहता है
न मिले तब भी समस्या मिले तो और भी
अपेक्षा ही इन सबकी जड 
Take for granted 
लेते हैं अपनों को
उनकी अहमियत की कदर नहीं 
यह तो फर्ज और कर्तव्य की दुहाई देकर सब रफा-दफा 
वही कोई दूसरा करें तो कृतज्ञता व्यक्त करते नहीं थकते
उसको Thank you  --- Sorry 
बोलते जबान नहीं थकती 
अपनों को भी अपना समझा जाएं 
उनके हर रूप को स्वीकार किया जाएं 
वे भी इंसान है भगवान नहीं 
गलती न करें यह तो हो ही नहीं सकता
पूर्ण तो कोई नहीं 
ईश्वर भी जब आए पृथ्वी पर तब वे भी नहीं 
अपनों का सम्मान,  अपनापन इसको दिल से निभाइए 
नहीं तो मन ही मन में कुढते रहे ।

Friday, 16 September 2022

रिश्ता निभाना

रिश्ता निभाना एक ही के जिम्मे 
ऐसा रहा तो खटास आ ही जाएंगी 
ताली भी एक हाथ से नहीं बजती 
दोनों हाथ का इस्तेमाल करना पडता है
तभी जाकर आवाज आती है
रोटी को भी दोनों तरफ से सेकना पडता है
एक तरफ से तो कच्ची रह जाएंगी 
बेस्वाद हो जाएंगी और पेट भी खराब 
स्वाद के लिए तो दोनों तरफ से अच्छी तरह से सींकना पडेगा
एक ऑख बंद कर दे तो बैचैनी हो जाएंगी 
देखने पर असर पड़ेगा 
वैसी ही बात कान पर भी लागू 
एक में रूई ठूंस ले तो कम आवाज सुनाई देंगी 
जब दोनों होठ मिलते हैं तभी प्यारी सी मुस्कान आती है
एक पैर हो या एक हाथ हो
उनके साथ रहना जिंदगी को मुश्किल में डाल देता है
वही बात रिश्तों के साथ है
दोनों को निभाना पडेगा तभी वह दूर तक चल सकते हैं
बराबर अधिकार,  बोलने की आजादी 
मन में प्रेम और खुलापन 
दोनों का सहयोग 
मन से मन जुड़े तब रिश्ता कैसे ना निभे ।

मेरा भैया

तुम मेरे प्यारे  भैया
तुम्हें देख कर खुश होते दोउ नैना 
तुम से जुड़ी सबकी आस
तुम हो घर का चिराग 
भले लडते रहे झगड़ते रहें 
तुम्हारी सलामती की दुआ करते रहे
तुम्हें देख संतोष हो जाता 
इस समस्या का हल अब आएगा निकल
घर के बडे बेटे का फर्ज तुमने बखूबी निभाया 
बचपन से ही जिम्मेदारी ओढ ली
हर बात की जवाबदेही तुमसे ही
तुम अम्मा  - बाबूजी की ऑखों का तारा 
मार्कंडेय  बाबा के वंश का दीपक
तुमसे ही प्रज्वलित हो उठता सारा परिवार 
कार्यक्षेत्र में रहें सबसे भारी
बचपन में ही बडे हो गए 
घर - परिवार  , दोस्तों- रिश्तेदारों के सहायक बन गए
न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बदली 
पारस पत्थर के समान जिन जिन को छुआ 
वे सब सुवर्ण समान बन गए
घर की कायाकल्प का जिम्मा 
समाज और परिवार में मान - सम्मान बढाना
निस्वार्थ भाव से सेवा
हर किसी की मदद को तत्पर 
हर मुश्किल घडी में ऑख तुम पर
अपने लिए समय नहीं पर दूसरों के लिए 
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी
जीवन बीमा से शुरू हुआ सफर
न जाने कितनों की बदल दी डगर
वह तुतलाता छोटा बच्चा कब बडा हो गया 
पता ही नहीं चला
आज धाराप्रवाह बोलता है और सुनने वाले सुनते रह जाते हैं 
जिंदगी की दिशा बदल जाती है 
जीवन को नए तरीके से देखने का नजरिया हो जाता है
कर्म पथ कठिन होता है उसको सरल बनाना कोई तुमसे सीखे 
बचपन से ही जिम्मेदारी ओढ ली और आज तक अनवरत जारी है
अशोक है नाम कामताप्रसाद के बेटे का नाम
जिसको कभी कोई शोक न घेरे
भोले बाबा का आशीर्वाद बना रहें 
जिंदगी में तरक्की करते रहों 
खुशियाँ तुम्हारे कदम चूमे
यह अनमोल दिन आता रहें तुम्हें खुशियों की सौगात देता रहें 
अपने परिवार के साथ अनन्य खुशियाँ मिलें 
यही शुभकामना है कि 
आप पर ईश्वर की कृपा बनी रहें , हर वर्ष यह शुभ दिन आता रहें 
Happy birthday to you 

नेकी कर

लहरें आती है लहरे जाती हैं 
आती - जाती बहुत कुछ छोड़ जाती है
हमारे कदमों के निशान भी मिटा जाती हैं 
भयंकर बाढ आती है
सब कुछ बहा ले जाती है
कुछ नहीं छोड़ती
जिंदगी फिर नए सिरे से शुरू करनी पडती है

तुमने जीवन में क्या किया
क्या नहीं किया
यह कौन याद रखता है
एक अनचाही लहर जब आती है
तब सब पर पानी फेर जाती है
लेकिन यही जिंदगी खत्म तो नहीं हो जाती
फिर से नया कुछ करना पडता है

दस साल के बाद तो दशा बदल जाती है
तब लोग क्यों नहीं बदल जाएं 
जो परिस्थितियां उस समय थी
वह अब नहीं है
तो अब के लोगों को क्यों वह बात समझ आएंगी 
आप यह सोचिए 
आपने कुछ किया है तो उन्होंने भी किया होगा
वह जिस समय आपके साथ खडे रहे , उस समय को याद करें 

समय बदलता है
नजरिया और सोच भी बदलती है 
इसलिए ज्यादा सोचे नहीं 
जो हुआ वह अच्छा हुआ
जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है
जो होगा वह भी अच्छा होगा

अंत में 
नेकी कर और दरिया में डाल 

नया दौर में नयी कहानी

आज का दौर कुछ अलग है
आज यहाँ पग पग पर दुश्शासन और दुर्योधन तो है
पर द्रौपदी की रक्षा के लिए कृष्ण नहीं हैं 
उसे तो अब स्वयं ही अपनी रक्षा करनी होगी
शक्तिशाली और मजबूत बनना होगा
अबला नहीं सबला  बनना होगा
स्वयं हाथ में हथियार ले सामना करना होगा

आज रामायण युग नहीं है
साधु वेश में रावण तो पग पग पर घात लगाए बैठे हैं 
पर उस दशानन के जैसी नैतिकता नहीं है
वहाँ तो लंका में भी सीता सुरक्षित थी
यहाँ घर और पडोस में भी सुरक्षित नहीं हैं 
आज तो सीता को सतर्कता बरतनी होगी
लक्ष्मण रेखा किसी भी हाल में पार नहीं करना है
अच्छे-बुरे की पहचान करनी है
किसी पर भी ऑख बंद कर विश्वास नहीं करना है
साधु क्या न जाने किस किस भेष में भेडिए घात लगाए बैठे हैं 
नोच खाने को तैयार हैं

युग बदला है
दौर भी बदला है
जब नर - नारी कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं 
तब अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी स्वयं पर
कदम कदम पर धोखा है
कदम कदम पर विश्वास घात है
सतर्कता बरतनी है 
संभल कर रहना है
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना है
नए दौर में नयी कहानी लिखनी है ।


Thursday, 15 September 2022

एक घर ऐसा भी

एक ही घर ऐसा होता है जहाँ आप बिना बुलाए मन चाही बार जा सकते हैं 
समय का सोचना नहीं पडता
जब जी चाहे तब
वहाँ ऑखें आपका इंतजार करती है और आपको देखते ही उनमें चमक आ जाती है
उनके चेहरे पर बनावटी हंसी नहीं दिल से निकली मुस्कान होती है
उस घर में आप जहाँ चाहे विचरण करें कोई रूकावट नहीं 
वहाँ पेट भी भरा हो तब भी जबरन खाने का आग्रह 
औपचारिकता नहीं निभाई जाती
न भारी लगता है 
आप अपना गुस्सा निकाल सकते हैं 
आपकी झुंझलाहट व्यक्त कर सकते हैं 
यह जगह अंजान नहीं आपके रग रग में बसी होती है
इसकी गली आने पर भी वह आपको अपनी लगती है
आपका इससे बहुत घनिष्ठ संबंध है
यहाँ पर आपका बेसब्री से इंतजार 
जाने पर उनकी ऑखें भर आती है
रात - दिन आपके ही ख्यालों में रहते हैं 
ईश्वर के आगे भी आपकी सलामती और उन्नति की प्रार्थना करते हैं 
आपका उन पर पूर्ण अधिकार 
आपकी हर सही गलत बात का जहाँ समर्थन 
आपसे ज्यादा बहुमूल्य उनके लिए कोई नहीं 
वह होता है
आपके माता - पिता का घर
उन दो बुझती हुई ऑखों को मत बूझने दे
उनकी आशा कायम रखें 
आपका साथ ही उनके लिए जीवन संजीवनी 
उसे समय-समय पर देकर जिंदा रखें 
क्योंकि यह हमेशा नहीं रहेगा ।

प्यार कैसा हो

प्यार में सब कुछ छूट जाता है
कुछ नहीं दिखता
बस प्यार ही प्यार 
प्यार अंधा तो होता ही है
गूँगा- बहरा भी होता है
न कुछ सुनता है न कुछ देखता है
प्यार की रीति निराली 
निभ जाएं तो आ जाएं जिंदगी में बहार
साथ - साथ जीने मरने की कसमे खाते है
साथी का साथ मिल जाएं तो सब मिल जाता है
दिल से दिल मिल जाता है
प्यार तो सोच कर नहीं किया जाता
बस हो जाता है
प्यार ऊंच नीच , अमीर गरीब नहीं देखता
तब प्यार को भी जी जान से निभाना होगा 
यह एक तरफा नहीं दोनों तरफ से हो
किसी को बदलना नहीं है न स्वयं को बदलना है
जो जैसा है उसी रूप में स्वीकार 
यह जबरन लादा न हो
न झूठ का लबादा ओढे हो
ईमानदारी और सच्चाई हो
पूर्ण समर्पण हो
सम्मान की भावना हो
एहसान नहीं अधिकार की भावना हो
इच्छा का सम्मान हो
तब ही वह टिकता है
प्यार  छोड़ता नहीं जोड़ता है
बेबसी और मजबूरी प्यार नहीं होता
जहाँ सब को छोड़ना पडे वह कैसा प्यार
प्यार क्षमा सिखाता है घृणा नहीं 
जब मन में प्यार हिलोरे ले रहा हो
तब सब सारा वातावरण भी प्रेममय हो जाता है
प्रेम भटकता नहीं उसे भी स्थायित्व चाहिए 
एक नाम चाहिए 
उसमें हिचकिचाहट कैसी
जहाँ स्वार्थ हो वहां प्यार नहीं 
 



बरसात में मन की इच्छा

जब हो झमा झम बरसात
तब क्यों न हो जाएं मौसम खुशगवार 
घर में बैठ कर मनभावन गाने लगाकर
सोफे पर आराम से पसर कर
पत्नी को आर्डर देकर
गरमा गरम चाय 
आलू - गोभी के बेसन में लपेटकर 
जब पकौडा हो जाएं तैयार
चाय की चुस्कियां लेते लेते 
पकौडे का आस्वाद लेते 
बीबी से प्यार भरी बात कर
जो सुकून मिलता है
उसका है न जाने कब से इंतजार 

यहाँ का हालात तो कुछ अलग बयां करता 
ट्रेन की भीड़ 
ट्रैफिक की जाम
बस और टैक्सी का मिलना हो जाता दुश्वार 
किसी तरह गीले - गीले पहुँच दफ्तर 
बाॅस से ऑख बचाते
अपनी कुर्सी पर बैठकर फाइलों को सहेजते 
चपरासी को चाय लाने का आर्डर देकर 
सर झुका कर गुम हो गए काम में 
सब अरमान मन ही मन धरे रह गए। 

Wednesday, 14 September 2022

हमारी हिंदी

आज हिंदी दिवस है
हिंदी का दिन
आज ही क्यों 
हर वक्त ही 
हिंदी तो हमारी रग रग में बसी
उसके बिना तो हमारा अस्तित्व नहीं 
कितनी भी अंग्रेजी बोल ले
कितने भी बडे हो न जाएं 
कितना भी दबा ले
तब भी आते आते जुबां पर आ ही जाती है
भाषा जितनी इस्तेमाल होती है 
उतनी ही निखरती है
भले तोड़ मरोड़ कर
अंग्रेजी मिश्रित
दूसरी भाषाओं का प्रभाव 
फिर भी केन्द्र में हिंदी ही है
जो सबको समझ आ जाती है
किसी भी तरह बोले
कैसे भी बोले
सब स्वीकार 
आखिर माँ तो माँ ही होती है
हर रूप में बच्चों को स्वीकार 
तब आइए 
हिंदी बोलने में शर्म न करें 
जिस तरह बोले 
बोलिए 
मत झिझकिए ।

Tuesday, 13 September 2022

नारी का सौंदर्य

किस सोच में खडी हो
ऑखों में चमक होठों पर मुस्कान 
खिली - खिली रंगत 
ऊपर से झम झम करता झुमका 
कुछ कान में कहता है
किसी की याद दिला जाता है
अनायास ही मन खुश हो जाता है
यह खुशी सुंदरता में चार चाँद लगा जाती है
सब मुग्ध हो उठते हैं 
मुख से निकल उठता है
कौन है नारी
जिसका सौंदर्य है इतना भारी

माता

 बच्चों और माॅ का नाता
यह सब जग जानता
संतान बिना माता ही नहीं 
सबसे बडी ताकत आती है
जब कोई औरत माता बनती है
पत्नी तो होती है 
औरत का हर रूप होता है
माता का रूप सबसे पावन
सबसे मजबूत 
बच्चे चाहे कुछ भी कहें 
हर माता की जान होते हैं बच्चे 
सब कुछ वार कर सकती है उन पर
ईश्वर से भी लड सकती है
इंसान की तो बात ही क्या 
तभी तो कहा गया है 
पूत कपूत भले हो 
        माता हुई न कुमाता 

मन जानता है

यह होठों पर मुस्कान तुमसे हैं 
यह दिल का सुकून तुमसे हैं 
यह चेहरे की चमक तुमसे है
यह गर्वित मन तुमसे है
यह गुरूर और अभिमान तुमसे है
तुम हो तो सब है
तुम न हो तो कुछ नहीं 
तुमसे ही संसार मेरा 
तुम नहीं तो सब सूना 
तुम समझो या न समझो
कोई समझे या न समझे
यह मन समझता है
वह भलीभांति जानता है

Monday, 12 September 2022

वह पहले जैसी बात नहीं

सहेलियां तो वही हैं 
जो पहले थी
हाँ अब वह उम्र नहीं रही
साडी जो पहले करीने से रहती थी अब चार अंगुलियों ऊपर
बाल जो पीठ पर लहराते थे 
अब छटवा लिया है
ऑखों पर जो काजल लगा रहता था अब चश्मा आ गया है
पहले हंसते समय जो दंतपंक्ति चमकती थी
लिपिस्टिक से होठ रंगे होते थे
पावडर और क्रीम से रंगत रहती थी
आज उस चेहरे से वह रौनक गायब है
दांत कुछ हैं कुछ साथ छोड गए हैं 
चेहरे पर झुर्रिया 
बात करते समय कांपते हैं 
जो धाराप्रवाह शब्द निकलते थे
वे अब लडखडाते हैं 
अस्पष्ट निकलती है 
पैरों में भी वह ताकत नहीं रही
अब स्टिक का सहारा है
हाथ भी कांपते हैं 
यहाँ तक कि खाना खाने और चाय पीने में भी
अब कुछ और चीज पर भी कंट्रोल नहीं 
दो घंटे से ज्यादा हो जाए तब वाशरूम की जरूरत 
सांझ होने के पहले ही घर लौट आना
बस , ट्रेन जो दौड़ कर पकड़ लिया जाता था
आज उस पर चढने में ही परेशानी
अब चटपटा खाने से डर
भेलपूरी - रगडा पेटिस , समोसा चाट 
बीते जमाने की बात
अब तो दाल - रोटी ही पच जाएं वही काफी
अब अपनी नहीं चलती
जिनको बडा किया 
वो ही हमें सिखाते हैं 
बचपन में निर्भर थे आज लाचार है
लंगोट से डायपर का सफर जारी है
अब किसी में वह बात नहीं 
न वह स्वतंत्रता न स्वच्छंदता 
सहेलियां तो वही हैं 
हम भी वही हैं 
पर वह पहले जैसी बात नहीं 

रिश्ते में मजबूरी न हो

कुछ लोग ऐसे होते हैं 
जो आपको गलत साबित करने के लिए हमेशा तैयार 
यह आपके अपने ही करीबी
आपसे रिश्ता भी रखेंगे 
आपके साथ भी खडे रहेंगे
सब कुछ करने को तैयार
फिर ऐसा क्यों  ?,
शायद उनको अपनी अहमियत सिद्ध करनी होगी
तो वह तो ऐसे भी कर सकते हैं 
संबंधों और रिश्तों में खुलापन हो
एक - दूसरे के लिए सम्मान हो
कुछ अपनी कहो कुछ उनकी सुनो
जहाँ एहसान , संपत्ति , मजबूरी आडे न आए
अपनेपन का एहसास हो
जो कुछ हो दिल से हो 
रिश्ता निभाने की मजबूरी न हो
वह मजबूत हो 
तभी वह दूर तक चलता है
दूर तक क्या आजीवन रहें। 

Sunday, 11 September 2022

समय की मांग

दादा - दादी , नाना - नानी की कहानी हो गई पुरानी 
राजा - रानी की कहानी भी अब रास नहीं आती
उसका बचपन वैसा नहीं रहा
अब किसी बात से अंजान नहीं है
मोबाइल है लैपटाप है
जो चाहिए जानकारी वह तुरंत हाजिर
अब सपनों में परिया नहीं आती
न उडनखटोले पर बैठी 
न बुढ़िया सूत कातती है
न मामा चाँदी की कटोरी में दूध खिलाने आते है
अब सब जग जाहिर है
यह परियों- वरियो,  राजा - रानी का जमाना नहीं रहा
यहाँ सब दिखता है
जो दिखता है वही बिकता है
मासूमियत और भोलापन वाला समय नहीं रहा
विकास की ऑधी चल रही है
जो उस रफ्तार से चला वह चल निकला
नहीं तो वह उड गये 
गजब की स्पर्धा है
वह बचपन से ही शुरू हो जाता है
यही समय की मांग है 

कब रूकेगा युद्ध

कब से युद्ध जारी है
अब तो लोग ध्यान भी नहीं दे रही
रशिया और यूक्रेन अभी भी भिडे हैं 
कोई निष्कर्ष नहीं 
बस बमबारी और जान - माल की हानि
कोई पीछे हटने को तैयार नहीं 
मानवता छोटी पड गई है
अहम् बडा हो गया है
आज हम सब इसके आदी हो गए हैं 
कभी कहीं कुछ तो कभी कहीं 
अपराध सर पर चढ कर बोल रहा है
कोई सुरक्षित नहीं है
घर से कब कोई निकले मौत कब दबोच ले
आए दिन टेलीविजन की सुर्खियाँ 
अखबारों के पेज 
सब इन्हीं सब से भरे
अब तो एक नया क्राइम सायबर क्राइम 
अमीर - गरीब सब इसके शिकार
ऐसा लगता है जीना मुश्किल है
एक जगह से बचे तो दूसरी जगह फंसे 
युद्ध भी सामान्य 
हर कोई हथियार और मारक सामग्री जुटाने में लगा
सब ध्वस्त होने की कगार पर
एक खत्म नहीं हुआ 
दूसरे युद्ध की आहट शुरू 
हमने क्या इसलिए विकास किया है
अपने बनाए मारक सामग्री को अपने ही विनाश मे लगाना
कोई जीतेगा कोई हारेगा 
मानव का नुकसान ही होगा 

रोटी ,कपडा और मकान

मेरे पास घर है
पहनने के लिए कपडे हैं 
पेट भरने के लिए भोजन है
आने जाने के लिए वाहन है
हाथ में मोबाईल फोन है
इसीलिए मैं अमीर हो गया ??
यह तो सामान्य जरूरतें हैं 
अब यह सब भी न हो
तब दिन रात मेहनत करने की क्या आवश्यकता 
लेकिन कुछ लोगों को यह भी खटकता है
वे ताना देने में नहीं चूकते
अरे तुम्हारा क्या है
किस चीज की कमी है
हालांकि वे लोग भी यही सब चाहते हैं कर नहीं पाए 
यह अलग बात है
हमारी मेहनत 
हमारी मितव्ययिता 
हमारी सोच और भावना
यह नहीं दिखाई देगा
जब मकान खडा होता है तब न जाने उसमें कितनी खून - पसीने की कमाई लगी होती है
ऐसा है क्या अच्छा जीवन जीने का अधिकार केवल चंद लोगों को
हर शख्स का अधिकार है
रोटी , कपडा और मकान 

Saturday, 10 September 2022

मैं न होता तो

मैं न होता तो क्या होता
मैं न होती तो क्या होता
मैं न रहूंगा तो क्या होगा
मैं न रहूंगा तो क्या होगा 
अक्सर यह चिंता खाएं जाती है
ऐसे लगता है इनसे ही सब चल रहा है
इस भ्रम में न रहें कोई 
तुम न होंगे तब भी यह जग चलेगा
तुम चला रहे हो यह तो सोचना भी मत
सबका अपना अपना भाग्य 
सबका अपना अपना कर्म
ईश्वर ने किसी चीज के लिए चुना है तुम्हें 
वह मन से करों 
और सब उस पर छोड़ों 
उसका कार्य उसे करने दो
बाहुबली बनने की कोशिश न करों। 

बप्पा की बिदाई

बप्पा आए गाजे-बाजे- बाजे के साथ
बिदाई भी हुए गाजे-बाजे के साथ
सभी ने नम ऑखों से बिदाई दी
दस दिन जश्न का माहौल रहा
उनके स्वागत - सत्कार और सेवा में कोई कमी नहीं 
बडी बैचैनी से इंतजार रहता है
बप्पा आते भी हैं 
लोगों के बीच रहते हैं 
आशीर्वाद देते हैं और फिर चले जाते हैं 
मनुष्य न जाने कितने जतन करता है
अपने ईश्वर को रिझाने के लिए 
सुख - शांति से रहने के लिए 
त्यौहार केवल त्यौहार ही नहीं होते
लोगों को जोड़ने का साधन होते है
इसी बहाने लोग एक मंच पर आ जाते है
न जाने कितने लोगों की रोजी-रोटी  चलती है
विकास में भागी बनते हैं ये त्योहार 
केवल धर्म ही नहीं कर्म भी है 
बप्पा यही तो सिखाते हैं 
यहाँ स्थायी कुछ नहीं है
आना और जाना भी है 

Friday, 9 September 2022

पक्षी और मानव

पक्षी की आदत बहुत अच्छी लगती है
वे ज्यादा खाते नहीं 
जितना चाहते हैं उतना ही चुगते हैं 
सुबह-सुबह उठ जाते हैं 
काम पर लग जाते हैं 
रात को भटकते नहीं आराम करते हैं 
अपने बच्चों को सिखाते हैं 
पालते हैं 
अपेक्षा नहीं करते हैं 
जब तक उडते नहीं तब तक देखभाल 
फिर अपनी लडाई लडने के लिए छोड़ देते हैं 
उनके लिए सीमा का बंधन नहीं 
सारा आकाश और सारी धरती में विचरण करते हैं 
उन्हें बेडियाँ पसंद नहीं 
उनमें द्वेष और ईर्ष्या नहीं 
एकता का उत्तम उदाहरण 
झुंड में ही रहते हैं 

मानव पक्षी तो नहीं 
सीख बहुत कुछ सीख सकता है
अगर वह सीखे तो
बहुत सी समस्या अपने आप खतम
पर ऐसा नहीं है
वह अपनी आदत और अपेक्षा के कारण 
ज्यादा परेशान रहता है
जीवन को जटिल बना डालता है
वह पक्षी तो नहीं हो सकता
हाँ उनकी कुछ बातों का अनुसरण करें तो
शायद बहुत कुछ अच्छा हो सकता है 

बप्पा मोरया

बप्पा मोरया बप्पा मोरया
तू है मूषक पर सवार
है पार्वती का लाल
तुझे मोदक से प्यार 
हर बरस तू आता
सभी को आशीर्वाद दे जाता
तेरे दर पर सब समान
क्या अमीर क्या गरीब 
सभी तेरे दर पर शीश नवाते 
है तो तू लंबोदर 
सब पर कृपा बराबर
दुर्वा से तू होता प्रसन्न 
अपनी श्रद्धा से जो कोई भजता 
जैसे भी भजता 
जो भी श्रद्धा सुमन अर्पण करता
तू सबको प्यार से ग्रहण करता
महलों से लेकर झोपड़ी तक में विराजता 
यही तो है तेरी विराटता 
आज है जाने की बारी
सबकी ऑखों में हैं अश्रु 
बिदाई का गम तो है
साथ ही है आनंद की आशा
हे भोले बाबा के लाल
तेरी कृपा अपरम्पार 
हर बार तू आए 
सबको आनंदित कर जाएं 
अगले बरस फिर जल्दी आने का वादा कर
अपना आशीर्वाद दे जाएं 
विघ्नहर्ता सबका दुख हरो
सब कहते रहे 
बप्पा मोरया    बप्पा मोरया 

नाचना

लोगों को नाचते देखना अच्छा लगता है
मन भी नृत्य करता है 
आनंदित होता है
हालांकि पैर थिरकते नहीं है
इन पैरों में बरसों पहले जो बेडियाँ बांध दी गई थी 
वह आज भी खुली नहीं है
आज तो जन्म लेते ही बच्चों को डांस क्लास में डाला जाता है 
उनके पैर थिरकते रहते हैं 
माता-पिता और रिश्तेदार खुश होते हैं 
तालियाँ बजती है
जिसको नाचना नहीं होता है वह भी नाचने लगता है
हमारा समय अलग था
हम जिंदगी की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भागम-भाग करते थे
पैर नहीं जिंदगी हमें नचाती थी 

सबसे बडी इच्छा

जब शौक करने की उम्र थी तब शौक न किया
घर - गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उलझी रही
जब मौज - मजे के दिन थे
तब पाई - पाई जोड़ने में लगा दी
जब घूमने के दिन थे
तब नौकरी और घर में उलझी रह गई 
जब फैशन करने के दिन थे
तब लोगों के डर से मन मार लिया
कहीं संकोच आडे आया
कहीं जिम्मेदारी 
आज कुछ कमी नहीं है
न वह पहले जैसे हालात है
तब भी सब मुश्किल लगता है
यह वही पैर हैं जो घंटों चला करते थे
बिना काम के भी खडे रहते थे
न जाने कितनी बार सीढियां चढना - उतरना होता था
अब मन तो वही है
शौक भी मरा नहीं है
इच्छाएं भी वैसी ही है
तब मन मुताबिक खाना मिलता नहीं था
महंगे होटल अफोर्ड नहीं कर सकते थे
आज जी भर कर खा नहीं सकते
डर सताता है स्वास्थ्य का
पहले बिन कारण भी हंसते थे
आज बिन कारण ऑसू आ जाते हैं 
पहले अपने पर भरोसा था
आज वह भरोसा डगमगा रहा है
जिन पैरों पर शरीर खडा है
जब वह पैर ही डगमगा रहा है
अपना ही शरीर अपना साथ छोड़ रहा है
तब कहाँ का शौक कहाँ की इच्छा 
बस जीवन गुजर जाएं 
जब तक जीए किसी पर निर्भर न हो
किसी को तकलीफ न दें 
चलते - फिरते ही चले जाएं 
यही सबसे बडी इच्छा है ।

खुश रहना

खुश रहना किसे अच्छा नहीं लगता 
हर कोई चाहता है
खुशी के कारण अलग-अलग हो सकते हैं 
किसी की खुशी 
भर पेट भोजन तो किसी की नींद में 
किसी की मकान में तो किसी की व्यापार में 
किसी की पैरेन्टस में तो किसी की बच्चों में 
किसी की शिक्षा में तो किसी की सेवा में 
किसी की समाज में तो किसी की राजनीति में 
किसी की आराम में तो किसी की काम में 
किसी की संपत्ति में तो किसी की संन्यास में 
किसी की अकेले में तो किसी की परिवार में 
कोई गृहस्थ बनकर तो कोई संन्यासी बन
खुशी तो खुशी है भाई
इसे पाने के लिए हर संभव प्रयास 
और क्यों न हो
एक ही जीवन है
तब उसी से जो हासिल कर ले
वह कर ले
हाँ खुश रहना जरूरी है
चाहे वह 
अमीरी में हो या कंगाली में 

Thursday, 8 September 2022

सब बदल गया

समय बदल गया 
उम्र बढ गयी
अब वह पहले जैसा जोश और शक्ति नहीं रही
लोगों का नजरिया बदल गया
सारे संबंध बदल गए
संबंधों में पहले जैसा जोश और उत्साह नहीं रहा 
दोस्त- सहेलियां सब छूट गए
मायका बदल गया
ससुराल बदल गया
बच्चे बदल गए
सब अपनी-अपनी लाइफ में व्यस्त 
अब न पहले वाली बात रही 
न हम वह रहे न लोग वह रहे 
पहले जहाँ हमारा सिक्का चलता था
वह भी अब घिस गया
हाँ एक आदमी और बदला
हालांकि उसको बदलने के प्रयास में पूरी जिंदगी लगा दी
तब भी नहीं बदला
आज बदला है
अब वह पहले जैसा हुक्म नहीं देता
न ही बेबात पर चिल्लाता है
खाने - पीने के नाज - नखरे भी नहीं करता है
नुक्स भी नहीं निकालता
अब तो हाथ में स्टिक थमाता है
जो पहले आगे-आगे भागता था
आज हाथ पकड़ कर चलता है
दवाई की याद दिलाता है 
डाक्टर के इंतजार में घंटों बैठता है
कभी-कभी घुटनों में तेल भी लगा देता है
लगता है उसका सारा अहम् छू मंतर
यही वह शख्स जो बात नहीं मानता था
आज बैठकर सुनता है
समय के साथ-साथ जीवन साथी भी बदलता है
वैसे यह बदलाव अच्छा है
जहाँ सब अनदेखा करते हो
तब एक शख्स है वह 
जो हमेशा ध्यान रखता है 
यह बदलाव भी कमाल का है
इसे भी जी भर कर जी लो
जवानी कैसे भी गुजारी हो
बुढ़ापा तो साथ - साथ गुजरे
एक - दूसरे का हाथ और साथ बहुत जरूरी है
उम्र के इस पड़ाव पर ।

घर भी अकेला है

सुने घर राह देखते हैं 
बंद दरवाजे बुलाते हैं 
यही वह घर है जहाँ 
किलकारियां गूंजती थी
गली गुलजार रहती थी
आज वे घर तो हैं 
उसमें बसने वाले नहीं हैं 
या तो बंद पडे हैं 
द्वार पर बडा सा ताला लटका है
या घर में एकाध बडा - बूढा हो
लोग चले गए हैं 
विकास की राह पर 
कुछ महानगरों में 
कुछ विदेशों में 
पंछी के बच्चे उड गए हैं 
अब तो उनको यह याद भी नहीं आता
न आने का मन करता है 
आना भी होता है तो मजबूरी वश 
बाप - दादो की प्रापर्टी है 
उसको ऐसे कैसे छोड़ दे 
कुछ घर सूनसान 
कुछ ढहने की कगार पर
आज व्यक्ति ही नहीं 
घर भी अकेलेपन की समस्या से ग्रस्त 
आखिर घर वह होता है
जिसमें लोग रहते हैं 
सुख - दुख बांटते हैं 
व्यक्ति वाद सब पर हावी 

क्या सीखा है

माँ ने क्या सिखाया है
कोई सहूर नहीं 
कैसे रहा जाता है
कैसे बोला जाता है
कैसे हंसना जाता है
कैसे खाया जाता है
यह तो हुई व्यक्तित्व की खामी

अब आई कर्म की बारी
रोटी भी गोल बेलना नहीं आता
आटा भी नर्म गूथना नहीं आता
सब्जी भी बारीक काटने नहीं आती
नमक , मसाले और तेल का अंदाज नहीं 
घर संवारना - सजाना नहीं आता
सीना - काढना  , बुनना नहीं आता
गाना - बजाना नहीं आता
खरीदारी करनी नहीं आती

तब आता क्या है
पढ - लिखकर बेवकूफ 
सर्व गुण संपन्न आखिर कैसे कोई हो
उसमें बावर्ची,  दर्जी  , गायक,  नर्तकी सब गुण हो
सबमें पारंगत हो
यह तो बिरलो में ही मिलता होगा 
अगर ऐसे हैं लोग 
तब तो उनको सलाम 
उनको मुबारक 
हम तो कम से कम ऐसे नहीं है
न कभी हो सकते हैं ।

ऐसा भी होता है

कुछ लोग ऐसे होते हैं 
जो आपको गलत साबित करने के लिए हमेशा तैयार 
यह आपके अपने ही करीबी
आपसे रिश्ता भी रखेंगे 
आपके साथ भी खडे रहेंगे
सब कुछ करने को तैयार
फिर ऐसा क्यों  ?,
शायद उनको अपनी अहमियत सिद्ध करनी होगी
तो वह तो ऐसे भी कर सकते हैं 
अब आपको सोचना है
निर्णय लेना है
जिंदगी आपकी है उधार की नहीं। 

Wednesday, 7 September 2022

कुछ अनकही

मेरे शब्दों में धार है
वह कविता तक ही सीमित है
कभी-कभार वाणी में भी वह दिख जाता है
तब लोगों को वह नागवार गुजरता है
सरल ही सुनने के सब आदी 
उनकी सुन लो
अपनी न कहो
जिस दिन तुमने उनका उत्तर भी दे दिया
वह खटकने लग गया
संबंधों में  दरार पड गई
एकतरफा तो संबंध निभाया नहीं जाता
विचारों का आदान-प्रदान हो
दूसरे को भी स्थान दो
केवल अपनी ही मत चलाओ
हावी होने की कोशिश नहीं 
पास आने की और साथ होने की कोशिश हो ।

Monday, 5 September 2022

मैं शिक्षक हूँ ।Happy Teachers day

मैं भूत , वर्तमान और भविष्य 
तीनों का कारण हूँ 
मैं शिक्षक हूँ 
भूत को सुधारता हूँ 
वर्तमान को गढता हूँ 
भविष्य को निर्माण करता हूँ 

मैं ज्यादा नहीं चाहता
हाँ इतना जरुर चाहता हूँ 
मेरा हर छात्र सफल रहें 
ऊंचाइयों तक पहुँचे
मैं ही वह हूँ 
जो आपकी सफलता देख कर इतराता है
गर्व से कहता है
यह मेरा स्टूडेंट हैं 
हम ही ऐसे हैं जो आपको ऊपर चढते देख जलते नहीं 
न हतोत्साहित करते
बल्कि प्रोत्साहित करते 

हम ही वह हैं 
जहाँ हमें कोई एक नहीं सब प्रिय 
फिर वह चाहे कैसा भी हो
सबको एक ही जैसा ज्ञान 
हमारी नजरों में सब समान
हमारा एक भी छात्र असफल न हो
यही हमारी इच्छा 
क्योंकि तुम्हारी सफलता और असफलता के बीच हम जो हैं 
क्या यही सीखा है  तुमने 
यह ताना सुनने की अपेक्षा 
यह सुनना 
न जाने इनके शिक्षक कैसे होंगे और इनकी पाठशाला 
जिनकी वजह से यह मुकाम हासिल है 
हम ईश्वर नहीं है 
न हम जन्मदाता है
पर उनके भी गुरू तो हम ही हैं 
गुरू बिना ज्ञान कहाँ 
             हमारी संपूर्ण गुरू जाति को नमन

Saturday, 3 September 2022

खुशियाँ पाने की होड

हर बार खुशी आकर फिर दूर हो जाती है
लगता है मुझे चिढा जाती है
खुश होने का अधिकार तो हर किसी को
कभी तो चिंता से मुक्ति मिले
विचारो की ऊहापोह से दूर हो
कश्मकश की स्थिति न हो
हालांकि ऐसा अब तक हुआ नहीं 
कुछ परिवार के घेरेबंदी में ऐसी फंसी 
अपने को भूल ही गयी
कुछ न कुछ करना था
कभी यह हासिल करना था कभी वह
यह सब किसके लिए 
जिनके लिए किया
उन्हें तो उनका भान भी नहीं 
भविष्य को सुधारने के चक्कर में वर्तमान को ही न जी पायी
अब तो उम्र के इस पड़ाव पर 
लगता है सब बेकार है
शायद कहीं कोई गलती हो गई 
कुछ छूट गया
खुशियाँ पाने की होड में खुशी ही पीछे रह गई 
क्या खुश होने का अधिकार 
कुछ को ही है
हमें भी तो है
अब तो लगता है
कुछ पल जी ले अपने लिए 
यह तो नहीं सुनना पडेगा 
क्या किया है
खुश हो जाएंगे यह सोचकर 
अपनी जिंदगी तो खुशी पूर्वक जी ली 

Friday, 2 September 2022

दोस्त अब वह नहीं रहा

वह दोस्त है मेरा
हर सुख दुख में साथ रहता 
कुछ कमी भी है
उस पर ध्यान नहीं जाता
कभी भी बेवजह घर पर आ धमकता है
घंटों सोफे पर बैठा आराम फरमाता है
मेरे घर को अपना ही घर समझता है
खाना - पीना , चाय - पानी भी अधिकतर यही
यह सब तो ठीक है
बुरा तो तब लगा
जब हमारे घर की बातें बाहर करने लगा
कहने को तो अपना खास
पर अब डर लगने लगा है
अब तो मुझसे ईष्या भी होने लगी है
हमेशा ताने 
अरे तू तो बडे बाप का बेटा है
तेरा क्या ??
अब लगता है 
उसको आईना दिखा दू 
उससे थोडा दूरी बना लूँ 
नहीं तो हालत 
सांप को दूध पिलाने जैसी हो जाएंगी
अब वह पहले जैसा नहीं रहा
तब मुझे भी बदलना पडेगा 
ताली एक हाथ से तो बजती नहीं है
उसका मन बदल गया
तब मुझे भी बदलना होगा
दोस्त अब वह दोस्त नहीं रहा ।

गृहिणी की हालत

जो सबका पेट भरती है
सबके पसंद और नापसंद का ध्यान रखती है
दिन - रात खाने और खाने वाले के बारे में सोचती है
वह घर की गृहिणी है
उसके मनपसंद का ध्यान किसे ??
उसकी भी तो कुछ इच्छा होगी
कुछ पसंद या नापसंद होगी
वह तो जब सबसे बच जाएं 
वही खा लेती है
सबका पेट भर जाएं 
उसी में खुश 
कोई शिकायत न हो
इसलिए वह जी जान डाल देती है
फिर भी कभी-कभी वैसा नहीं बन पाता है
तब सबके मुंह टेढे 
बात सुनाने लगते हैं 
यह नहीं सोचते
उसके दिल पर क्या बीतती होगी
उसका भी मन है
शरीर है
कभी वह भी अनमनी हो सकती है
उसका मन नहीं करता
उसे भी आराम और छुट्टी की जरूरत है
यह कोई नही सोचता
किसी को उसकी नहीं 
बस अपनी पडी रहती है ।

बच कर रहना

दिमाग खराब हो गया
जब देखों तो कुछ लोग फालतू बातें करते हैं 
तुम अच्छी तरह से पेश आओ
शिष्टाचार का पालन करो
सामने पडने पर एक मुस्कान दे दो
बस देखो वह तुम्हारे सर पर चढ जाएंगे
जरा बात क्या कर ली
बगिया उघड़ने लगेगी
ऐसे लोग को पंचायती ही कहा जाता है
यह किसी मानसिक रोगी से कम नहीं 
फर्क इतना है कि
यह अस्पताल में नहीं रहते
हमारे आस-पास मंडराते हैं 
इनसे ज्यादा संपर्क रखो तो
यह तुम्हें ही बीमार कर जाएंगे
ऐसे लोगों से बचकर रहने में ही भलाई है
तुम उनके जैसे हो नहीं सकते
उनका उल्टा जवाब नहीं दे सकते
तब दूरी बना कर रखे
किसी से ज्यादा हिले  मिले नहीं 
जब तक उसकी फितरत समझ न आएं 

Thursday, 1 September 2022

होता है फर्क

होता है फर्क 
सुख और दुख में 
होता है फर्क 
भाग्य और कर्म में 
होता है फर्क 
अपनों और परायों में 
होता है फर्क 
विश्वास और अविश्वास में 
होता है फर्क 
प्रेम और घृणा में 
होता है फर्क 
रक्त और पानी में 
होता है फर्क 
अमृत और विष में 
होता है फर्क 
आशा और निराशा में 
होता है फर्क 
झूठ और सच में 
होता है फर्क 
धूप और छांव में 
होता है फर्क 
ईमानदारी और बेईमानी में 
होता है फर्क 
अमीरी और गरीबी में 
होता है फर्क 
गर्मी और बारिश में 
होता है फर्क 
घर और बेघर में 
होता है फर्क 
समृद्धि और कंगाली में 
होता है फर्क 
संतोष और असंतोष में 
तब कहा जाएं 
हर परिस्थिति में तटस्थ रहो
यह तो संभव ही नहीं 
कम से कम साधारण इंसान के लिए तो नहीं 
साधु और महात्मा के लिए होता होगा
एक गृहस्थ के लिए तो बिलकुल नहीं 

Happy Daughter's Week

🍁Happy Daughter's Week.
🙍👭🙍👭🙍👭

Daughter is not equal to tension
But
In today's world
Daughter is equal to 
Ten sons
🙍👭🙍👭

A FATHER Asked His DAUGHTER:
Who Would U Love More, Me Or Ur Husband..??
👭👭🙍🙍👭👭🙍🙍

The BEST Reply Given By the DAUGHTER:
I Don't Know Really,
But When I See U, 
I Forget Him,
But When I See Him, 
I Remember U..
🙍🙍🙍👭👭👭👭🙍🙍🙍

U Can Always Call Ur DAUGHTER As Beta, 
But U Can Never Call Ur Son As Beti....

That's Why DAUGHTERS are SPECIAL
👭🙍👭🙍👭👍👭👍👭🙍

It's DAUGHTER'S WEEK..
If you have a Daughter who makes your life worth living by just being around and you love her as much as your own Breath......
🙍👭🙍👭🙍👭

If you are proud of your Daughter, Send this to people who have Daughters..!!

Daughters are Happiness. 
Daughters are Angels.!👼👼

🙍👭👭👭👭👭👭🙍
    
    ❤Happy❤
❤Daughters❤
    ❤Week❤

Congrats  to who all have Daughters.

Daughters are like Parrots in the house...

When she speaks,
She speaks without a break..
& everyone says,
"chup bhi kar jao"

When she is silent,
mother says,
"tabiyat theek hai na"

Father says,
"aaj ghar mein khamoshi kyun hai"

Bhai says,
"naraaz ho kya"

and when she is married, all say,
"aisa lagta hai is ghar ki raunak hi chali gai"

She is the real non - stop music..

Dedicated to emotional, cute, pretty, sweet & sincere girls😊

That's ME..
That's YOU..
That's a Girl..😊

=Proud to be a Girl 😍
kyu k sari ronaq hami se to hai!😘

👌🍃A Woman has the most unique character like salt :
Her presence is never remembered .... But
Her absence makes all things tasteless !!🐾👍
👌👍👯💃👯👭
 
Pass it to your lovely Sisters, Daughters and Friends too ....... 🙂 💕💕💕Copy paste